Pitrupaksha 2021: गयाजी में श्रीराम ने भी किया था पिंडदान, पितृपक्ष मेला पर इस साल हैं ये इंतजाम

Pitrupaksha 2021 बिहार के गया में इस साल भी पितृपक्ष में श्रद्धालु अपने पितरों के लिए तर्पण व पिंडदान करेंगे। यहां भगवान श्रीराम ने भी तर्पण किया था। यहां देश-विदेश से लाखों की संख्या में पिंडदानी हर साल आते हैं। यहां जानिए पितृपक्ष मेला की खास बातें।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Sun, 19 Sep 2021 08:16 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 09:56 AM (IST)
Pitrupaksha 2021: गयाजी में श्रीराम ने भी किया था पिंडदान, पितृपक्ष मेला पर इस साल हैं ये इंतजाम
इस साल गया आनेवाले श्रद्धालु कर पाएंगे पिंडदान, जागरण फाइल फोटो।

गया, कमलनयन। Pitrupaksha 2021 पितरों से जुड़ाव के कर्मकांड का पखवारा यानी पितृपक्ष। सनातन आस्था और विश्वास का वह पावन समय, जब पंचतत्व में विलीन अपने पुरखों की आत्मा के मोक्ष के लिए पिंडदान व तर्पण अर्पण किया जाता है। इस साल पितृपक्ष 20 सितंबर से छह अक्टूबर तक है। गयाजी को मोक्षधाम कहा जाता है। यही कारण है कि सनातन धर्मावलंबी देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में यहां आते हैं।  

गयापाल पंडा महेश गुपुत बताते हैं, वैसे तो गयाजी में पूरे साल पिंडदान होता है, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से आश्विन अमावस्या तक पितृपक्ष की अवधि होती है। इसका विशेष महत्व है। यहां आने के बाद श्रद्धालु पिंडदान व तर्पण करने के पूर्व तीर्थ पुरोहित गयापाल पंडा का चरण पूजन कर श्राद्ध करने की अनुमति लेते हैं। इसके बाद वे अपने समय की सुविधा और क्षमता के अनुसार एक दिन से लेकर 17 दिनों तक का श्राद्धकर्म शुरूकरते हैं।

पितृपक्ष व पिंडदान

गयाजी में पवित्र फल्गु में जलांजलि व विष्णुचरण पर पिंड अर्पित किया जाता है। यह पौराणिक मान्यता है कि फल्गु की रेत और जल से पांव स्पर्श हो जाने पर भी पितर तृप्त हो जाते हैं। यहां भगवान राम ने भी अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। इसके अतिरिक्त पांच कोस में 54 पिंडवेदियां अवस्थित, जहां श्रद्धालु कर्मकांड करते हैं। इन पिंडवेदियों में विष्णुपद के अतिरिक्त सीताकुंड, रामशिला, प्रेतशिला, धर्मारण्य, मंतगवापी व अक्षयवट प्रमुख हैं।  

पिंड के प्रकार

गयाजी में विभिन्न पिंडवेदियों पर अलग-अलग प्रकार के पिंड समर्पित किए जाते हैं। इनमें सबसे प्रचलित पिंड जौ के आटे, काले तिल, अरवा चावल और दूध से तैयार किया जाता है। यह गोलाकार होता है। पिंडदान में कुश का होना अनिवार्य है। वहीं, प्रेतशिला पिंडवेदी स्थल पर सत्तू का पिंड उड़ाए जाने का विधान है। अंत में अक्षयवट पिंडवेदी पर खोवा का पिंडदान किया जाता है।

पितृपक्ष मेला और कोरोना काल

धार्मिक मान्यता के अनुसार, विष्णुपद में प्रतिदिन एक पिंड का अर्पण करना अनिवार्य है। पिछले वर्ष पितृपक्ष मेले के कारण प्रतिबंध था। वैसे, गयापाल पंडा ने अपने-अपने पूर्वजों को पिंड अर्पित किया था। इस वर्ष राज्य सरकार ने कोरोना गाइडलाइन के तहत छूट देते हुए विष्णुपद मंदिर के पट खोल दिए हैं तो पितृपक्ष के दौरान श्रद्धालुओं का आना स्वाभाविक है।  

जिला पदाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि पितृपक्ष मेला नहीं लगेगा, लेकिन गया आने वाले पिंडदानियों को कर्मकांड करने से नहीं रोका जाएगा। उन पिंडदानियों को कोरोना गाइडलाइन के तहत कर्मकांड करना है और इसकी निगरानी भी की जाएगी। नगर आयुक्त सावन कुमार ने बताया कि मेला नहीं लगेगा, लेकिन पिंडदानियों के आगमन की संभावना को देखते हुए मेला क्षेत्र में सफाई की विशेष व्यवस्था की गई है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से कई स्थानों पर शिविर लगाकर कोरोना जांच व टीकाकरण किया जाएगा।

क्या है पितृपक्ष की तैयारी

गया में गयापाल पंडा द्वारा पितृपक्ष में आने वाले अतिथियों के स्वागत की तैयारी की जा रही है। विष्णुपद परिसर और फल्गु के तट पर कड़ाके की धूप व बारिश से बचने के लिए वाटरप्रूफ पंडाल लगाए जा रहे हैं। श्रीविष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभूलाल बिट्ठल ने कहा कि पिंडदानी गया के अतिथि हैं। उन्हें सुविधा प्रदान करना हर गयावासी का कर्तव्य है।

पंडा पोथी से वाट्सएप तक

गयाजी में पिंडदान की पुरानी परंपरा की एक विशेषता है पंडा पोथी। आपके पूर्वजों के सौ-दो सौ वर्षों का नाम-पता इस पंडा पोथी में मिल जाएगा। इसे वर्षों से बहुत सहेज कर रखा गया है। गयापाल पुरोहितों के पास अपने-अपने क्षेत्र के यजमानों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी का दस्तावेज है। लोग इसे खोजते हैं और देखते भी हैं। बदलते परिवेश में पंडा पोथी तो है, लेकिन अब वाट्सएप ग्रुप पर सब कुछ हो रहा है। कर्मकांड की प्रक्रिया, दिवस, पूजा सामग्री आदि के बारे में जानकारी वाट्सएप से दी जा रही है। गयापाल पुरोहितों का युवा वर्ग इसमें दक्ष दिखाई पड़ता है। कई गयापाल पुरोहितों ने वेबसाइट भी बना रखी है। इससे विदेशियों को भी सहूलियत मिलती है।

विदेशी भी करते हैं पिंडदान

सनातन धर्म के इस कर्मकांड को शनै: शनै: विदेशी भी अपनाने लगे हैं। ऐसा गया में पितृपक्ष के दौरान देखा गया है। भारतीय मूल के लोकनाथ गौड़ ने ङ्क्षपडदान की महत्ता को समझाया और विभिन्न देशों के अनुयायी गया आकर पिंडदान का कर्मकांड करते हैं। इससे कर्मकांड की महत्ता विदेशों में भी बढ़ी है।

आनलाइन भी होता है पिंडदान

राज्य पर्यटन विभाग ने दो वर्ष पूर्व आनलाइन पिंडदान के पैकेज की शुरुआत की थी। कुछ श्रद्धालुओं ने उसे अपनाया भी था, लेकिन तीर्थपुरोहित गयापाल पंडा समाज आनलाइन ङ्क्षपडदान को सही नहीं मानता है। इस वर्ष भी पितृपक्ष मेला नहीं आयोजित हो रहा है, पर पर्यटन विभाग ने अभी आनलाइन पिंडदान के संबंध में कोई सूचना नहीं प्रसारित की है।

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