यूपी, बंगाल, झारखंड व मप्र सहित देश के कोने-कोने से पहुंच रहे पिंडदानी, गया में शुरू हुआ पितृपक्ष का कर्मकांड

अपने पितरों से जुड़ाव का पखवारा यानी पितृपक्ष शुरू हो गया है। पितृपक्ष में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लेकर देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में पिंडदानी व अन्य तीर्थयात्री गया पहुंच रहे हैं। पिंडदानियों के आगमन से गया के रेलवे स्टेशन सहित अन्य जगह गुलजार हुआ।

By Sumita JaiswalEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 09:25 AM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 09:55 AM (IST)
यूपी, बंगाल, झारखंड व मप्र सहित देश के कोने-कोने से पहुंच रहे पिंडदानी, गया में शुरू हुआ पितृपक्ष का कर्मकांड
मध्‍यप्रदेश के रीवा से आए श्रद्धालु फल्‍गु की रेत पर कर्मकांड करते हुए। जागरण फोटो।

गया, जागरण संवाददाता। अपने पितरों से जुड़ाव का पखवारा यानी पितृपक्ष शुरू हो गया है। पितृपक्ष में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लेकर देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में पिंडदानी व अन्य तीर्थयात्री गया पहुंच रहे हैं। पिंडदानियों के आगमन से गया के रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन सहित अन्य जगह गुलजार हो गए हैं, जहां कोरोना काल को लेकर पिछले कई महीने से उदासी का आलम था।

कोरोना संकट काल होने के कारण राज्य सरकार की ओर से भले औपचारिक रूप से पितृपक्ष मेले की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन अनौपचारिक तौर पर गया आने वाले प्रत्येक पिंडदानी को जिला प्रशासन की ओर से सुविधा मुहैया कराई जा रही है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में दूरदराज के जिलों व राज्यों से पिंडदानी गया पहुंचे हैं।

विष्णुपद मंदिर के सामने स्थित देवघाट से लेकर प्रेतशिला पहाड़ी तक पिंडदानियों की भीड़ जुट रही है। उत्तरप्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों से पिंडदानी गया में श्राद्ध-तर्पण के लिए पहुंचे हैं। मध्यप्रदेश के रीवा से पहुंचे हुए दर्जनभर श्रद्धालु गेरुआ रंग का वस्त्र पहनकर फल्गु की रेत पर कर्मकांड करते दिखे। वहीं उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से आए दो स्वजनों के साथ पिंडदानी साथ में फल्गु में तर्पण करने पहुंचे थे। फल्गु में भले ही पानी कम हो, लेकिन घुटनेभर पानी की धारा इतनी तेज है कि आसानी से चलकर कोई नदी को पार नहीं कर सकता है। श्रद्धालु इसी बहते हुए पानी में डुबकी लगाकर तर्पण कर रहे हैं।

पिंडदान से पहले फल्गु में पितरों को जलांजलि देने का विधान : बिट्ठल

 विष्णुपद प्रबंधकारिणी के अध्यक्ष शंभुलाल बिट्ठल ने कहा कि पितृपक्ष प्रारंभ हो गया है। यह छह अक्टूबर अमावस्या तिथि तक चलेगा। ङ्क्षपडदान से पहले फल्गु में स्नान के बाद पितरों को पहले जल देने का विधान है। यह पहले दिन किया गया। उन्होंने बताया कि इस बार ज्यादातर ङ्क्षपडदानी तीन दिन व पांच दिन का श्राद्ध करने वाले ही पहुंचे हैं। त्रिपाक्षिक श्राद्ध जिसमें 17 दिनों तक अलग-अलग वेदियों पर ङ्क्षपडदान होता है, ऐसे श्रद्धालु इस बार बमुश्किल से 200 की संख्या में ही गया पहुंचे हैं। कोरोना काल का साफ असर इस बार के पितृपक्ष पर पड़ा है।

पितृपक्ष में कुश का खास महत्व, इसका जड़ भाग पितरों का 

पितृपक्ष में तिल व कुश का विशेष महत्व बताया गया है। धर्मशास्त्रों में कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना जाता है। मान्यता है कि कुश और तिल दोनों विष्णु के शरीर से निकले हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु व महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्र भाग में रहते हैं। कुश का अग्रभाग देवताओं का, मध्य भाग मनुष्य का और जड़ भाग पितरों का माना जाता है। तिल पितरों को प्रिय है। दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाले माना जाता है। श्राद्ध में कुश का बहुत खास महत्व बताया गया है।

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