गया की ये दीदियां तो बड़े कमाल का काम करती हैं, पौधों से संवर रहा घर तो पर्यावरण को भी संजीवनी

गया में जीविका दीदियां पर्यावरण संरक्षण में अहम योगदान दे रही हैं। ये पौधों की नर्सरी लगाकर अपनी आर्थिक स्थिति तो संवार ही रहीं हैं साथ ही ये पर्यावरण को भी संजीवनी दे रही हैं। कई दीदियां इस कार्य में लगी हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 05 Jun 2021 02:03 PM (IST) Updated:Sat, 05 Jun 2021 02:03 PM (IST)
गया की ये दीदियां तो बड़े कमाल का काम करती हैं, पौधों से संवर रहा घर तो पर्यावरण को भी संजीवनी
नर्सरी के पौधों को सींचतीं जीविका दीदी। जागरण

गया, जागरण संवाददाता। जीविका समूह (Jeevika Groups) से जुड़ी महिलाएं पर्यावरण संरक्षण (Environment Protection) में भी अपना योगदान दे रही हैं। गया जिले में अनेक दीदियों ने अपनी निजी जमीन पर नर्सरी बना रखी है। इन नर्सरी से इन्हें आमदनी तो होती ही है। साथ ही आसपास के लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी करती हैं। गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के कुतलूपुर पंचायत अंतर्गत जोलह बिगहा की रजिया देवी के यहां सबसे बड़ी नर्सरी है। रजिया बताती हैं कि डेढ़ एकड़ जमीन पर उनकी नर्सरी है। जिनमें अभी ढाई लाख पौधे तैयार हो रहे हैं। इनमें सागवान, महोगनी, शीशम, आंवला, अमरूद, करंज है। अभी ये कटहल व महुआ का भी बीज नर्सरी में डालने जा रही हैं। रजिया ने बताया कि पिछले साल मनरेगा को 50 हजार व वन विभाग को 26 हजार पौधे उपलब्ध कराए थे। पिछले साल ढाई लाख तक की आमदनी हुई थी। इस साल भी अच्छी आमदनी की उम्मीद है।

विनीता ने 10 कट्ठा में लगाए हैं 22 हजार पौधे

खिजरसराय प्रखंड के शिसवर पंचायत अंतर्गत पहाड़पुर गांव में मां वैष्णो देवी स्वयं सहायता समूह से विनीता कुमारी जुड़ी हुई हैं। ये ग्रेजुएट हैं। इन्होंने अपनी नर्सरी से पिछले साल 21 हजार पौधे विभाग को उपलब्ध कराए थे। तब उन्हें 2.20 लाख रुपये मिले थे। विनीता ने पौधों की नर्सरी को अच्छी तरह से चलाने के लिए जीविका से प्रशिक्षण भी लिया है। वह बताती हैं कि इससे जहां रोजगार भी मिला है वहीं आसपास के लोगों को अब पौधा खरीदने के लिए दूर शहर तक नहीं जाना पड़ता है। आसपास के गांव वाले भी उनके इलाके में ही नर्सरी बन जाने से खुश हैं। इनकी नर्सरी में अभी सीसम, महोगोनी, अमरूद, आंवला, करंज तैयार है। ये हर दिन सुबह में अपनी नर्सरी में झरना से पानी देती हैं।

तेज धूप से पौधे झुलसे नहीं इसका रखती हैं ख्याल

नर्सरी की तकनीक की पूरी जानकारी विनीता को है। वे बताती हैं कि अभी तेज धूप हो रही है। ऐसे में इन छोटे पौधों को गर्मी-धूप से बचाने के लिए सजग रहना पड़ता है। ट्यूब में मिट्टी भरने, कीटनाशक व जैविक खाद आदि डालने का सभी काम ये खुद कर लेती हैं। विनीता बताती हैं कि हर दिन दो से तीन घंटा नर्सरी में समय देना पड़ता है। पर्यावरण दिवस पर यह संदेश देती हैं कि पौधे लगाना पर्यावरण की स्वच्छता के लिए बहुत जरूरी है। कहती हैं कि हाल के वर्षों में जब पेड़ लगने लगे हैं तो बारिश भी ठीक होने लगी है। पानी का लेयर भी पहले से बेहतर हुआ है। पेड़ से हम इंसानों को छाया और ताजी हवा दोनों मिलती है। फलदार पेड़ फल भी देते हैं।जीविका के जिला कार्यक्रम प्रबंंधक मुकेश सासमल कहते हैं कि गया जिले में अभी जीविका से जुड़ी हुई छह दीदियों की नर्सरी वन विभाग से पंजीकृत हैं। यहां से तैयार पौधे वन विभाग को दिए जाते हैं। अतिरिक्त पौधे तैयार रहने पर मनरेगा के लिए भी उपलब्ध कराया जाता है। नर्सरी प्रबंधन की इन्हें ट्रेनिंग भी दी जाती है।

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