रोहतास में राइस मिल ने लिया उद्योग का रूप, कई लोगों को मिला रोजगार, बांग्‍लादेश तक पहुंच रहा चावल

नहरी क्षेत्र में धान की उत्पादकता बढऩे लगी। आरंभिक दौर में ढेकी से कूटकर चावल तैयार किया जाता था। इसके बाद गांव में ड्राम के माध्यम से चावल तैयार करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। ड्राम में धान को उबाल कर मिल के माध्यम से चावल का उत्पादन होता था।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Sat, 31 Jul 2021 04:50 PM (IST) Updated:Sat, 31 Jul 2021 04:50 PM (IST)
रोहतास में राइस मिल ने लिया उद्योग का रूप, कई लोगों को मिला रोजगार, बांग्‍लादेश तक पहुंच रहा चावल
राइस मिल लगा उद्यमी बन रहे युवा। जागरण आर्काइव।

उपेंद्र मिश्र, डेहरी ऑनसोन (सासाराम)। रोहतास जिले में बिछीं सोन नहरों की जाल किसानों की सफलता का परिचायक है। इससे न केवल किसानों के बीच समृद्धि आई, बल्कि व्यापारियों के लिए भी रोजगार का नया अवसर प्राप्त हुआ। यातायात साधन से जुड़े गांवों में गत पांच दशक में पांच सौ से अधिक छोटी-बड़ी राइस मिलें लगीं। मजदूरों को भी भरपूर काम मिला।

इन राइस मिलों से ट्रांसपोर्ट व्यवसाय को भी बल मिला। धान के कटोरे में चाल व्यवसाय को नगे पंख को देखते हुए बिस्कोमान ने बिक्रमगंज में बिस्को इंडस्ट्रीज की स्थापना की। नोखा में छह दशक पूर्व एक दर्जन से अधिक राइस मिल स्थापित किए गए। यहां का चावल देश के विभिन्न राज्यों के अलावा बांग्लादेश तक जाने लगा। इन राइस मिलों में 20 हजार से अधिक मजदूरों को रोजगार मिला।

धान से चावल बनाने को खुले राइस मिल

नहरों के निर्माण के बाद नहरी क्षेत्र में धान की उत्पादकता बढऩे लगी। आरंभिक दौर में ढेकी से कूटकर चावल तैयार किया जाता था। इसके बाद गांव में ड्राम के माध्यम से चावल तैयार करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। ड्राम में धान को उबाल कर मिल के माध्यम से चावल का उत्पादन होता था। सोन नहर प्रणाली के निर्माण के बाद 1960  के दशक में चावल मील खुलने का सिलसिला प्रारंभ हुआ और देखते ही देखते जिले में छोटी-बड़ी लगभग 500 राइस मीलें खुल गईं।

पहला अत्याधुनिक मिल बिक्रमगंज में स्थापित

जापान (Japan) की तकनीक से बिक्रमगंज में 1960  के दशक में राइस मिल का निर्माण हुआ था। इसमें चावल बनाने की क्षमता काफी अधिक थी और उस समय इसका निर्माण पुर्णत: स्वचालित था। केंद्र सरकार ने एफसीआइ (Food corporation of India) के माध्यम से इसका संचालन किया। बाद के दिनों में इसका संचालन बिस्कोमान के जिम्मे आया, लेकिन कुछ ही दिनों बाद कुव्यवस्था के चलते 1980 के दशक में यह भी बंद हो गया। नोखा में भी आधे दर्जन से अधिक राइस मिल उसी समय खुले। अभी 200 से अधिक छोटे-बड़े चावल मिल संचालित हो रहे हैं।

पूरी दुनिया में बिखेर रही है चावल की सुगंध

धान के कटोरा के तौर पर शाहाबाद का यह इलाका पूरे देश में जाना जाता है। यहां कि मिट्टी में पैदा होने वाली कतरनी, सोनम, मनसुरी, सोनाचूर, बासमती (Types of Rice) जैसी धान की वेराइटी पूरे देश में काफी पसंद की जाती है। इसकी आपूर्ति देश के कई राज्यों में होती है। बासमती व सोनाचूर की सुगंध पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा बंग्लादेश तक बिखरती है।

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