बिहार के दो विश्वदाय धरोहरों ने पूरे विश्व को शांति व ज्ञान दिया

गया ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लगाव व इनके संरक्षण को लेकर प्रत्येक वर्ष 1

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 05:35 PM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 05:37 PM (IST)
बिहार के दो विश्वदाय धरोहरों ने पूरे विश्व को शांति व ज्ञान दिया
बिहार के दो विश्वदाय धरोहरों ने पूरे विश्व को शांति व ज्ञान दिया

बोधगया : ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लगाव व इनके संरक्षण को लेकर प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को 1982 से विश्वदाय दिवस मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस वर्ष जटिल अतीत: विविध भविष्य विषय के साथ इस दिवस को दुनिया को मनाने के लिए अभिप्रेरित किया। ताकि अपने सांस्कृतिक व प्राकृतिक धरोहरों के प्रति सबका समान रूप से जिम्मेदारी की प्रेरणा प्राप्त हो सके। इस वैश्विक महामारी कोरोना के वर्तमान खतरे के बावजूद भी दुनिया के विभिन्न देशों में यह दिवस मनाया जा रहा है।

भारत में आज 30 सांस्कृतिक, सात प्राकृतिक एवं एक मिश्रित प्रकृति विश्व धरोहर सूची में शामिल स्मारक व स्थल है। बिहार के नालंदा और बोधगया का महाबोधि मंदिर दो प्रमुख स्थल भी इस सूची में शामिल हैं। इन दोनों स्थलों की ऐतिहासिक व मानवीय मूल्यों की पहचान ने विश्व के विभिन्न देशों को शांति व ज्ञान प्रदान करने में योगदान निभाया है। इन स्मारकों की बड़ी संख्या को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग संरक्षित कर रही है। यदि साझा व सामुदायिक जिम्मेवारी हो तो हम अपने स्मारकों को अपने भावी पीढि़यों को उसके मूल स्वरूप में सौंप सकते हैं। तभी विश्व धरोहर दिवस मनाने की सार्थकता होगी। उक्त बातें रविवार को विश्व विरासत दिवस पर आयोजित वेबिनार में बोधगया पुरातत्व संग्रहालय के सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद डॉ. शंकर शर्मा ने अपने संबोधन में कही। उन्होंने कहा कि महान पुरातत्वविद कनिघम द्वारा लिए गए तथा ब्रिटिश म्यूजियम में संग्रहित 19 वीं शताब्दी के दुर्लभ चित्रों के माध्यम से आरंभ से आज तक महाबोधि मंदिर की सरंचनात्मकता, निर्माण, जीर्णोद्धार और कायांतरण की यात्रा बहुत ही रोचक और रोमांचक वर्णन के साथ प्रस्तुत किया गया है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में बु्द्ध के परिनिर्वाण के बाद जिस स्थान पर बोधिवृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, वहां सम्राट अशोक ने एक वज्रासन तथा एक विहार का निर्माण कराया था। उसी स्थान पर गांधार शैली के मंदिर का निर्माण अनुमानत: ईसवी सन में आरंभ किया गया तथा वर्तमान मंदिर गुप्त काल पांचवी-छठी शताब्दी में बना हुआ माना जाता है। काल क्रम में कई बार यह मंदिर ध्वस्त और पुननिर्मित हुआ। डॉ. शर्मा ने अपने अनुसंधान में महाबोधि मंदिर के परिसर में तीन वज्रासन पाया है तथा उनकी सरंचना और उनके काल का गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार नया खोजा गया वज्रासन संभवत सम्राट अशोक द्वारा बनवाया हुआ है। इस वेबिनार में पुरातत्वविद डॉ. गौतमी भटाचार्या, डा. एके नायक, प्रसन्ना दीक्षित, भागीरथी गार्तिया, इशानी सिन्हा, डॉ. रेडका वायन्, किरण लामा, रूपक सिन्हा, थाईलैँड के डॉ. पिटर स्किलिग, चान वुंग सियोंग ने भाग लिया।

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