गया के इस गांव में रामनवमी के प्रसाद के रूप में बंटा आलू का हलवा, आप भी जानिए इसकी रेसिपी
गया जिले के इमामगंज प्रखंड के पकरी गांव में रामनवमी के अवसर पर विशेष तरह का हलवा बनता है। यह सूजी बेसन या आटे का नहीं बल्कि आलू और गुड़ का होता है। ध्वजारोहण के बाद इसे घर-घर बांटा जाता है।
कमल नयन, गया। सूजी, बेसन और आटे के हलवे का नाम आपने सुना होगा लेकिन हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं आलू के हलवे से। दरअसल यह कोई नया व्यंजन नहीं बल्कि काफी पुरानी परंपरा का हिस्सा है। जिला मुख्यालय से 66 किमी दक्षिण इमामगंज प्रखंड का एक गांव है पकरी। यहां रामनवमी की शाम सामूहिक रूप से आलू का हलवा (Pudding of Potato) बनता है। इसे प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है। यह परंपरा कब से है इसका पता गांव के बड़े बुजुर्गों को भी नहीं है। गांव के 75 वर्षीय बुजुर्ग मानिंदे प्यारे लाल गुप्ता बताते हैं कि यह परंपरा मेरे जीवनकाल से पहले की है। जिसे आज भी ग्रामीण मिलजुलकर जीवंत रख रहे हैं।
रामनवमी के दिन घर-घर से जुटाया जाता है आलू और गुड़
पकरी गांव लगभग 60 घरों की बस्ती है। सभी खुशहाल हैं। रामनवमी के दिन हर घर से आलू और मीठा का संग्रह किया जाता है। युवकों की टोली घर-घर घूमती है। उसे जमा कर फिर उस स्थान पर लाया जाता है जहां महावीरी पताका शाम को फहराया जाता है। गांव के बीचोंबीच ध्वजारोहण किया जाता है। उसी स्थान पर हलवा भी बनता है और शाम को प्रसाद स्वरूप हर घर में उसे पहुंचाया जाता है। लगभग एक क्विंटल आलू का हलवा तैयार किया जाता है। इस बार भी रामनवमी में उस परंपरा को निभाया गया।
ऐसे बनता है आलू का हलवा
आलू को कड़ाह या बड़े बर्तन में पहले उबाला जाता है। उसके छिलका हटाकर उसे मथा जाता है। उसके बाद बड़े से टोकना (टोप) में घी और जीरा का फोरन दिया जाता है। इस दौरान चूल्हे की आंच धीमी रखी जाती है। कुछ देर भूनने के बाद उसमें गुुुड़ का घोल डाला जाता है। इसके बाद उसमें मैश किए गए आलू को डाल दिया जाता है। कुछ देर भूनने के बाद हलवा तैयार हो जाता है।
(प्रसाद लेने के लिए पहुंचे लोग।)
ध्वजारोहण के बाद होता है प्रसाद का वितरण
हलवा के तैयार होने के बाद सामूहिक रूप से महवीरी ध्वजा गाड़ा जाता है। भक्तिमय नारे लगते हैं। गीत-संगीत भी होता है। और उसके बाद उपस्थित लोग प्रसाद स्वरूप आलू का हलवा खाते हैं। फिर गांव में हलवा का वितरण किया जाता है। बुधवार को रामनवमी की तिथि में देर शाम तक मोरहर-सोरहर नदी के तट पर पकरी गांव में यह आयोजन होता रहा। गांव में सहभागिता और आपसी भाईचारा का संदेश देता यह समारोह देर रात समाप्त हुआ।