सोन नहरों से रोहतास के किसान खुशहाल, धान का कटोरा के रूप में मिली प्रसिद्धि, खेती-बारी का बदला स्वरूप
किसानों की स्थिति भी बदली जो उन्हें हरजोतवा कहकर हेय दृष्टि से देखते व बुलाते थे। वे आइये किसान जी कहकर आवभगत करने लगे। लोक संस्कृति में प्रचलित किसान गीत सोन के नहरिया बनवलस हमनीके खाइलेजा सुतीलेजा करीला बिहान।
उपेंद्र मिश्र, डेहरी ऑनसोन (सासाराम)। सोन नहर प्रणाली के निर्माण के बाद शाहाबाद क्षेत्र में धान के पैदावार में काफी उपलब्धि मिली। सोन नहरों के कारण ग्रामीण जीवन स्तर में भी काफी परिवर्तन आया। गांवों में पक्के मकान, दरवाजे पर समृद्ध खेती के लिए ट्रैक्टर व कृषि यंत्र, शहरों में बच्चों की पढ़ाई व अच्छे घर में बिटिया की शादी ये सब खेती-गृहस्थी की बदौलत संभव होने लगा। नहरी इलाकों से अकाल का साया भी हटा।
सोन नहरों के निर्माण से पूर्व पईन, आहर व कुओं से रेहट के माध्यम से खेतों की ङ्क्षसचाई होती थी। भदई फसलों सांवा, कोदो, मक्का, मड़ुआ आदि फसलें ही यहां हो पाती थी। शाहाबाद के कई क्षेत्रों में तब नील व अफीम की खेती में भी किसान आने लगे थे। नहरों के निर्माण के बाद धान के अलावा गेंहू का भी उत्पादन होने लगा और उनकी समृद्धि बढऩे लगी। नहरी इलाके व गैर नहरी क्षेत्र में फर्क साफ दिखने लगा। शिक्षा का प्रसार भी नहरी क्षेत्र में तेजी से हुआ और लोग सरकारी ओहदे पर भी पहुंचने लगे।
बेटियों की शादी के लिए बना प्राथमिकता वाला क्षेत्र
बेटियों की शादी के लिए नहरी इलाका प्राथमिकता वाला क्षेत्र बन गया। माना जाने लगा कि इस क्षेत्र में दस बीघा वाला किसान भी भूखे नहीं रहेगा। परिवार का भरण-पोषण ठीक से करेगा। हालांकि, शाहाबाद स्थानीय बोलचाल की भाषा में धान मुलुक वाला क्षेत्र स्थापित होने लगा।
महिलाओं की बढ़ी परेशानी
धान से चावल निकालने में काफी श्रम करना पड़ता था। धान को बड़े बड़े मिट्टी के बर्तन में उसना जाता था। कुटाई कर चावल तैयार किया जाता था। ये सारे काम महिलाओं को करना पड़ता था। हालांकि, कृषि तकनीकी का विकास हुआ धान से चावल निकालने की मशीन आ गई। राइस प्लांटों के खुलने व गांवों में भी धान कूटने की मशीन लगने से काफी राहत मिली। शाहाबाद का नहरी इलाका बिहार में ही नही देश के चावल उत्पादन वाले जिलों के शुमार में शामिल हो गया।
धनवा मुलुक जानी व्यहीह हो राम...
कुवारी कन्या द्वारा गए जाने वाले लोक गीत नहरों के कारण उस क्षेत्र की महिलाओं की स्थिति को चित्रित करता है। गोड़ तोहर लागिले, बाबा हो बड़ईता से अहो राम, धनवा मुलुक जानी व्यहीह हो राम... बड़े बूढ़ों मैं तुम्हारा पैर पड़ती हूं, धान वाले मुल्क में मेरा ब्याह न करना। लेकिन, स्थितियां बदली और यह क्षेत्र बेटियों की शादी के लिए संपन्नता के ²ष्टिकोण से बेहतर माने जाने लगा। किसानों की स्थिति भी बदली, जो उन्हें हरजोतवा कहकर हेय दृष्टि से देखते व बुलाते थे। वे आइये किसान जी कहकर आवभगत करने लगे। लोक संस्कृति में प्रचलित किसान गीत सोन के नहरिया बनवलस हमनीके, खाइलेजा, सुतीलेजा करीला बिहान। आरे हरजोतवा जे कहि के बोलावत रहे, कहेलेजा आई है किसानजी।