मिटने की कगार पर रोहतास के उपेक्षित पड़े मेगालिथ स्थल, नीचे दफन पांच हजार सालों का इतिहास
विभागीय बेरुखी से जिले के ऐतिहासिक व पुरातात्विक स्थलों की स्थिति बदहाल है। हालांकि इस वर्ष के शुरू में पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग बिहार सरकार व रोहतास वन प्रमंडल के संयुक्त तत्वावधान में जो दीवाल और डेस्क कैलेंडर जारी किए गए हैं।
जागरण संवाददाता, सासाराम। विभागीय बेरुखी से जिले के ऐतिहासिक व पुरातात्विक स्थलों की स्थिति बदहाल है। हालांकि इस वर्ष के शुरू में पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार व रोहतास वन प्रमंडल के संयुक्त तत्वावधान में जो दीवाल और डेस्क कैलेंडर जारी किए गए हैं, उसमें जिले के महापाषाणिक समाधियों को भी स्थान दिया गया है। वन विभाग की इस पहल से इन स्थलों के दिन बहुरने की उम्मीद जग गई है, लेकिन अबतक उनके संरक्षण को ले कोई खास गतिविधि शुरू नहीं होने से आशंकाओं के बादल छाने लगे हैं। ऐसे में कैमूर पहाड़ी पर स्थित मेगालिथ के अस्तित्व पर बन आई है। ऐतिहासिक मामलों के जानकारों के अनुसार, नवपाषाण काल से लौह काल तक बनाई गई इन मेगालिथ या समाधियों को रोहतासगढ़ किले के आसपास पाया गया है। इन समाधियों को दक्षिण भारत से आए उरांव राजाओं के समय काल का माना जाता है, जिन का आधिपत्य कभी रोहतासगढ़ किले पर रहा है।
क्या है स्थिति
कैमूर पहाड़ी में पहली बार मिले महापाषाणिक सांस्कृतिक स्थलों का अस्तित्व मिटने की कगार पर है। ऐतिहासिक मेगालिथ उचित रख-रखाव के अभाव में नष्ट हो रहे हैं। उक्त मेगालिथ पिछले पांच हजार वर्षों का इतिहास छुपाए हुए हैं। इस पहाड़ी में पाषाण काल से ही विविध संस्कृतियों के साक्ष्य मिलते हैं। यहां मध्य पाषाणकाल से लेकर बाद तक के शैलाश्रयों की भरमार है। अब तक यहां आदिमानवों द्वारा बनाए गए 125 से अधिक शैलचित्रों से युक्त शैलाश्रयों की खोज हो चुकी है। लेकिन, देखरेख व जानकारी के अभाव में इन ऐतिहासिक स्थलों के अस्तित्व पर बन आई है।
रोहतास व नौहट्टा में हैं महापाषाणिक स्थल
कैमूर पहाड़ी में अब तक जिन बृहत्पाषाणिक स्थलों की खोज हुई है, उनमें से एक रोहतास पहाड़ी पर रोहतासगढ़ की सीमा में है, जबकि दूसरा नौहट्टा प्रखंड के हुरमेटा गांव में अवस्थित है। इनमें हुरमेटा का मेगालिथ अपना वजूद बचाने को संघर्ष कर रहा है। यह कैमूर पहाड़ी के दक्षिणी छोर पर स्थित प्रसिद्ध गांव रेहल से लगभग डेढ़ किलोमीटर उत्तर दिशा में अवस्थित है। यहां अकबरपुर-रेहल या अधौरा-रेहल मार्ग से होकर पहुंचा जा सकता है। हुरमेटा गांव के दो टोले हैं। उत्तर में खरवार टोला और दक्षिण में उरांव टोला। उरांव टोला से पश्चिम लगभग 150 मीटर की दूरी पर यह पुरातात्विक स्थल अवस्थित है। इस स्थल पर पथरीली चट्टानें उभरी हुई हैं। पाषाण स्तंभों के कारण इस पुरातात्विक स्थल को गांव वाले 'ठाढ़ पखल' यानि खड़े पत्थरों की संज्ञा देते हैं।
मेगालिथ को तोड़ ग्रामीण बना रहे गिट्टी
ग्रामीण बताते हैं कि पहले यहां 30 से अधिक पाषाण स्तंभ खड़े थे। कालांतर में इन्हें उखाड़कर कुछ लोगों ने अपने उपयोग में ले लिया। अभी भी कुछ स्तंभ किसी-किसी ग्रामीण के घर में लगे हुए हैं। गांव के कुएं पर भी एक पाषाण स्तंभ का उपयोग धरन के रूप में किया जा रहा है। कुछ स्तंभों को खेतों की मेढ़ में भी लगाया गया है। जबकि अन्य स्तंभों को पत्थर तोडऩे वालों ने तोड़कर गिट्टी बना दिया है। ग्रामीणों के अनुसार, इन स्तंभों के नीचे से हांडी में रखा हुआ कुछ-कुछ सामान निकलता है।
कहते हैं जानकार
रोहतासगढ़ व हुरमेटा महापाषाणिक स्थलों की खोज करने वाले पुरातात्विक शोध अन्वेषक डा. श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि मेगालिथ जमीन पर गाड़े गए विशाल पत्थर हैं, जो कहीं घेरा में तो कहीं कतार में देखने को मिलते हैं। आदिम जनजातियों में एक परंपरा थी कि जब भी उनके परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती थी तो वे उसकी अस्थि कलश को जमीन में दफन कर देते थे और उसके ऊपर लंबे विशाल पत्थर को खड़ा कर देते थे। यह वही प्राचीन मेगालिथ है। कई जगह आज भी आदिवासी समुदाय के लोगों द्वारा मेगालिथ की पूजा-अर्चना की जाती है।