महंगाई की आग में धधक रही ज्ञान की कुंजी

पुस्तकें ज्ञान की कुंजी मानी जाती हैं। इसकी देवता के समान पूजा की जाती है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 23 Apr 2021 05:32 PM (IST) Updated:Fri, 23 Apr 2021 05:32 PM (IST)
महंगाई की आग में धधक रही ज्ञान की कुंजी
महंगाई की आग में धधक रही ज्ञान की कुंजी

औरंगाबाद। पुस्तकें ज्ञान की कुंजी मानी जाती हैं। इसकी देवता के समान पूजा की जाती है। पुस्तकें ज्ञान का वह स्त्रोत हैं, जिससे हम अनुभव प्राप्त कर विभिन्न क्षेत्र में काम करते हैं। आमतौर पर साहित्य व विज्ञान की पुस्तकें बाजार में बढ़े हुए मूल्य पर उपलब्ध हो पाती हैं। आम आदमी उसे खरीद पाने में अपने को असमर्थ महसूस करने लगा है। यूं कह लीजिए कि महंगाई की इस आग में ज्ञान की कुंजी धधक रही है।

सरकार द्वारा अनुदानित मूल्य पर बांटी जाने वाली पुस्तकें या तो समय पर उपलब्ध नहीं होती या उसके प्रकाशन में अनेक बाधाओं के कारण दिक्कतें आती हैं। विद्यार्थी हो अथवा शिक्षण संस्थान, पुस्तक ही उसके मूल विकास का पायदान है। पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र होती है। ज्ञान के बिना मनुष्य जानवर के समान है। पुस्तकों से अच्छी शिक्षा ग्रहण करके जीवन को सफल बनाया जा सकता है। केवल विद्यार्थी ही नहीं वरन प्रत्येक मनुष्य को अच्छी पुस्तकें पढ़ने से लाभ होता है। पुस्तक से बढ़ रही पाठकों की दूरी

प्रत्येक वर्ष 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत यूनेस्को ने 23 अप्रैल 1995 को की थी। पुस्तक दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य पाठकों एवं पुस्तक के बीच बढ़ती दूरी को खत्म करना है लेकिन हकीकत यह है कि पाठक एवं पुस्तकों के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। पुस्तक का उपयोग मनुष्य के जीवन में बचपन से आरंभ होता है। क अक्षर का ज्ञान भी हमें पुस्तक कराता है। वर्तमान माहौल में पुस्तक की जगह बच्चों का रुझान कंप्यूटर और इंटरनेट में है। हालात यह है कि पुस्तकों के बारे में लोगों को जागृत करने के लिए जगह-जगह सेमिनार का आयोजन करना पड़ रहा है। जिले में नहीं हैं बेहतर पुस्तकालय

सरकारें बदलीं। अधिकारी बदले। शहर के केंद्रीय पुस्तकालय का हाल नहीं बदला। भवन अत्यंत जर्जर हो गया है। शहर के सब्जी बाजार के पास स्थित पुस्तकालय का इतिहास इतराने वाला है, परंतु वर्तमान अंधकारमय है। पुस्तकालय के ग्रंथपाल मिथिलेश कुमार ने बताया कि अंग्रेजों के जमाने में पुस्तकालय का निर्माण 1918 में किया गया था। यहां पुस्तकों की संख्या 17 हजार 500 है। कई दुर्लभ पुस्तकें हैं। अब यहां नहीं लगता पुस्तक मेला

औरंगाबाद में 11 प्रखंड हैं। 11 प्रखंड में कभी पुस्तक मेला का आयोजन नहीं किया जाता है। यहां किताब प्रेमी हैं परंतु किताब नहीं है। पुस्तक मेला लगे तो लाभकारी होगा। जिस तरह से कृषि समेत अन्य मेला का आयोजन किया जाता है उसी तरह पुस्तक मेला का आयोजन होना चाहिए। इस क्षेत्र में जिला प्रशासन एवं शिक्षा विभाग को विचार करने की जरूरत है।

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