पंचायत चुनाव में प्रचार का ये रंग, औरंगाबाद में सन रूफ वाले लग्जरी वाहनों में दिख रहे 'गरीबों के मसीहा'

लग्‍जरी कारें शायद ही कभी कस्बाई इलाकों में दिखती थी। शहरों से कभी ऐसी गाडि़या गांव में आती थी तो लोग कौतूहूलवश देखने पहुंचते थे। लेकिन पंचायत चुनाव के नामांकन की प्रक्रिया के दौरान यह सब धारणाएं बदल गई। अब सनरूफ वाले वाहन तो आम हो गए हैं ।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 04:41 PM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 04:41 PM (IST)
पंचायत चुनाव में प्रचार का ये रंग, औरंगाबाद में सन रूफ वाले लग्जरी वाहनों में दिख रहे 'गरीबों के मसीहा'
मुखिया जी के चुनाव में गांवों में भी खूब दिख रहीं लग्‍जरी गाडि़यां, सांकेतिक तस्‍वीर।

दाउदनगर (औरंगाबाद), संवाद सहयोगी। दाउदनगर और गोह प्रखंड में जिला परिषद सदस्य, मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य, वार्ड सदस्य और पंच के चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया खत्म हो गई है, और प्रत्‍याशी जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लग गए हैं। नामांकन और चुनाव प्रचार के वक्त जो वैभव दिखा उसे देख कर कोई यह नहीं अनुमान लगा सकता कि वाकई गांव में गरीबी है। गांव-गांव तक लग्जरी वाहन, मिनरल वाटर, बोतल बंद वाटर पहुंच गए हैं। विधानसभा चुनाव में भी कई ऐसे प्रत्याशी थे जो इतना संसाधन और धन नामांकन में खर्च नहीं कर सके, जितना पंचायत आम चुनाव में कई-कई प्रत्याशियों ने खर्च किया।

सनरूफ गाडि़या, खुले छत वाली लग्‍जरी कारें शायद की कभी कस्बाई इलाकों में दिखती थी। कहीं शहरों से ऐसी गाडि़या गांव में आती थी, तो लोग कौतूहूलवश देखने पहुंचते थे। उसका एक अपना आकर्षण होता था, लेकिन पंचायत चुनाव के नामांकन की प्रक्रिया के दौरान यह सब धारणाएं बदल गई। सनरूफ वाले वाहन तो आम हो गए हैं अब। दर्जनों प्रत्याशियों ने सनरूफ वाहन का इस्तेमाल नामांकन के क्रम में गांव से प्रखंड सह अंचल कार्यालय या अनुमंडल कार्यालय आने जाने के लिए इस्तेमाल किया। बोतलबंद पानी के अलावा कहीं-कहीं जार वाला आरओ पानी दिखा। चापाकल का पानी तो अब कोई पीने के लिए कार्यकर्ता तैयार ही नहीं दिखता।

चुनाव-प्रचार के वक्त नेताजी की आन बान शान में कमी नहीं दिखे, इसका पूरा ख्‍याल रखा जाता है। हालांकि कई प्रत्याशी यह प्रयास भी करते दिखे कि अधिक वैभव न दिखे। साधारण रूप से प्रचार किया, जबकि खर्च की उनकी क्षमता है। बहरहाल चुनाव प्रचार के रंग को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि गांव का हाल गुलाबी नहीं है। गांव की तकदीर बदलने, उनका विकास करने का दावा करने वाले अभ्यर्थी नामांकन से पहले ही और नामांकन के बाद चुनाव प्रचार में भी यह नारा लगाते दिखे- क्यों पड़े हो चक्कर में कोई नहीं है टक्कर में। जबकि अभी कई पायदान चढ़ाई बाकी है। वैसे सबकी हैसियत तो वह जनता ही तय करेगी जो उनको चुनने वाली है। मतदान करने वाले ही यह तय करेंगे कि कौन प्रत्याशी टक्कर में था और कौन कुछ और चक्कर में था।

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