नहीं रहे गया के हिंदी व मगही के कवि मणिलाल आत्मज, हृदय गति रुकने से निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर
गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के भवन निर्माण समिति के अध्यक्ष मगही एवं हिन्दी के प्रखर कवि व्यंग्यकार और पुराने साहित्यकार मणिलाल आत्मज जी का निधन हृदय गति रुक जाने के कारण शुक्रवार की रात्रि में अपने निवास पर हो गया। उनका जन्म 1946 में हुआ था।
जागरण संवाददाता, गया। गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के भवन निर्माण समिति के अध्यक्ष, मगही एवं हिन्दी के प्रखर कवि, व्यंग्यकार और पुराने साहित्यकार मणिलाल आत्मज का निधन हृदय गति रुक जाने के कारण शुक्रवार की रात्रि में अपने निवास पर हो गया। उनका जन्म 1946 में हुआ था।
गया चौक के पुराने व्यवसायी सूरज प्रसाद गुप्ता के ज्येष्ठ पुत्र मणिलाल आत्मज औषधीय व्यापार से जुड़े हुए थे। इसके साथ ही साथ वे कहानी, निबंध ,हास्य व्यंग और मगही तथा हिन्दी में कविता भी बहुत अच्छा किया करते थे। इन्हीं कर्म कृत्यों के कारण आत्मज जी को गया जिला प्रशासन ,गया गौशाला समिति और गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा सम्मानित भी किया गया था।
मणिलाल आत्मज जी जितने अच्छे कवि साहित्यकार थे उतने ही अच्छे व्यतित्व के भी स्वामी थे। जो नवस्थापित कवि साहित्यकारों के लिए एक सहारा के रूप में स्थापित रहे। गया और गया शहर के बाहर की साहित्यिक संस्थाओं को इन्होनें समय-समय पर आर्थिक सहयोग प्रदान कर उसे व्यवस्थित और खड़ा करने में महनीय योगदान दिया है। इनकी रचनाएं भले ही व्यंग्यात्मक होती है पर उससे अधिक सामाजिक सरोकार के पूट भरे पड़े होते हैं। समाज सेवा भी इनकी एक मुखर विशेषता रही जिसके कारण इनकी पहचान गया नगर के क्षेत्रों में प्रारंभिक काल से बनी रही। प्रायः मंच पर बिना देखे कविता पढ़ने वाले आत्मज जी की कविता की प्रस्तुति इस प्रकार से होती थी कि लोग तन मन से इनकी कविता के श्रवण का आनंद लेते थे।
उनके निधन पर हिंदी साहित्य सम्मेलन गया जिला के सभापति सुरेंद्र सिंह सुरेंद्र ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं कि आत्मज जी गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के एक स्थाई स्तंभ थे। उनकी कमी सदैव सम्मेलन में खलती रहेगी। महामंत्री सुमंत ने भी आत्मज जी को एक ऐसा महामानव बताया जिन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन के लिए काफी कुछ किया है। इनके निधन पर कवि अरुण हरलीवाल ने भी गहरा शोक प्रकट किया है।
संयुक्त मंत्री डॉ राकेश कुमार सिन्हा 'रवि' कहते हैं कि बड़े भाई तुल्य आत्मज जी के साहित्यिक अवदान को गया शहर में कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। वे खुले दिल के इंसान थे जिनकी कृतियों में बहुत कुछ प्रेरणा विधमान रहा करता था। इनकी मृत्यु पर गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधान संरक्षक और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. विजय कुमार करण ने भी गहरी संवेदना प्रकट की है। पुणे में निवासरत गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के संरक्षक राधानंद सिंह ने भी आत्मज जी को का चला जाना एक दुखद तस्वीर के रूप में प्रस्तुत किया है।
साथ ही संगीतज्ञ पं. राजन सिंजुआर, चिकित्सक डॉ. पप्पू तरुण, बालेश्वर शर्मा, उदय सिंह, पूर्व सभापति डॉ रामकृष्ण, कवि-शायर खालिद हुसैन परदेसी, मुद्रिका सिंह, जैनेंद्र कुमार मालवीय, नीरज कुमार,राम परिखा सिंह, जयराम कुमार सत्यार्थी, संजीत कुमार, विषधर शंकर, विनोद कुमार, मुकेश कुमार सिन्हा, पल्लवी जोशी, डॉ कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी, अश्वनी कुमार, अभयानंद मिश्र, गजेंद्र लाल अधीर, रामावतार सिंह, राजीव रंजन, अमित कुमार आदि साहित्य सेवकों ने गहरा दुख प्रकट किया है।
अपने पीछे भरे पूरे परिवार छोड़कर जाने वाले मणिलाल आत्माज जी की अंत्येष्टि श्री विष्णु श्मशान में शनिवार की सुबह में कोरोना संक्रमण काल के नियम के साथ की गई।