शराब कारोबारी के आगे गया पुलिस का खुफिया तंत्र कमजोर, बिहार-झारखंड की सीमा पर बन रही देसी दारू

बिहार में शराबबंदी के पांच साल पूरे हो चुके हैं पर पुलिस के लगातार प्रयास के बाद भी बिहार झारखंड के सीमावर्ती इलाके में आज भी देशी शराब का निर्माण जारी है। जिसकी पुष्टि खुद पुलिस की कार्रवाई से होती है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 12:09 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 12:09 PM (IST)
शराब कारोबारी के आगे गया पुलिस का खुफिया तंत्र कमजोर, बिहार-झारखंड की सीमा पर बन रही देसी दारू
बिहार झारखंड की सीमा पर जंगल में बन रही देसी शराब। जागरण।

संवाद सूत्र, फतेहपुर (गया)। बिहार में शराबबंदी के पांच साल पूरे हो चुके हैं, पर पुलिस के लगातार प्रयास के बाद भी बिहार झारखंड के सीमावर्ती इलाके में आज भी देशी शराब का निर्माण जारी है। जिसकी पुष्टि खुद पुलिस की कार्रवाई से होती है। बिहार झारखंड के सीमावर्ती इलाके में गुरपा वन क्षेत्र का घनघोर जंगल है। जिसका फायदा देशी शराब बनाने वाले तस्कर उठा रहे है।

गत एक माह में पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए एक दर्जन शराब भट्टी एवं दस हजार लीटर अर्द्ध निर्मित शराब को नष्ट किया है। पर कोई भी व्यक्ति गिरफ्तार नहीं हो सका है। नये थानाधयक्ष मनोज राम के सामने इस धंधे को मिटाना एक चुनौती होगी। इसके अलावे भी फतेहपुर में झारखंड के परसातरी से प्रतिदिन फतेहपुर एवं फतेहपुर  के रास्ते गया जिले में शराब की खेप पहुंचाई जा रही हैं।

पुलिस का खुफिया तंत्र कमजोर

शराब एवं नकसली घटनाओं को रोकने के लिए तत्कालीन एसएसपी राजीव मिश्रा के आदेश पर 17 जुलाई 2018 को गुरपा ओपी की स्थापना किया गया था। साथ ही एसएसबी का कैंप भी गुरपा पहुंचा।शुरूआती दिनों में शराब पर काफी अंकुश लगा। पुलिस का खुफिया तंत्र भी काफी मजबूत था। उसके बाद ओपी टीओपी में बदल गया। जिसके साथ ही शराब कारोबारी पुनः व्यापक रूप से सक्रिय हो गए।

जून जुलाई में पुलिस के द्वारा गुरपा बन क्षेत्र में मचरक, टैगनी,बसकटवा,रैगनी सहित अन्य जगहो पर दो दर्जन शराब भट्टी को तोड़ा गया। वहीं हजारों लीटर देशी महुआ शराब को नष्ट किया गया। पर सवाल यह है शराब भट्टी एक दिन में तैयार नहीं होती है। बल्कि इसे बनाने में कई दिन लगते है। परंतु पुलिस को भनक इस बात की काफी देर के बाद हो पाती है। कार्रवाई के बाद भी आखिर किसकी शराब भट्टी थी उसका नाम पता कर पाना टेढी खीर बन जाती हैं। साथ ही ग्रामीणों का सहयोग भी पुलिस को नहीं मिल पाता है।

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