गया में जहां नक्सली लगाते थे अदालत वहां गरीब बच्चों को मिल रही व्यवहारिक शिक्षा, गुरू दक्षिणा में सिर्फ एक किलो चावल

गया जिले के बाराचटटी प्रखंड अंतर्गत काहुदाग पंचायत के कोहवरी गांव जंगलों के बीच बसा है। अनुसूचित बाहुल्य इस गांव में पढ़ाई कराने की कोई व्यवस्था नहीं है। जिससे इस गांव के बच्चे शिक्षा से वंचित थे। पर अब वहां शिक्षा की अलख जगाई जा रही

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 04:47 PM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 06:35 PM (IST)
गया में जहां नक्सली लगाते थे अदालत वहां गरीब बच्चों को मिल रही व्यवहारिक शिक्षा, गुरू दक्षिणा में सिर्फ एक किलो चावल
गया में गरीब बच्चों को मिल रही व्यवहारिक शिक्षा।

 अमित कुमार सिंह, बाराचट्टी: सहोदय आश्रम जहां अनुसूचित जाति के बच्चों को रेखा कुमारी और अनिल कुमार दोनों पति पत्नी औषधि, धान, सब्जी खेती करने का भौतिक ज्ञान के साथ-साथ गुणात्मक शिक्षा का पाठ पढा रहे हैं। गया जिले के बाराचटटी प्रखंड अंतर्गत काहुदाग पंचायत के कोहवरी गांव जंगलों के बीच में बसा है जहां आने और जाने का कोई रास्ता भी नहीं है। अनुसूचित बाहुल्य इस गांव में बच्चों को पठन-पाठन कराने की कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण इस गांव के बच्चे शिक्षा से वंचित थे। परंतु रेखा कुमारी और अनिल कुमार ने सहोदय आश्रम सेवा संस्था का गठन कर इस गांव के बच्चों को उस लायक बनाने का प्रयास कर रहे जिसके बदौलत कोई भी मनुष्य हर मुकाम को हासिल कर सकता है और वह है शिक्षा। 

सादे माहौल के बीच शिक्षा की लौ दिखता है बच्चों में

जंगल में संस्था के द्वारा चलाए जा रहे इस गुरूकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के चेहरे पर जरा भी तनाव नहीं। हंसते खेलते माहौल में यहां शिक्षा को गांव के गरीब बच्चे प्राप्त कर रहे हैं। इसके एवज में इन्हें गुरू दक्षिणा के रूप में महीने का एक किलो चावल अभिभावकों को देना पड़ता है जो बहुत कम है। मिट्टी का घर बना है, उसी के एक कोने पर गुरूकुल का हॉल है जहां 25 बच्चों को अनिल और रेखा पढ़ाने का काम करती हैं। ये दोनों अपने बच्चों के साथ-साथ पढाई कर रहे सभी छात्र-छात्राओं के साथ एक जगह सोते हैं और नित्य क्रिया और खाना बनाने तक की शिक्षा दे रहे हैं। 

छोटी-छोटी क्यारी बनाकर बच्चों को सिखाया खेती का तरीका

अनिल और रेखा बताते हैं कि बच्चे शिक्षा को लेकर जिधर अपना झुकाव बनाए उसे उसी माहौल में शिक्षण कार्य कराना चाहिए कोई दबाव नहीं कोई डांट या भय नहीं होनी चाहिए। अनिल कहते हैं कि बच्चों की मर्जी से हटकर शिक्षण करेंगे तो बच्चे कभी भी पढ़ नहीं पाएंगे। गांव के बच्चे हैं इनके माता-पिता मेहनत मजदूरी का काम करते हैं यहां बच्चे खेती के प्रति ज्यादा उत्सुक रहते हैं। हमने परती खेती को छोटी-छोटी क्यारी बनाया और इन बच्चों को उसमें खेती के लिए प्रेरित किया। आज हमारे स्कूल के अगल-बगल में सब्जी की अच्छी खेती है जिसका देखरेख सब बच्चे करते हैं। सब्जी का बीज बोने के बाद नियमित मेहनत कर सब्जी को बच्चों ने उपजाया इसी सब्जी का उपयोग हमलोग सभी कर रहे है।

बच्चों ने अठारह कट्ठे में लगाया धान

बच्चों के द्वारा जैविक धान की खेती कि गई है काफी अच्छा है। मंसूरी धान लगभग दस कट्ठे और देशी काला धान की खेती लगभग पांच कट्ठे भूमि में किया गया है। काला धान काफी मंहगा और औषधीय रूप में उपयोग किया जाता है। अनिल कुमार बताते हैं कि 25 तरह के औषधि की खेती भी इन बच्चों ने किया है शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी बच्चे से यहां के बच्चों में ज्ञान की कमी नहीं है। पहले क्लास का बच्चा तीसरा का किताब पढ़ रहा है। कहा कि गरीबों के बच्चों का भविष्य संवारने में जो करना पड़े करेंगे। 

अनिल कुमार और रेखा कुमारी पटना जिले के बिहटा थाना क्षेत्र के पहाड़पुर गांव के रहने वाले है। अनिल दिल्ली विश्व विद्यालय से डबल एमए और एमफिल किए हैं । पत्नी रेखा कुमारी दर्शन शास्त्र और योगा की शिक्षा प्राप्त की है। दोनों खुशी और चैन की जिंदगी बिताने के लिए काफी थे। पर वर्ष 2016 में दोनों बाराचटटी के कोहवरी में आकर भूदान की जमीन पर बच्चों को पढ़ाने लगे और गांव के साथ इलाके के गरीब बच्चे जो स्कूल जाने में अक्षम है उन्हें शिक्षित कर योग्य बनाने का मन बनाकर स्कूल का संचालन कर रहे हैं।

कोहवरी जंगल बीस वर्ष पूर्व नक्सली संगठनों का सुरक्षित स्थान से चर्चित था जहां जनता की अदालत लगाकर मामलों की सुनवाई नक्सली करते थे। वहां आज इस गुरूकुल ने सब कुछ बदल दिया है।

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