नहीं बदली गया के स्कूलाें की सूरत, मेढ़ बना आने-जाने का सहारा, कैसे आते-जाते बच्चे, जानकर रह जाएंगे हैरान
लाख कोशिश के बावजूद जिले में छह दर्जन से अधिक स्कूलों को आज तक रास्ता नसीब नहीं हो सका है। खेत बीच बने स्कूल भवन में बच्चे मेढ़ के सहारे पढऩे जाने को विवश हैं। जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग इन विद्यालयों को रास्ता मुहैया कराने में नाकाम रहा है।
जागरण संवाददाता, गया। लाख कोशिश के बावजूद जिले में छह दर्जन से अधिक स्कूलों को आज तक रास्ता नसीब नहीं हो सका है। खेत बीच बने स्कूल भवन में बच्चे मेढ़ के सहारे पढऩे जाने को विवश हैं। जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग इन विद्यालयों को रास्ता मुहैया कराने में नाकाम रहा है। सबसे अधिक बरसात के मौसम में बच्चों को पढऩे जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
बारिश व सिंचाई की पानी से स्कूल परिसर घिरे जाते हैं, जिस कारण बच्चों को जान-जोखिम में डाल पढऩे जाना पड़ता है। धान की फसल बर्बाद न हो, इसे ले किसान खेत की कटीले तार से घेराबंदी कर दिए हैं। आज स्थिति यह हो गई है कि कई विद्यालय के रास्ते बंद हो गए हैं।
भूमिहीन स्कूलों को जमीन उपलब्ध कराने की योजना भी साकार नहीं हो सकी है। भूमि के अभाव में 122 विद्यालयों के पास अपना भवन नहीं है। जिसे भवन वाले समीप के विद्यालय में मर्ज करने का प्रस्ताव छह माह पूर्व ही विभाग को भेजा जा चुका है, जिस पर मुहर लगनी बाकी है। जिसे भवन नसीब हो सका है, उसमें से 76 के पास रास्ता उपलब्ध नहीं है।
रास्ता की मांग को ले विद्यालय प्रबंधन गुहार लगाते लगाते थक चुके हैं। फिर इस समस्या का निदान नहीं निकल सका है। राहत इस बात है कि फिलहाल कोरोना महामारी के कारण स्कूलों को शिक्षण कार्य के लिए बंद किया गया है। परंतु शिक्षकों को इस विकट समस्या से आए दिन दो-चार होना पड़ रहा है। कोचस प्रखंड के मध्य विद्यालय दैदहां जैसे कई ऐसे स्कूल हैं, जहां पर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है।
इस संबंध में डीपीओ समग्र शिक्षा राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि जमीन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी राजस्व की है। वस्तुस्थिति से जिला प्रशासन को अवगत करा दिया गया है। हालांकि, अब तक समस्या का निदान नहीं हो सका है।