पितृपक्ष : पितरों को मोक्ष दिलाने को लड़खड़ाते कदमों से पिंडदानियों ने पार कीं सीढि़यां

गया। अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लेकर पहुंचे पिंडदानी मंगलवार को लड़खड़ाते हुए कदमों से प्रेतशिला पहाड़ी की सीढि़यां चढ़ते दिखे।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 11:25 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 11:25 PM (IST)
पितृपक्ष : पितरों को मोक्ष दिलाने को लड़खड़ाते कदमों से पिंडदानियों ने पार कीं सीढि़यां
पितृपक्ष : पितरों को मोक्ष दिलाने को लड़खड़ाते कदमों से पिंडदानियों ने पार कीं सीढि़यां

गया। अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लेकर पहुंचे पिंडदानी मंगलवार को लड़खड़ाते हुए कदमों से प्रेतशिला पहाड़ी पर बनीं सीढि़यां पार कर रहे थे। पहाड़ी पर बनीं 676 सीढि़यों के सहारे कड़ी धूप की परवाह किए बिना ही पिंडदानी ऊपर चढ़ते दिखे। यही भारत की सशक्त सनातन परंपरा का सर्वोत्तम संस्कार है। पितृपक्ष के दूसरे दिन मंगलवार को कर्मकांड के लिए प्रेतशिला में पिडदानियों को भीड़ देखी गई।

पितृपक्ष के दूसरे दिन मंगलवार की सुबह से ही पिडदानी अनेकों तरह के वाहन से प्रेतशिला पहुंचने लगे थे। सूर्य के उदय होते कर्मकांड की विधि प्रारंभ हो गई। पिडदानी पहाड़ी की तलहटी में स्थित ब्रहमकुंड के पवित्र जल से तर्पण कर कर्मकांड शुरू किए। ब्रहमकुंड के पास यात्री शेड में बैठकर पिडदानियों ने अपने-अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए कर्मकांड किया। शेड के अलावा आसपास केपेड़ों की छाया में भी पिंडदानी बैठे थे। पिडदानी अपने पूर्वजों की तस्वीर को आगे रखकर कर्मकांड की विधि पूरी करते दिखे। पिडदान की विधि सत्तू, चावल, तिल, जौ, घी, दूध, फल, सहित अन्य सामग्री से कर रहे थे। कर्मकांड के लिए पिडदानी पिड को पहाड़ी की चोटी पर स्थित यमराज के मंदिर में अर्पित करते हैं। पिडदानी लड़खड़ाते कदमों से पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर में जा रहे थे। यहां अकाल मृत्यु प्राप्त जातक का श्राद्ध व पिडदान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्वत पर पिडदान करने से अकाल मृत्यु प्राप्त पूर्वजों तक पिड सीधे पहुंच जाते हैं। इससे उन्हें कष्टयानी योनियों से मुक्ति मिल जाती है। इसे प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकाला व प्रेतगिरि भी कहा जाता है। प्रेतशिला पहाड़ी पर सत्तू से पिडदान करने की पुरानी परंपरा है। यहां पिडदानी सत्तू से बने पिड से कर्मकांड करते हैं। साथ ही पहाड़ी पर सत्तू भी उड़ाते हैं। मान्यता है कि पहाड़ी पर सत्तू उड़ाने से प्रेतात्मा को मुक्ति मिलती है। कर्मकांड पूरा करने बाद पितरों के लिए तालियां बजाकर उनके मोक्ष की कामना करते हैं। पिंडदानियों के कर्मकांड के दौरान पूरा प्रेतशिला क्षेत्र वैदिक मंत्रोच्चार से गूंज रहा था। बोले पिंडदानी, मोक्षभूमि पर आकर मन को मिली शांति :-

-पहली बार गयाधाम में आए हैं। पितरों की मुक्ति के स्थान में पहुंचकर काफी अच्छा लग रहा है। यहां तीन दिन का कर्मकांड करके वापस घर लौट जाएंगे।

-संदीप कुमार, दिल्ली पितरों के मोक्ष की कामना लेकर गया आए हैं। यहां आकर मन को काफी शांति मिल रही है। मेले का आयोजन नहीं होते हुए भी सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। स्थानीय लोगों का भी काफी सहयोग मिल रहा है।

-नीतू शर्मा, दिल्ली 17 दिनों का कर्मकांड करने के लिए मोक्षनगरी गयाजी आए हैं, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था ठीक नहीं है। प्रेतशिला में इतने अधिक तीर्थयात्री रहने के बाद एक भी पुलिसकर्मी नहीं था।

-हरिप्रसाद अग्रवाल, ओडिशा पितृपक्ष का इंतजार दो साल से कर रहे थे। पिछले साल ही गया आना था, लेकिन कोरोना के कारण नहीं आ सके। यहां आकर काफी अच्छा लग रहा है। पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए 16 दिनों का कर्मकांड कर रहा हूं।

-अनिल गोयल, छत्तीसगढ़ मोक्षभूमि गयाजी में आकर काफी अच्छा महसूस हो रहा है। फल्गु नदी की कलकल बहती धारा देखकर काफी अच्छा लगा। मेले का आयोजन नहीं होने के बाद भी लोगों का सहयोग मिला है।

-अनु गोयल, छत्तीसगढ़ पितृपक्ष में जिला प्रशासन ने किसी तरह की व्यवस्था नहीं की है। ट्रैफिक व्यवस्था भी ठीक नहीं है। घंटों जाम में फंसे रहने के बाद प्रेतशिला पिडवेदी तक पहुंच सके। यातायात व्यवस्था में सुधार की जरूरत है।

-डा. सीताराम शर्मा, जयपुर

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