बच्‍चों के साहित्‍य का संपादन बहुत गंभीर कार्य, इससे जुड़े होते हैं कई नैतिक पहलू - प्रो.उषा शर्मा

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्‍वविद्यालय में ‘शोध एवं प्रकाशन नैतिकता‘ पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने शोधार्थियों को शोध के मानदंडों की जानकारी दी। इस दौरान बच्‍चों से जुड़े साहित्‍य में सावधानी पर विस्‍तार से चर्चा की गई।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Fri, 19 Mar 2021 09:19 AM (IST) Updated:Fri, 19 Mar 2021 09:19 AM (IST)
बच्‍चों के साहित्‍य का संपादन बहुत गंभीर कार्य, इससे जुड़े होते हैं कई नैतिक पहलू - प्रो.उषा शर्मा
ऑनलाइन कार्यक्रम में बोलते प्रो: संतोष पांडा (ऊपर)। जागरण

टिकारी (गया), संवाद सूत्र। दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्‍वविद्यालय (CUSB) की शिक्षा पीठ में शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के ‘पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं शिक्षण मिशन' योजना के अंतर्गत ‘शोध एवं प्रकाशन नैतिकता‘ पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने शोधार्थियों को मानदंडों की जानकारी दी। कार्यक्रम के तीसरे दिन प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्‍वविद्यालय (इग्नू) के प्रोफेसर संतोष पांडा ने प्रतिभागियों से रेफरी पब्लिशिंग, ओपन एक्सेस पब्लिशिंग तथा रिसर्च एथिक्स पर विस्तार से बातचीत की।

इस तरह से प्रतिष्ठित जर्नल में अपने शोधकार्य को दिला सकते हैं स्‍थान

उन्होंने जर्नल पब्लिशिंग से संबंधित विभिन्न पहलुओं जैसे आपेन एक्सेस ‘गोल्ड‘ तथा ‘ग्रीन‘ के बारे में चर्चा की। प्रोफेसर पांडा ने यह भी बताया कि शोधार्थी अपने शोध कार्य को प्रतिष्ठित जर्नल्स में किस मानक प्रक्रिया के माध्यम से प्रकाशित करा सकते हैं। सत्र के अंत में उन्होंने प्रतिभागियों से शोध के क्षेत्र में क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए, इस पर बिंदुवार बात की। अंत में शिक्षा पीठ की शोधार्थी फिरदौस तबस्सुम ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस सत्र का संचालन डॉ. चंदन श्रीवास्तव ने किया। इस ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक तथा विश्‍वविद्यालय के अध्यापक शिक्षा विभाग में सहायक प्राध्यापक हैं।

शोध एवं प्रकाशन में नैतिकता जरूरी

दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता एनसीईआरटी दिल्ली की प्रोफेसर उषा शर्मा ने विषय पर अपने विचार साझा किए।  उन्होंने शोध एवं प्रकाशन नैतिकता के संबंध में भाषा संपादन से संबंधित चुनौतियों पर विस्तार से बात की। उन्होंन इस बात पर जोर देते हुए प्रस्तुति शुरू की कि बच्चों के लिखित साहित्य को पत्रिका में प्रकाशित करने के लिए भाषा संपादन की किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है। उनके अनुसार बच्चों से संबंधित साहित्य का संपादन बहुत ही गहन कार्य है। इसके साथ कई नैतिक पहलु जुड़े हुए हैं। उन्होंने सत्र के दौरान बच्चों के बनाए चित्रों को प्रस्तुत किया। उससे जुड़ी कहानियों के भाषा संपादन पर बात की ।इस सत्र का संचालन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. मनीष कुमार गौतम ने जबकि कार्यक्रम के संयोजक डॉ. चन्दन श्रीवास्तव, सहायक प्राध्यापक ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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