मंत्री को रिश्‍वत दे अपने नाम करा लिए थे दो गांव, बिहार में घूसखोरी का ऑन रिकॉर्ड मामला कर देगा हैरान

भ्रष्‍टाचार की जड़ें आज बड़ी गहरी हो गई हैं। लेकिन यह नई बात नहीं है। प्राचीन समय में भी रिश्‍वत (उत्‍कोच) दिया जाता था। रिश्‍वत का पहला प्रमाणिक प्रमाण रोहतास के प्रसिद्ध मां ताराचंडी धाम में है। यह शिलालेख रिश्‍वतखोरी की कहानी बताती है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 05 Jun 2021 12:51 PM (IST) Updated:Sat, 05 Jun 2021 12:51 PM (IST)
मंत्री को रिश्‍वत दे अपने नाम करा लिए थे दो गांव, बिहार में घूसखोरी का ऑन रिकॉर्ड मामला कर देगा हैरान
प्रसिद्ध शक्तिपीठ ताराचंडी धाम का प्रवेश द्वार। जागरण

ब्रजेश पाठक, सासाराम  (रोहतास)। रिश्‍वतखोरी (Bribery) कोई आज की बात नहीं है। प्राचीन ग्रंथों में भी रिश्‍वतखोरी की बातें मिलती रही हैं। लेकिन सासाराम के ताराचंडी में 1169 में ख्यारवाल वंश के शासक महानायक प्रताप धवल देव के लिखवाए गए शिलालेख को रिश्‍वत लेने का पहला प्रमाणिक व लिखित शिलालेख माना जाता है। इसमें राजा के मंत्री (अधिकारी ) को उत्कोच (रिश्वत ) देकर दो गांव का जाली ताम्रपत्र बनवा लिया गया हो। लगभग एक हजार वर्ष पूर्व के इस लिखित प्रमाणिक साक्ष्य ने यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार की कहानी नई नहीं बल्कि बहुत पुरानी है। पहले भी राजकीय कार्य अनैतिक तरीके से कराए जाते थे और राजा के अधिकारी उत्कोच (रिश्वत ) लेकर जाली ताम्रपत्र तक जारी कर देते थे। 

(माता ताराचंडी की भव्‍य प्रतिमा। जागरण)

पलामू के राजा की प्रसिद्धि‍ के लिए लिखवाया था शिलालेख

बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से महज छह किलोमीटर पूरब कैमूर पहाड़ी में देश के 51 शक्तिपीठों में से एक मां ताराचंडी विराजमान हैं। यह स्थल एक हजार वर्ष पूर्व भी प्रसिद्ध् स्थानों में से एक था। यहां उस समय  गहड़वाल वंश के शासक राजा विजय चंद्र का शासन था। यहां के महानायक पलामू के प्रताप धवल देव थे। प्रताप धवल देव इस स्थल की प्रसिद्धि के लिए ही यहां शिलालेख लिखवा अपनी जनता को यह संदेश दिया कि राजा विजयचंद्र का जारी ताम्रपत्र जाली है। सोनहर के दो लोगों ने राजा के अधिकारी (मंत्री ) को रिश्वत देकर ताम्रपत्र जारी करा किरहंडी व बड़ैला गांव को अपने नाम दान करा लिया है। जो कि पूरी तरह गलत है। गलत घोषणापत्र जारी कराने वाले का सूई की नोक भर भी उस गांव पर अधिकार नहीं है। अपने वंशजों को भी निर्देश दिया कि वे उस गांव का राजस्व प्राप्त करने या दान करने के लिए सक्षम होंगे ।

1169 का है ताराचंडी शिलालेख

रोहतास के पुरातात्विक व सांस्कृतिक धरोहरों पर शोध कर चुके इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि ताराचंडी शिलालेख देश का पहला प्रमाणिक व लिखित दस्तावेज  है जिसमें राजा के अधिकारी को उत्कोच (रिश्वत) देकर जाली ताम्रपत्र जारी करा दिया गया हो। यह शिलालेख ख्यारवाल वंश के महानायक प्रताप धवल देव द्वारा विक्रम संवत 1225 के ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की तृतिया तिथि यानि 16 अप्रैल 1169 को लिखवाया गया है। 212 सेमी लंबे और 38 सेमी चौड़े पत्‍थर पर यह शिलालेख लिखवाया गया था। ये शिलालेख ताराचंडी देवी प्रतिमा के ठीक उत्तर तरफ स्थित है। इस शिलालेख में राजा के रिश्‍वत लेने का वर्णन किया गया है। राजा के अधिकारियों को रिश्‍वत देकर गांव को पाने की मंशा के बारे में उल्‍लेख किया गया है। राजा के अधिकारी ने एक ताम्रपत्र से राजा का जाली हस्‍ताक्षर करके ये सब काम किया था। इसकी जानकारी खुद महानायक को नहीं थी। लेकिन जैसे ही इस जाली घोषणापत्र का पता चला तो उन्‍होंने इस ताम्रपत्र को ही रद कर दिया।

(पटना संग्रहालय में रखा ताम्रपत्र।)

1166 में बना था जाली ताम्रपत्र, पटना के संग्रहालय में है 

गहड़वाल वंश का जिले का पहला अभिलेख सोनहर का ताम्रपत्र है। जिसे राजा विजयचंद्र के राजमोहर से  एक घोषणापत्र जारी हुआ था। यह ताम्रपत्र विक्रम संवत 1223 के भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की नवीं तिथि सोमवार यानी पांच सितंबर 1166 को जारी किया गया था। इस ताम्रपत्र में सोनहर के दो लोगों को कुम्हउ व बड़ैला गांव दान में दिए जाने की घोषणा की गई है। जिसे महानायक प्रताप धवल देव ने जाली करार दिया। यह ताम्रपत्र सोनहर निवासी राम खेलावन को खेत जोतते समय प्राप्त हुआ था, जिसे उनके पौत्र गरीबन महतो ने राष्ट्रीय संपत्ति समझकर 11 मार्च 1959 को तत्कालीन आयुक्त डॉ. श्रीधर वासुदेव को सौंप दिया। तब से यह ताम्रपत्र पटना संग्रहालय में है।

फ्रांसिस बुकानन ने की थी इस शिलालेख की आधिकारिक खोज 

फ्रांसिस बुकानन बंगाल चिकित्सा सेवा के चिकित्सक थे । वे कोलकता में 1794 से 1815 ई तक रहे। इसी बीच  भारतीय पुरातात्विक व धार्मिक क्षेत्राों का सर्वेक्षण भी उन्‍होंने किया। इसी क्रम में वे रोहतास में भी सर्वेक्षण कार्य कर कई शिलालेख व ताम्रपत्रों की खोज की। 1812-13 में ताराचंडी शिलालेख की खोज भी बुकानन ने की थी। 1823 में हेनरी कालब्रुक ने इसे पढ़ा व आधा-अधूरा अनुवाद कराया, लेकिन यह पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका था। डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि वे उस शिलालेख का पूरी तरह अनुवाद कराया है। शिलालेख संस्कृत में है तथा इसकी लिपि प्रारंभिक नागरी है।

 

(ताराचंडी धाम में शिलालेख।)

उत्‍कोच का मतलब होता है रिश्‍वत या घूस  

डाॅ. श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि उत्कोच संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ रिश्वत या घूस है। इसे निंदनीय माना गया है। बताते हैं कि प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है कि भगवान महावीर के नाना राजा चेटक से राजा श्रोणिक के पुत्र अभय कुमार मिलने गए तो कोतवाल उन्हें महल के अंदर नहीं जाने दिया। इसके बाद कोतवाल व सिपाहियों को उत्कोच देकर उन्‍होंने महल में प्रवेश किया। आदि पुराण व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी उत्कोच (रिश्वत ) देकर काम कराने की बात आई है। लेकिन ताराचंडी धाम पर महानायक प्रताप धवल देव का शिलालेख देश का पहला शिलालेख है जो लिखित व प्रमाणिक रूप में प्रसिद्ध देवी स्थल पर लगाया गया जिससे सभी तक अधिकारी के घूस लेकर गलत दस्तावेज बनाने की बात पहुंच सके। 

ऐसे पहुंचे ताराचंडी धाम 

सासाराम से ताराचंडी महज छह किलोमीटर पूरब राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर सासाराम से डेहरी ऑन सोन के रास्ते में है। सासाराम रोहतास जिला का मुख्यालय है तथा यह पंडित दीन दयाल -गया रेलखंड के बीच प्रमुख रेलवे जंक्शन है तथा यहां अधिकांश मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव है। सड़क मार्ग से आने के लिए यह वाराणसी से 125 किलोमीटर पूरब, पटना से 160 किलोमीटर दक्षिण व गया से 150 किलोमीटर पश्चिम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर स्थित है। वाराणसी, गया व पटना तक हवाई मार्ग से पहुंच वहां से सड़क या रेलमार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। सासाराम से ताराचंडी के लिए ऑटो, टैक्सी आदि दिनभर उपलब्ध है।

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