प्रसिद्ध सितारवादक पं. रविशंकर ने इस गांव को कहा था ईश्वर का गांव, बहती है शास्त्रीय संगीत की सरिता
गया जिले के परैया स्थित ईश्वरपुर गांव को शास्त्रीय संगीत का बड़ा केंद्र कहा जाता है। यहां जन्में संगीत के विभूतियों की नई पीढ़ी विरासत को सहेजने में लगी है। प्रसिद्ध सितारवादक पंडित रविशंकर ने इसकी तुलना ईश्वर के गांव से की थी।
विजय कुमार सिंह, परैया(गया)। संगीत मन को शांति, ऊर्जा देता है। उसमें भी बात शास्त्रीय संगीत की हो तो लोग सुध-बुध खो देते हैं। संगीत की सुरम्य वादियों में उनका मन भ्रमण करने लगता है। ऐसे में ईश्वरपुर गांव में जब ठुमरी, ख्ायाल, दादरा और धमार की मधुर आवाज गूंजती है तो राहगीरों के कदम सहसा ठिठक पड़ते हैं। यहां विरासत को सहेजने के साथ उसके संवर्द्धन का प्रयास नई पीढ़ी कर रही है। यह है चर्चित गायक और वादक पंडित कामेश्वर पाठक के परिवार की पीढ़ी।
शास्त्रीय संगीत के कारण रही है इस गांव की पहचान
पंडितजी के नाती अनुग्रह कन्या उच्च विद्यालय के संगीत शिक्षक मनीष पाठक विरासत में मिले संगीत को सहेज रहे हैं। अलग-अलग शैलियों के शास्त्रीय गायन से नई पीढ़ी को परिचित करा रहे हं। मनीष पाठक कहते हैं कि इस गांव की पहचान शास्त्रीय गायन व वादन की वजह से विश्वस्तरीय है। सैकड़ों वर्ष से गीत संगीत को लेकर विशिष्ट पहचान बनाने वाला यह गांव कई विभूतियों की जन्म एवं कर्मभूमि रहा है।
कई विभूतियों की जन्म एवं कर्मभूमि है यह गांव
मगध विश्वविद्यालय परिसर स्थित उच्च विद्यालय के सेवानिवृत शिक्षक कृष्ण मोहन पाठक का कहना है कि इस गांव का संगीत घराना सैकड़ों वर्ष पुराना है। यहां जन्मे सितार वादक स्व बलराम पाठक सितार-ए-हिंद से नवाजे गए। स्व कामेश्वर पाठक विश्व प्रसिद्ध ठुमरी गायक, स्व बलदेव उपाध्याय, स्व रामजी उपाध्याय प्रसिद्ध पखावज वादक, स्व सुदिन पाठक, कृष्ण मोहन पाठक प्रसिद्ध ध्रुपद गायक, स्व श्रीकांत पाठक ठुमरी सह ख्याल गायक, स्व जयमंगल पाठक प्रसिद्ध तबला वादक, स्व जयराम तिवारी विश्व प्रसिद्ध ठुमरी गायक की पहचान पूरे देश में रही है। मनीष पाठक ने बताया कि संगीत विरासत को बचाने के लिए सरकारी स्तर से कोई पहल नही हुई है। जिसके कारण प्रतिभाओं का पलायन तो हुआ ही है साथ ही नई पीढ़ी ने इस विरासत से अपना मुहं मोड़ लिया है। इसे बचाने के लिए पुरजोर कोशिशें होनी चाहिए। जो अकेले किसी व्यक्ति से सम्भव नही है।
गांव की किशोरी भी ठुमरी व ख्याल में दिखा रही प्रतिभा
ईश्वरपुर गांव की 14 वर्षीय किशोरी रिया कुमारी इतनी कम उम्र में ठुमरी व ख्याल के साथ वाद्य संगीत में माहिर होती जा रही है। जिसके प्रतिभा से आस पास के गांव ही नही पूरे प्रखंड में संगीत को लेकर लोग सजग हुए है। किशोरी की गायन व वादन शैली विशिष्ट है। जिसका पूरा श्रेय वह संगीत शिक्षक मनीष पाठक को देती है। रिश्ते में मामा लगने वाले शिक्षक उसके लिए ईश्वर के समान है। जिनके द्वारा संगीत शिक्षा में उसको यह उपलब्धी हासिल हुई है।
गांव में खुले महाविद्यालय से संगीत की प्रतिभा देश मे फैल रही
मां गीता किशोरी संगीत महाविद्यालय के स्थापना का मूल लक्ष्य संगीत शिक्षा रहा है। गया टिकारी सड़क से 5 किलोमीटर दूर स्थित महाविद्यालय आज पहचान का मोहताज नही है। महाविद्यालय में दो सौ छात्र हर सत्र में संगीत की शिक्षा लेते है। महाविद्यालय में लेकिन इस महाविद्यालय में कला संकाय के चित्रकला की भी शिक्षा दी जा रही है। इसको लेकर महाविद्यालय में चार शिक्षक व दो शिक्षिका शामिल है। महाविद्यालय की छात्रा सौम्य अथर्व ने कोरोना महामारी के क्रम में लागू लॉक डाउन में ऑनलाइन राष्ट्रीय प्रतियोगिता में टॉप टेन में स्थान प्राप्त किया। इसके अलावा महाविद्यालय का छात्र अमित भारद्वाज आज मुम्बई जैसे महानगरी में विशेष शास्त्रीय गायन का समूह चला रहा है। छात्रा अनामिका कुमारी ने 2019 के कला उत्सव में मगध प्रमंडल पर शास्त्रीय गायन में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। वर्तमान में महाविद्यालय के छात्र रॉकी राज, शुभम राज, सोनू पाठक, सूरज पाठक, सलोनी कुमारी व प्रीति कुमारी भी आज इस विधा में अपनी पहचान बना रही है।
विदेशों में गूंज रही है ईश्वरपुर के शास्त्रीय संगीत की गूंज
ईश्वरपुर के पंडित अशोक पाठक शास्त्रीय संगीत के माध्यम से आज हॉलैंड में संगीत की छटा बिखेर रहे है। उन्होंने सितार वादन में विशेष मुकाम हासिल किया है। इसके अलावा विनय पाठक में मुम्बई में रहते है। जहां से वो नियमित अमेरिका संगीत क्लास लेने जाते है। जो विदेशों में शास्त्रीय संगीत की विशिष्टता को दर्शाता है।
ईश्वरपुर ईश्वर का है अपना घर : पंडित रविंशकर
विश्व विख्यात सितार वादक रविंशकर ने ईश्वरपुर को ईश्वर का गांव बताया। उन्होंने मोरहर नदी तट स्थित ईश्वरपुर गांव के प्रतिभा को खुले शब्दों में सराहा और कहा कि ईश्वरपुर गांव के ऊपर ईश्वर की विशेष कृपा है। यहां विश्व विख्यात ठुमरी, ख्याल, ध्रुपद व धमार गायन शैली का समागम संगम के समान है।