गया के महाबोधि मंदिर में इस तोरमा को देखकर हो जाएंगे मुग्ध, यकीन नहीं हो तो आकर देख लीजिए
महाबोधि मंदिर में तिब्बती पूजा के दौरान आकर्षक तोरमा लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। मालूम हो कि तिब्बती पूजा में तंत्र वाद को दिया बढ़ावा दिया जाता है। इसके लिए घी मख्खन मिला हुआ तोरमा बनाया जाता है।
विनय कुमार मिश्र, बोधगया। बोधगया स्थित विश्वदाय धरोहर महाबोधि मंदिर परिसर स्थित पवित्र बोधिवृक्ष की छांव में तिब्बतियों के विभिन्न पंथ की ओर से पूजा की जा रही है। विश्व शांति की कामना से की जा रही यह पूजा मूलतः तंत्र वाद पर आधारित होता है। पूजा आयोजन स्थल पर सजा कर रखा जाने वाला तोरमा हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है। लोग देखते ही रह जाते हैं।
क्या होता है तोरमा, कैसे होता है तैयार
तोरमा एक तरह की पूजा सामग्री होती है। इसे घी, मक्खन मिले अनाज से तैयार सत्तू और मैदा का मिश्रण कर बनाया जाता है।रंग-बिरंगे तोरमा पर तिब्बती बौद्ध धर्म में तंत्र से जुड़े देवी-देवताओं का चित्र उकेरा जाता है। यह तंत्र का प्रतीक होता है। इसे प्रशिक्षित बौद्ध लामा बहुत शुद्धता से तैयार करते हैं। इसे धूप से बचाकर रखा जाता है। तोरमा तीन प्रकार का बनाया जाता है। भगवान को समर्पित करने के लिए खेशे तोरमा होता है। वहीं प्रसाद स्वरूप वितरण के लिए छोंक तोरमा बनाया जाता है। वहीं देवी-देवताओं को प्रदर्शित करने के लिए बड़े-बड़े तोरमा तैयार होते हैं। प्रायः बड़े तोरमा के सामने खेशे और छोंग तोरमा को रखा जाता है।