भगवान विष्णु व बुद्ध के मंदिर का गुंबद स्वर्णाछादित, एक सनातन तो दूसरा बौद्ध धर्मावलंबियों का है मंदिर

विश्व में मोक्ष प्राप्ति के लिए ख्यात विष्णुपद मंदिर व संबोधी लाभ के लिए विश्व विख्यात महाबोधि मंदिर है। दोनों गुंबद पर लगा कलश और ध्वज 100 साल पूर्व से स्वर्णाच्छादित है। महाबोधि मंदिर का गुंबद कुछ वर्ष पहले थाईलैंड के राजा व श्रद्धालु द्वारा स्वर्ण आच्छादित किया गया है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Sun, 21 Feb 2021 10:51 AM (IST) Updated:Mon, 22 Feb 2021 09:22 AM (IST)
भगवान विष्णु व बुद्ध के मंदिर का गुंबद स्वर्णाछादित, एक सनातन तो दूसरा बौद्ध धर्मावलंबियों का है मंदिर
गया का प्राचीन व एतिहासिक विष्‍णुपद मंदिर। जागरण।

[विनय कुमार मिश्र] बोधगया (गया)। विश्व में मोक्ष प्राप्ति के लिए ख्यात विष्णुपद मंदिर व संबोधी लाभ  के लिए विश्व विख्यात महाबोधि मंदिर है। इन दोनों मंदिर का गुंबद स्वर्ण आच्छादित है। अंतर सिर्फ इतना है कि विष्णुपद मंदिर के गर्भ गृह व सभा मंडप दोनों गुंबद पर लगा कलश और ध्वज लगभग 100 साल पूर्व से स्वर्णाच्छादित है। वहीं महाबोधि मंदिर का गुंबद कुछ वर्ष पहले थाईलैंड के राजा व श्रद्धालु द्वारा स्वर्ण आच्छादित किया गया है।

विष्णुपद मंदिर के गर्भ गृह व सभा मंडप पर स्वर्ण कलश व ध्वज को बाल गोविंद सेन की पत्नी ने दान दिया था। जिसका वजन 50 किलोग्राम है। तो महाबोधि मंदिर के गुंबद पर इससे 5 गुना से अधिक 290 किलोग्राम का सोना लगा है। जिसे थाईलैंड के राजा भूमिबोल अतुल्य तेज व थाईलैंड के श्रद्धालुओं द्वारा दान में दिया गया है। वैसे भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और सनातन धर्मावलंबी भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानकर सनातन धर्मावलंबियों द्वारा पूजा अर्चना किया जाता है। यही कारण है कि पितृपक्ष मेला के दौरान महाबोधि मंदिर में भी सनातन धर्मावलंबियों द्वारा पिंडदान का विधान किया जाता है। दोनो मंदिर एक ही जिले में 10 किलोमीटर के फासले पर स्थित है।

गया के चर्चित पीतल किवाड़ वाले गयापाल पंडा महेश लाल गुप्त बताते हैं कि काठगच्छी अंदर गया कहे जाने वाले मोहल्ले के एक मार्ग पंडा समाज से आने वाले बाल गोविंद सेन ने एक ठाकुरबारी का निर्माण कराया था और उसके गुंबद पर सोना चढ़ाया। तब लोगों ने उनसे कहा मोक्ष के लिए ख्यात विष्णुपद मंदिर में भी स्वर्ण कलश व ध्वज चढ़ाना चाहिए।।इसके बाद उनकी पत्नी ने विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह व सभामंडप के ऊपर स्वर्ण कलश व ध्वज दान दी थी। बाद में सेन जी की पत्नी ने विष्णुपद मंदिर के अंदर चरण चिन्ह को भी चांदी से आच्छादित कर दी। वही, महाबोधि मंदिर के गुंबद पर सोने की परत लगाने का काम थाईलैंड के इंजीनियर और कारीगरों के देखरेख में किया गया। महाबोधि मंदिर के गुंबद तक पहुंचने के लिए लोहे  की बेरिकेटिंग की गई। तब कारीगर ऊपर तक पहुंचे और 15 दिनों में ही 290 किलोग्राम सोना लगाने का कार्य को समाप्त कर दिया। स्वर्णा आच्छादित गुंबद आज महाबोधि मंदिर में आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

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