यही है बिहार की राजनीति, विधान परिषद चुनाव में कभी लड़े थे आमने-सामने चुनाव, अब दोनों एक ही दल में
बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) चुनाव में उम्मीदवार तय करने में इस बार भाजपा-जदयू जैसे गठबंधन को काफी माथापच्ची करनी पड़ सकती है। कारण 2014 में दोनों उम्मीदवार आमने-सामने चुनाव लड़े थे। इस बार 2021 में बदले गठबंधन में दोनों उम्मीदवार एक ही दल में हैं।
जागरण संवाददाता, गया। बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) चुनाव में उम्मीदवार तय करने में इस बार भाजपा-जदयू जैसे गठबंधन को काफी माथापच्ची करनी पड़ सकती है। कारण 2014 में दोनों उम्मीदवार आमने-सामने चुनाव लड़े थे। इस बार 2021 में बदले गठबंधन में दोनों उम्मीदवार एक ही दल में हैं।
ऐसे में जब एक हीं दल में होने के कारण दोनों उम्मीदवार अपने-अपने स्तर से दावा कर सकते हैं। अभी उम्मीदवार बनाने की चर्चा जोरों पर है। लेकिन, जदयू और भाजपा ने गठबंधन का उम्मीदवार का पत्ता नहीं खोला है। इस कारण से दोनों उम्मीदवार की सांसे अटकी हुई है। गठबंधन किसे उम्मीदवार बनाएगी। यह अभी तय नहीं हुआ है। स्थानीय निकाय गया विधान परिषद चुनाव की अभी अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है। लेकिन, कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
जाने कौन थे आमने-सामने
वर्तमान में स्थानीय निकाय गया विधान परिषद चुनाव सीट पर जदयू का कब्जा है। जदयू के सीट पर मनोरमा देवी है, जो गया-जहानाबाद-अरवल जिले का विधान परिषद में प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इन्होंने 2014 में चुनाव लड़कर विजयी हुई थी। उस वक्त जदयू-राजद-कांग्रेस का गठबंधन था। इनके प्रतिबद्वंदी गठबंधन दल भाजपा-हम-लोजपा-रालोसपा के उम्मीदवार डॉ.अनुज कुमार सिंह थे।
2021 में डॉ. अनुज पुन: जदयू में हैं। ऐसे में आमने-सामने चुनाव लडऩे वाले इसी दल से हैं। लेकिन, गठबंधन बदलने के कारण भाजपा-जदयू-हम-लोजपा पाटी है। बिहार में बड़े दल होने के कारण स्थानीय निकाय गया विधान परिषद सीट पर भाजपा भी दावा कर सकती है।
जानकार बताते चलें कि 2019 में लोकसभा चुनाव में गया संसदीय सीट को भाजपा ने बड़े भाई होने के नाते छोड़ दिया था। यह सीट के खाते में चला गया था। इसी से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि विधान परिषद चुनाव में भी जदयू की यह सीट भाजपा को जा सकती है। अगर ऐसा होता है तो स्थानीय निकाय गया विधान परिषद सीट के लिए भाजपा को एक सशक्त उम्मीदवार को तलाश करना पड़ेगा।
जिनका जनाधार गया के साथ-साथ जहानाबाद और अरवल जिले के त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधि और नगर निकाय के वार्ड पार्षद के बीच होना चाहिए। कारण विधान परिषद चुनाव में पंचायत, जिला पार्षद और नगर निकाय के प्रतिनिधि भी मतदाता होते हैं।