नक्सल प्रभावित इलाकों में बिखरेगी लेमनग्रास की खुशबू, कभी अफीम की खेती के लिए बदनाम था ये इलाका

साल 2019-20 में जब पहली बार विभागीय स्तर से लेमनग्रास की खेती कराई गई तो तस्करों के बहकावे में आकर गांव वालों ने ही फसल नष्ट कर दिया। फिर भी बदलाव की कोशिश जारी रही। जन जागरूकता पर बहुत जोर दिया गया।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 12:38 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 12:38 PM (IST)
नक्सल प्रभावित इलाकों में बिखरेगी लेमनग्रास की खुशबू, कभी अफीम की खेती के लिए बदनाम था ये इलाका
नक्‍सल प्रभावित इलाके में लेमनग्रास की होगी खेती। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

जागरण संवाददाता, गया। गया जिले के नक्सल प्रभावित पांच प्रखंड क्षेत्रों में लेमनग्रास की खेती शुरू हुई है। ये पांच प्रखंड हैं बाराचटी, इमामगंज, कोंच, डोभी व बांकेबाजार। झारखंड की सीमा (Bihar Jharkhand Border) पर बसे बाराचटी व इमामगंज के जंगल क्षेत्र का इलाका अफीम की खेती के लिए कभी बदनाम था। अब उन्हीं इलाकों में लेमनग्रास की खेती शुरू कराई गई है।

जिला प्रशासन की पहल पर वन विभाग, उद्यान व कृषि विभाग ने अपना सहयोग दिया है। नक्सल प्रभावित इलाके में खेती के जरिए एक बेहतर बदलाव की कोशिश हुई है। इस पर केंद्र सरकार की विशेष सहायता योजना से राशि खर्च होनी है। लेमनग्रास की खेती से अब तक 55 से 60 किसान जुड़े हैं। कुल 100 एकड़ में लेमनग्रास की खेती की योजना बनी है। अभी तक 40 एकड़ में पहली फसल की बोआई भी हो गई है।

बीते 22 जून को जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने किसानों के साथ बाराचटी प्रखंड के जैगीर गांव के अंजनिया टाड़ टोला में बकायदा लेमनग्रास के पौधों की बोआई कर इसका शुभारंभ किया। बाराचटी में 20 एकड़, इमामगंज में 10 एकड़, कोंच व डोभी में पांच-पांच एकड़ व बांकेबाजार में एक एकड़ में फसल लगाई गई है। चार माह में पहली फसल तैयार हो जाएगी। इसके बाद इसके सुगंधित तेल को निकालकर कंपनियों को बेचा जाएगा।

लेमनग्रास से निकलने वाला तेल कास्मेटिक्स, साबुन, सैनिटाइजर, तेल और दवा बनाने में इस्तेमाल होता है। भारत समेत अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी जबर्दस्त मांग है। किसानों को खेती से जुड़ी प्रशिक्षण दे रहे राजेश सिंह बताते हैं कि सभी चयनित पांच प्रखंडों में लेमनग्रास की फसल से तेल निकालने वाला यंत्र भी लगाया जाएगा।

पिछले साल वन विभाग की कार्रवाई में नष्ट हुई थी 400 एकड़ में लगी अफीम

प्रतिबंधित अफीम की खेती या इसके इस्तेमाल पर रोक है। बाराचटी इलाके में वर्षों से अफीम के तस्कर इसकी खेती कराते रहे। पिछले साल ही वन विभाग की टीम ने कार्रवाई करते हुए 400 एकड़ में लगी अफीम की फसल को नष्ट किया था। अब प्रशासन ने बाराचट्टी प्रखंड के जैगीर पंचायत के इलाकों में 15 एकड़ में व शंखवा, चापी गांव के 5 एकड़ में लेमनग्रास की बोआई की है।

काफी चुनौतीपूर्ण रही बदलाव की यह पहल: डीएफओ

जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी अभिषेक कुमार बताते हैं कि अफीम की खेती से ध्यान हटाकर वन ग्रामीणों का लेमनग्रास की खेती से जोडऩा काफी चुनौतीपूर्ण रहा। करीब ढाई साल तक इसके लिए निरंतर प्रयास किया गया। शुरूआती में वैकल्पिक प्रयास किए गए। साथ ही जागरूकता कार्यक्रम किए गए। इलाके में अफीम तस्करों का जबर्दस्त प्रभाव था। वे कम पढ़े-लिखे ग्रामीणों को पैसा व प्रलोभन देकर अफीम की खेती करवाते रहे।

वन अधिकारी बताते हैं कि साल 2019-20 में जब पहली बार विभागीय स्तर से लेमनग्रास की खेती कराई गई तो तस्करों के बहकावे में आकर गांव वालों ने ही फसल नष्ट कर दिया। फिर भी बदलाव की कोशिश जारी रही। जन जागरूकता पर बहुत जोर दिया गया। इलाके के युवाओं में अफीम को हराना है श्लोगन लिखा हुआ टीशर्ट दिया गया। बच्चों में डायरी बांटे गए। इस पूरे अभियान से महिलाओं को भी जोड़ा गया। अब जाकर मेहनत रंग लाती हुई दिख रही है।

कहां कितने एकड़ में लगी फसल बाराचटी- 20 एकड़ कोंच-10 एकड़ डोभी-5 एकड़ बांकेबाजार-1 एकड़ लेमनग्रास खेती करवाने का लक्ष्य- 100 एकड़ लेमनग्रास तेल से बनने वाले उत्पाद- कॉस्मेटिक्स, साबुन, सैनिटाइजर, तेल, दवा व अन्य

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