टिकारी राज के दशहरे की यादें आज भी लोकप्रिय, जब प्रजा अपने राजा का दर्शन करने के बाद प्रसाद लेती

दशहरा को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे दशहरा के अंतिम दिन का शाही जुलूस दर्शकों के लिए आकर्षण का विशेष केंद्र बना रहता था। जुलूस की छटा देखने में काफी निराली लगती थी महाराजा का रहन-सहन विलायती था।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 12:55 PM (IST) Updated:Thu, 14 Oct 2021 12:55 PM (IST)
टिकारी राज के दशहरे की यादें आज भी लोकप्रिय, जब प्रजा अपने राजा का दर्शन करने के बाद प्रसाद लेती
दुर्गा पूजा पर टिकारी राज में पूजा होती थी राजा। सांकेतिक तस्‍वीर।

संवाद सहयोगी, टिकारी (गया)। टिकारी राज का दशहरा जमाने में काफी लोकप्रिय था। राज का अंतिम महाराजा कैप्टन गोपाल शरण सिंह के जमाने में इसकी प्रसिद्धि चरम सीमा पर थी। यहां के दशहरा को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते थे दशहरा के अंतिम दिन का शाही जुलूस दर्शकों के लिए आकर्षण का विशेष केंद्र बना रहता था। जुलूस की छटा देखने में काफी निराली लगती थी महाराजा का रहन-सहन विलायती था। इसलिय इनके दोस्त में काफी अंग्रेज अधिकारी रहा करते थे इस कारण विदेशी मेहमान भी मां दुर्गा के भव्य दर्शन करने के लिए टिकारी राज आते थे।

यहां के स्थानीय कलाकारों के द्वारा दुर्गा मां की भव्य मूर्ति बनाई जाती थी। स्थापित मूर्ति के अगल- बगल की फूलों के सजावट देखने लायक होती थी। माँ दुर्गा के बगल में शुभ नीलकंठ भी विराजमान रहते थे। मूर्ति स्थल के बगल में शारदीय नवरात्र के अवसर पर ब्राम्हणों के द्वारा माँ दुर्गा सप्तशती का नौ दिन पाठ किया जाता था। जिससे पूरा किला परिसर भक्ति एवं मंत्रो से गूंजामायन रहता था। स्थापित मूर्ति के आगे विशाल मैदान में फूलों की जबरदस्त सजावट रहती थी, जो देखने लायक रहती थी। विशाल मैदान से आगे कमल फूल से आच्छादित विशाल तालाब के किनारे घूमते हुए दर्शक एवं सैलानियों की भीड़ देखने लायक होती थी।

दुर्गा मां को पूजा अर्चना करते हुए महाराजा को देखने के लिए भीड़ काफी लालायित रहती थी। उनके दर्शन मात्र को पाकर प्रजागण अपने को धन्य भाग्य समझती थी। राज परिवार की ओर से मां के प्रसाद के रूप में मिठाइयां प्रजागण को बांटी जाती थी। टिकारी राज सात आना की राजकुमारी भुवनेश्वरी कुंवर भी अपने राज में होने वाले दुर्गा पूजा महोत्सव में बढ़ चढ़ कर भाग लेती थी। दिल खोल कर इस आयोजन में आर्थिक सहयोग देती थी। पर्व समापन पर राम लीला एवं अन्य में क्षेत्र में भाग लेने वाले कलाकार को इनाम देती थी। राज में अपनी बिजली घर रहने के कारण किला एवं मेला परिसर बिजली से जगमग करता रहता था। रंग बिरंग बल्ब के रोशनी से किला परिसर नहाया रहता था।

रंगीन लाइट्स के चलते किला की छठा देखते ही बन बनती थी। शाम होते ही किला परिसर का नजर देखते ही बनता था। किला परिसर में स्थापित मूर्ति स्थल पर शारदीय नवरात्र में ब्राह्मणों के द्वारा दुर्गा सप्तशती का 9 दिन का पाठ किया जाता था। जिसके वजह से पूरा किला परिसर भक्तिमय और मंत्रों से गुंजायमान रहता था। टिकारी राज सात आना के विशाल मैदान में विजयादशमी के दिन रावण का विशाल पुतला को बीच मैदान में खड़ा किया जाता था और शाम के समय हजारों नागरिकों के सामने रावण दहन का कार्यक्रम किया जाता था, वह देखने लायक होता था। दशहरा के अवसर पर किला के विशाल मैदान के बगल में रामलीला का मंच बनाया जाता था और वहां पर 9 दिन का राम लीला का कार्यक्रम होता था जिसको देखने के लिए राज्यवासी दूर-दूर से आते थे और राम लीला को देख भरपूर आनंदमय हो जाते थे।

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