खेतों से गायब हो गई हीरा-मोती की जोड़ी; बैलगाड़ी से लेकर जोताई तक में दिखाते थे एकता, अब ट्रैक्टर ने ली जगह

मशीनी युग में रोजगार की भी कमी हो गई है। बैलों से खेतों की जोताई में किसान दिन भर खेतों में चलता रहता था। तब ब्लड प्रेशर व शुगर जैसी बीमारी से पीडित नहीं थे। आज तो बैठे रहते ही कई रोग शरीर को घेर लेते है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Mon, 05 Jul 2021 11:59 AM (IST) Updated:Mon, 05 Jul 2021 11:59 AM (IST)
खेतों से गायब हो गई हीरा-मोती की जोड़ी; बैलगाड़ी से लेकर जोताई तक में दिखाते थे एकता, अब ट्रैक्टर ने ली जगह
दो बैलों की मदद से खेत में हल चलाता किसान। जागरण।

संवाद सहयोगी, भभुआ। आज आधुनिकता का दौर है। आधुनिकता के दौर में लोग पिछलें जमानें के कार्यों से विमुक्त होते जा रहे है। लोगों को मेहनत से आराम तो मिला, लेकिन कई बीमारियों ने घेर लिया। आज के मॉर्डन जमाने में बैलों से खेती की परंपरा लगभग-लगभग समाप्त हो चुकी है।

नई पीढ़ी के बच्चे तो खेतों में बैलों से खेती करने की परंपरा को देखा तक नहीं है, जबकि पहले खेती की नाज हीरा-मोती जैसे जोड़ी बैलों पर ही निर्भर थी। 80 वर्षीय बुजुर्ग रामअवध मिश्रा बतातें है कि वो दौर था। जब लोगों के  दरवाजे पर बैल हुआ करते थे, तो वे बड़े लोगों में गिने जाने जाते थे। मतलब कि वो काफी लैंड लार्ड हुआ करते थे। लेकिन आज के दौर में तो बैलों की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है।

बुजुर्ग किसानों ने कहा पहले खेतों की जोताई तथा धान की रोपनी कराने में करीब एक माह का समय लग जाता था। किसानी का कार्य धान की रोपनी में सबके हाल चाल, मजदूरों की मजदूरी भी एक महीना होती थी। बैलों से खेती की जोताई से खेतों में  पैदावार भी अच्छी होती थी। लेकिन आज के दौर  में ट्रैक्टर से समय की तो बचत हुई है। लेकिन वह मजा नहीें रह गया। मात्र एक सप्ताह के अंदर रोपनी का काम समाप्त हो जाता है।

मशीनी युग में रोजगार की भी कमी हो गई है। बैलों से खेतों की जोताई में किसान दिन भर खेतों में चलता रहता था। तब ब्लड प्रेशर व शुगर जैसी बीमारी से पीडित नहीं थे। आज तो बैठे रहते ही कई रोग शरीर को घेर लेते है। खेतों से तो हीरा- मोती की जोड़ी पूरी तरह से ही गायब हो गई है। नई पीढ़ी तो इससे बिल्कुल ही अंजान है। हीरा मोती की जोड़ी की कहानी केवल  कहानियों में सिमट कर रह गई है।

chat bot
आपका साथी