Mystry: इतिहासकारों के लिए आज भी रहस्‍यमय है रोहतासगढ़ का किला, कभी होता था सत्‍ता का केंद्र

रोहतासगढ़ का किला आज भले उपेक्षित है लेकिन कभी यह सत्‍ता का महत्‍वपूर्ण केंद्र था। मान्‍यता है कि यह त्रेतायुगीन है। हालांकि आदिवासी इसे अपनी मातृभूमि बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि आज भी यह रहस्‍यमय है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sun, 18 Apr 2021 07:40 AM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 07:40 AM (IST)
Mystry: इतिहासकारों के लिए आज भी रहस्‍यमय है रोहतासगढ़ का किला, कभी होता था सत्‍ता का केंद्र
रोहतासगढ़ का किला आज है उपेक्षित। जागरण

ब्रजेश पाठक, सासाराम (रोहतास)। कैमूर पहाड़ी पर स्थित रोहतासगढ़ किला (Rohtasgarh Fort) अाज भी इतिहासकारों के लिए रहस्यमय बना हुआ है। इस किले के बारे में कई किवदंतियां हैं, तो कई प्रमाणिक साक्षय। कैमूर पहाड़ी की शीर्ष पर स्थित यह किला आदिकाल से साहस, शक्ति व सर्वोच्चता के प्रतीक के रूप में खड़ा है। स्थानीय लोग जहां इस किले का निर्माण त्रेतायुगीन राजा हरिश्‍चंद्र के पुत्र रोहिताश्‍व का कराया गया मानते हैं। वहीं आदिवासी इसे अपनी मातृभूमि करार देते हैं। कुल 28 वर्गमील क्षेत्र में फैले इस किले में 83 दरवाजे हैं। ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार सातवीं सदी में बंगाल के शासक शशांक देव ने यहीं से अपना शासन चलाया था। उनका मुहर भी प्राप्त हुआ है। वहीं अकबर के शासन में राजा मान सिंह इसी किले से बिहार-बंगाल पर शासन चलाते थे। इसे प्रांतीय राजधानी घोषित किया था।

राजा हरिश्‍चंद्र के पुत्र रोहिताश्‍व ने कराया था निर्माण

जनश्रुतियों के अनुसार रोहतास गढ़ किला त्रेता युग का माना जाता है। इसके इतिहास के संदर्भ में किला के मुख्यद्वार के पास दो बोर्ड लगे हुए हैं। उस पर लिखा हुआ है कि यह किला सत्य हरिश्‍चंद्र के पुत्र रोहिताश्‍व ने बनवाया था। विभिन्न कालखंडों में यह किला आदिवासी राजा (खरवार, उरांव, चेर ) के अधीन रहा है। आदिवासी इस किले को शौर्य का प्रतीक भी मानते है। बाद में यह किला शेरशाह के अधीन हुआ। शेरशाह के बाद इस किले से ही अकबर के शासनकाल में बिहार और बंगाल के सूबेदार मानसिंह ने यहां से शासन सत्ता चलाई थी। इस रोहतास सरकार में सात परगना शामिल था।

कभी था सत्‍ता का केंद्र और आज है बदहाल

यह किला बिहार-बंगाल शासन-सत्ता का केंद्र बिदु रहा। यहां से हुकूमतें चलती रही। लेकिन आज यह किला उपेक्षित व बदहाल है। सड़कें नहीं है। पेयजल के लिए मीलों सफर करने की मजबूरी है। किला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर उसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के हवाले किया गया है! बिडंबना यह कि यहां विभाग का न तो कोई कर्मी है, न ही सुरक्षा प्रहरी। संरक्षण के अभाव में यह किला पूरी तरह उपेक्षित है। पर्यटक दूर हो रहे हैं।

ताजमहल बनवाने वाले शाहजहां ने भी बिताए दिन

सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पर शोध कर चुके इतिहासकार डॉ. श्याम सुन्दर तिवारी कहते हैं कि यह जिला आदि काल में कारुष प्रदेश था। जिसका वर्णन ब्रह्मांड पुराण में भी आया है। रोहतास गढ़ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नामकरण रोहतास होता रहा है। कभी भारत के बादशाह शाहजहां भी इस किले में अपनी बेगम के साथ रहे हैं। मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) से पूर्व भी 1494 ई. में दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने राजा शालिवाहन को चैनपुर व रोहतास का राज्य सौंपा था।

पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बनेगी कार्ययोजना

स्‍थानीय सांसद छेदी पासवान कहते हैं कि रोहतासगढ़ किला पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रोपवे का निर्माण किया जा रहा है। वहां तक के लिए आॅल वेदर रोड की भी स्वीकृति प्राप्त हुई है। रोहतास किला पर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए कार्ययोजना तैयार करने के लिए सरकार को भी लिखा गया है ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिल सके तथा विश्‍व विरासत (World Heritage) की श्रेणी में इस किले को शामिल किया जा सके।

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