पेड़ के पत्ते खाकर एक सप्ताह तक चीन से लड़ी जंग, ऐसी थी बिहार के शूरवीर हवलदार हरि साहू की अमर कहानी

Bihar National News हवलदार हरि साहू को महार रेजिमेंट ने दिया था प्रशस्ति पत्र मध्य प्रदेश के सागर में मिला था नायब सूबेदार का मानक पद भारत-पाकिस्तान भारत-चीन और मुक्ति वाहिनी वाले युद्ध में शामिल। युद्ध लड़ते रहे लेकिन पीठ दिखाकर भागे नहीं।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 02:20 PM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 02:20 PM (IST)
पेड़ के पत्ते खाकर एक सप्ताह तक चीन से लड़ी जंग, ऐसी थी बिहार के शूरवीर हवलदार हरि साहू की अमर कहानी
महार रेजिमेंट से हवलदार हरि साहू को मिले मेडल। जागरण।

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। हवलदार हरि साहू की वीरता और सादगी की कहानी अद्भुत है। भारत चीन युद्ध के वक्त एक बार ऐसा भी उनको मौका मिला, जब खाने के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं था। नतीजा एक सप्ताह तक पेड़ के पत्ते को चबा और खाकर वे जीवित रहे। युद्ध लड़ते रहे, लेकिन पीठ दिखाकर भागे नहीं। वह कहते थे कि फौज में जो वह काम कर रहे हैं। वास्तव में नौकरी नहीं कर रहे हैं। बल्कि देश के लिए काम करने का आनंद ले रहे हैं। गोला बारूद फटने की घटना हो या उसकी आवाज हो।

हवलदार हरि साहू इसका आनंद लेते थे। ऐसे वीर जवान का निधन इसी वर्ष 24 जून को हसपुरा प्रखंड के रघुनाथपुर गांव में हो गया। उनके पुत्र अमरेश कुमार ने बताया कि वे बताते थे कि 1971 के युद्ध में एक समय ऐसा आया। जब एक सप्ताह तक विभिन्न पेड़ों के पत्ते को चबाकर जीवित रहे। बताया कि वे बराबर बच्चों को फौज की कहानियां सुनाया करते थे। अमरेश ने अपने पिता को मिले मेडल और प्रशस्ति पत्र दैनिक जागरण को दिखाया। उन्हें एक बार नहीं दर्जनों बार मेडल से सम्मानित किया गया है।

महार रेजिमेंट ने मध्य प्रदेश के सागर में 29 जनवरी 1982 को उन्हें नायब सूबेदार का मानद पद से सम्मानित किया। लेफ्टिनेंट जनरल बीसी नंदा की तरफ से ब्रिगेडियर पीएस वारियर ने उन्हें प्रशस्ति पत्र सौंपा था। बताया कि वर्ष 1961, 1965 और 1971 के तीन युद्धों में वे शामिल रहे थे। भारत पाकिस्तान, भारत चीन और बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी के पक्ष में वे युद्ध लड़े।

गुमनाम बने रहे योद्धा हरि साहू

(शूरवीर हवलदार हरि साहू की तस्‍वीर)

हसपुरा प्रखंड के रघुनाथपुर निवासी विपत साव के घर 26 अक्टूबर 1941 को हरि साहू का जन्म हुआ था। उनका विवाह कमला देवी से हुआ था। कमला देवी का निधन हरि साहू के निधन से पूर्व ही हो गया था। इसलिए इस परिवार को अब पेंशन का लाभ भी नहीं मिलता। आजीवन वे गुमनाम बने रहे और फौजी अनुशासन में जीते रहे। तीन युद्धों में शामिल होने के बावजूद उन्हें कभी नाम कमाने की भूख नहीं रही। कभी स्वयं के बारे में प्रचार करना उचित नहीं समझा।

लगाई जाएगी उनकी प्रतिमा : विजय अकेला

(विजय अकेला की तस्‍वीर)

हसपुरा प्रखंड के पूर्व मुखिया विजय कुमार अकेला ने बताया कि वैश्य समाज के लिए हवलदार हरि साहू गौरवपूर्ण उपलब्धि हैं। उन्हें नायब सूबेदार की मानद उपाधि दी गई जो उनकी वीरता का प्रमाण है। एक दर्जन से अधिक मेडल उनके घर में है। ऐसे महान वीर बहादुर की प्रतिमा लगाकर पीढ़ियों को संदेश दिया जाएगा कि देशभक्ति और वीरता में हसपुरा उपलब्धि हासिल करने वाला प्रखंड है। यह उनकी कहानी न सिर्फ रघुनाथपुर, हसपुरा बल्कि देश की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।

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