BPSC से अफसर बनीं ये बेटियां, न कोचिंग और न नोट्स, सेल्‍फ स्‍टडी से हासिल किया बड़ा मुकाम

बीपीएससी की 64वीं संयुक्‍त प्रतियोगिता परीक्षा का परिणाम रोहतास जिले के लिए काफी सुखद रहा। यहां उन लड़कियों ने सफलता हासिल की है जिनके लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं। न पारिवारिक और न सामाजिक। फिर भी ये अब अधिकारी बनकर अफसर बिटिया हो गई हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Fri, 11 Jun 2021 07:49 AM (IST) Updated:Fri, 11 Jun 2021 07:49 AM (IST)
BPSC से अफसर बनीं ये बेटियां, न कोचिंग और न नोट्स, सेल्‍फ स्‍टडी से हासिल किया बड़ा मुकाम
बीपीएससी में सफल सुप्रि‍या, शीबू, जया और अमृता। फाइल फोटो

ब्रजेश पाठक, सासाराम (रोहतास)। आइना कभी झूठ नहीं बोलता है, आप मुझे आइना लाकर दे दीजिए, उसी के सामने बैठकर मैं तैयारी करूंगी। विश्‍वास दिलाती हूं कि मैं राज्य की सर्वाधिक प्रतिष्ठित परीक्षा पास करके इस क्षेत्र की पहली अफसर बिटिया बनूंगी। यह किसी कहानी की पंक्ति नहीं बल्कि हाल ही में बीपीएससी  की घोषित 64 वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा (BPSC 64 Combined Copetitive Exams) में सफल हुई घोर नक्सल क्षेत्र माने जाने वाला रोहतास प्रखंड की बेटी सुप्रिया आनंद की हकीकत है। वहीं दूसरी ओर, बचपन में बिना पिता का साया उठ जाने के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए निजी विद्यालय में लाइब्रेरी अटेंडेंट की मामूली नौकरी करने वाली जया हों या आंगनबाड़ी सेविका की बेटी अमृता। इन बेटियों के आगे बढ़ने का माद्दा व विपरीत परिस्थितियों की चुनौतियों ने इन्हें अब अफसर बिटिया बना दिया है। आर्थिक कमी से भले ही वे न तो कोचिंग ज्वाइन कर पाई न ही नोट्स ही खरीद पाई बावजूद घर पर तैयारी कर पहले ही प्रयास में सफलता हासिल कर लिया।इन बेटियों की सफलता ने बता दिया है कि शिक्षा के प्रति न केवल नजरिया बदला है बल्कि परिवार वालों को बेटियों के प्रति भरोसा भी बढ़ा है।

नक्सल प्रभावित क्षेत्र से पहली बार अफसर बिटिया बनी सुप्रिया आनंद

डेहरी-यदुनाथपुर मार्ग पर कैमूर पहाड़ी की तलहटी में स्थित रोहतास प्रखंड को एक दशक पूर्व तक नक्सल प्रभावित क्षेत्र घोषित था। नक्सलियों के लिए यह लाल गलियारा के रूप में जाना जाता था। बेटियों की शिक्षा की लगभग मनाही थी। दिन में भी इस मार्ग पर आने-जाने के लिए हिम्मत जुटानी पड़ती थी। तब यहां लोगों के भाग्य का फैसला जन अदालत में नक्सली तय करते थे। प्रखंड के बंजारी निवासी साधारण किसान राजू सिंह व उनकी पत्‍नी उषा सिंह उच्च शिक्षा के बाद भी बेरोजगार थे। बेटी सुप्रिया आनंद की पहले सरस्वती शिशु मंदिर में व उसके बाद पास के ही मिशनरी स्कूल जेम्स में पढ़ाई पूरी कराई। वर्ष 2018 में सुप्रिया ग्रैजुएट हो गई। पिता का सपना था कि बेटी अफसर बने। पिता के सपनों को पूरा करने के लिए वह तैयारी में जुट गई। बीपीएससी संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल हुईं। सुप्रिया बताती हैं कि वे घर पर पढ़ाई करके पहले पीटी व उसके बाद मेंस की परीक्षा पास की। साक्षात्कार के लिए पिता बाहर के कोचिंग में जाकर तैयारी करने के लिए कहे भी तो वह तैयार नहीं हुई। पिताजी से तीन फीट लंबा आइना मंगवाया और खुद उसे दीवार में लगा उसके सामने साक्षात्कार की तैयारी शुरू की। इंटरनेट के जरिए कई प्रतिभागियों से पूछे गए प्रश्नों का नोट्स तैयार की व खुद से प्रश्‍न भी पूछती और उसका जवाब भी आईने के सामने देती। परिणाम बेहतर रहा और उसे इस परीक्षा में 284 वां स्थान प्राप्त हुआ। उसका चयन रेवेन्यू आफिसर के पद के लिए हुआ है।

पिता का साया छि‍ना तो मां के संघर्ष ने जया को बना दिया अफसर

करगहर प्रखंड क्षेत्र के शहर मेदनी की रहने वाली जया पांडेय जब 10 साल की थीं तभी पिता जनार्दन पांडेय का निधन हो गया। निधन के बाद बच्चों को पढ़ाने का बोझ मां के कंधे पर आ गया। पिता डीएवी में अंग्रेजी के शिक्षक थे। मां ने पिता की मौत के बाद गांव लौटने का फैसला नहीं कर उसी विद्यालय में लाइब्रेरी अटेंडेंट के रूप में काम किया। उनके संघर्ष ने जया को अफसर बनने के लिए प्रेरित किया। सासाराम से स्‍नातक तक की शिक्षा के बाद वह बीपीएससी की तैयारी घर से ही करने लगी। पहले प्रयास में ही उसे सफलता हासिल हो गई। जया बताती हैं कि यह मुकाम उन्हें मां के संघर्ष व बेटी पर भरोसा के कारण मिल पाया है। जया का चयन आपूर्ति पदाधिकारी के पद पर हुआ है तथा उसे 1014 वीं रैंक मिली है। जया बताती हैं कि उसने बचपन में ही ठान लिया था कि वे मां के संघर्ष को सार्थक अंजाम देंगी। इसके लिए पढ़ाई के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। उसने लगातार मेहनत कर इस परीक्षा के लिए तैयारी की। बताती हैं कि विपत्ति व परेशानी मानव को संघर्ष के लिए तैयार करता है। उसे तत्काल उबर काम में लगना चाहिए। बताती हैं कि उसकी तैयारी अभी जारी है और वे आगे के लिए परिश्रम भी कर रही हैं। उनका लक्ष्य यूपीएससी में सफल होकर पापा के सपने को पूरा करना है। बताती हैं कि मां ने बेटा व बेटी के बीच कोई फर्क नहीं की।

(परिवार के सदस्‍यों के साथ राजलक्ष्‍मी और अमृता (दांये)।फाइल फोटो)

लिपिक से अधिकारी का सफर तय किया अमृता ने

सासाराम के वार्ड संख्या तीन तकिया मोहल्ला की रहने वाली अमृता कुमारी ने पहले प्रयास में ही सफलता हासिल किया है। वह केंद्रीय विद्यालय अरूणाचल प्रदेश में लिपिक के पद पर कार्यरत है। अमृत का चयन आपूर्ति अधिकारी के पद पर हुआ है। सासाराम से मैट्रिक, इंटरमीडिएट तथा स्‍नातक तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद अमृता का चयन दो वर्ष पूर्व केंद्रीय विद्यालय अरुणाचल प्रदेश में कनीय लिपिक के पद पर हो गया। हालांकि वह तबतक बीपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी। चार भाई बहनों में सबसे बड़ी अमृता ने पहले प्रयास में ही यह सफलता हासिल की। मां शोभा उपाध्याय करगहर के ठोरसन आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका हैं तो पिता किराना दुकान चलाते हैं। बचपन से ही मेधावी अमृता का अफसर बनने का जिद उसे बीपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा पास कर आपूर्ति अधिकारी बनाने में सहायक साबित हुआ है। अमृता बताती है कि वह और बेहतर करने के लिए कठिन परिश्रम करेगी तथा यूपीएससी के लिए भी प्रयास करेगी।

टीचर से इंस्पेक्टर के पद पर पहुंचीं स्मृति

सासाराम के जगदेव नगर मोहल्ला की रहने वाली स्मृति सिंहा नोखा के सर्वोदय मध्य विद्यालय में नगर शिक्षक के रूप मेंं कार्यरत हैं। पिता मदन प्रसाद सेवानिवृत्त स्वास्थ्यकर्मी हैं जबकि माता गृहिणी। स्मृति को हमेशा अफसर का पद प्रभावित करता रहा है। बीपीएससी की तैयारी घर से ही शुरू कर मेरिट लिस्ट में 1551 वां स्थान प्राप्त की। उनका चयन आपूर्ति निरीक्षक के पद पर हुआ है। स्मृति बताती हैं कि माता-पिता का सपना था कि उनकी बेटी अधिकारी के पद पर आसीन हो। मैने बस उनके सपने को साकार करने का प्रयास किया है।

किसान की बेटी राजलक्ष्मी बनीं कल्याण पदाधिकारी

बिक्रमगंज के निवासी व साधारण किसान कपूर चंद सिंह की पुत्री राजलक्ष्मी भी बीपीएससी की परीक्षा में सफल होकर अधिकारी बनी है। घर में शिक्षा का खास माहौल नहीं होने के बाद भी उसके महत्व को मां-बाप ने समझ बेटी पर भरोसा किया । राजलक्ष्मी 1574 वां रैंंक लाकर अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण पदाधिकारी बनी हैं। राजलक्ष्मी की मां सुमित्रा देवी गृहणी है। बताती हैं कि वह घर में काफी मेहनत कर पढ़ाई करती थी। बिक्रमगंज जैसे छोटे जगह से मैट्रिक व स्‍नातक तक की पढ़ाई पूरी कर यहीं से तैयारी भी की। अति साधारण परिवार की बेटी न तो कोचिंग ले पाई न महानगरों में रहकर तैयारी की। घर से पढ़ाई कर यह सफलता हासिल की।

पूर्व सैनिक की बेटी शीबू बनीं अफसर

पूर्व सैनिक बृजविहारी सिंह की पुत्री शीबू बीपीएसससी की परीक्षा में 747 वीं रैंक प्राप्त कर रेवेन्यू आफिसर बनी है। पिता भारतीय सेना में सैनिक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत हो गए। केंद्रीय विद्यालय से 12 वीं तक की पढा़ई करने वाली शीबू ने ग्रेजुएशन एवं पोस्ट ग्रेजुएशन दिल्ली यूनिवर्सिटी से की है। सफलता का श्रेय वह अपने माता पिता एवं बड़े पिता तथा भाजपा के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह को देती है। शीबू बताती हैं कि वे बचपन से अफसरों के मान-मर्यादा को देखी है। बचपन से ही उसका सपना था कि वह भी अफसर बने। पहले ही प्रयास में यह सफलता हासिल कर ली। शीबू कहती हैं कि उनकी पढ़ाई सासाराम में भी कुछ दिनों तक हुई। इसी बीच पिताजी का स्थानांतरण दिल्ली हो गया। बड़े पिता ने दिल्ली में ही पढ़ाई की व्यवस्था कराई। जिसके बाद वह लगातार परिश्रम कर बीपीएससी परीक्षा में पहली बार में ही सफल हो गई। बताती है कि बेटियों पर अगर भरोसा बढ़े और बचपन से पढ़ाई के लिए प्रेरित किया जाए तो वे निश्चित रूप से घर परिवार का नाम रोशन करेंगी।

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