जहां आम दिनों में भी लगा रहता था भक्‍तों का तांता, वहां पसरा है सन्‍नाटा, घरों में मन रहा चैत्र नवरात्र

कोरोना ने चैत्र नवरात्र समेत छठ और रामनवमी जैसे पर्व का उत्‍साह फीका कर दिया है। जिन मंदिरों में आम दिनों में भी लोगों की भीड़ रहती थी वहां आज सन्‍नाटा पसरा है। लोग घरों में ही देवी की आराधना कर रहे हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 10:55 AM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 10:55 AM (IST)
जहां आम दिनों में भी लगा रहता था भक्‍तों का तांता, वहां पसरा है सन्‍नाटा, घरों में मन रहा चैत्र नवरात्र
घर में देवी की आराधना करती एक महिला। जागरण

उपेन्द्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद)। पिछले वर्ष की तरह इस बार भी वासंतिक नवरात्र भी कोरोना के गंभीर खतरे और संकट के बीच मनाया जा रहा है। देवी मंदिरों के पट बंद कर दिए गए हैं। कोविड-19 संक्रमण के कारण सरकार के दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए अनुमंडल के तमाम देवी मंदिरों के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं। सामूहिक आयोजनों पर रोक है इसलिए कहीं रामचरितमानस का पाठ नहीं हो रहा है न ही ज्ञान सप्ताह यज्ञ जैसे धार्मिक आयोजन हो रहे। कोविड-19 संक्रमण के कारण वासंतिक नवरात्र घरों तक सिमट कर रह गया है ।ऐसे में हम आपको बता रहे हैं उन देवी मंदिरों के बारे में जहां नवरात्र ही नहीं आम दिन में भी भक्‍तों का तांता लगा रहता है लेकिन इस बार वहां सन्‍नाटा पसरा है।

भृगुराही गाेह था देवताओं का गुरुकुल

भृगुरारी गोह -यह अनुमंडल का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां देवता को भृगु ऋषि ज्योतिष और कर्मकांड की शिक्षा दिया करते थे। पंडित लाल मोहन शास्त्री के अनुसार वैदिक काल में यह गुरुकुल था। यहां भृगु की पत्‍नी की पूजा मस्तक रहित देवी के रूप में होती है। तांत्रिक विधि विधान से पूजा की परंपरा है। यह स्थान मदाड़ पुनपुन संगम पर स्थित है। धारणा है कि इस स्थान पर भगवान श्री राम भी आए थे।

मरही धाम - भुरकुंडा-मीर पर गोह बिलारू नाला पर स्थित है मरही धाम। यहां भृगु ऋषि सपत्नीक निवास करते थे। उन्होंने एक कुंड का निर्माण करवाया था जिसके कारण ही एक गांव का नाम भुरकुंडा पड़ा। यहां मां सिंह वाहिनी की सुंदर प्रतिमा है जो अपने भक्तो की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। इस कुंड के जल पीने से नाना प्रकार के रोग कष्ट दूर होते हैं।

दुर्गा स्थान गोह- गोह पोखरा के वायव्य कोण पर स्थित है दुर्गा मंदिर। यह मुख्यालय का महत्त्व पूर्ण स्थान है। यहां रोग कष्ट से मुक्ति पाने के लिए लोग आते रहते हैं। विवाह का आयोजन किया जाता है।

स्‍वर्णाभूषण से किया जाता है देवी का शृंगार

सती स्थान-कोईलवां हसपुरा में सती माता रानी का भवन बना हुआ है। वर्ष के अंतिम मास शिव रात्रि एवं विजया दशमी की पावन बेला में सती जी का स्वर्णाभूषण से शृंगार किया जाता है। 

अहिल्‍या बाइक होलकर ने की थी यहां मंदिर की स्‍थापना

काली स्थान-सोनभद्र के किनारे शहर के पश्चिम स्थित है काली घाट दाउदनगर। यहां माता की पूजा नगर रक्षिका के रूप में की जाती है। यह नगर का प्राचीन स्थान है। यहां इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर गया जाते समय विश्राम कर भूत नाथ महादेव का लिंग स्थापित की थी। वर्तमान समय में यहां अनेकानेक मन्दिर हैं।

दक्षिणेश्‍वर काली-महिला महाविद्यालय दाउदनगर के पास विख्यात चिकित्सक डाक्टर बंगाली बाबू ने अपनी आराध्या भव तारिणी काली की प्रतिमा स्थापित किया था। वे तांत्रिक विधि विधान के साथ दीपावली की आधी रात में आराधना करते थे। आज यह स्थान उपेक्षित है।

काली स्थान खरांटी- खरांटी ओबरा रमणिक स्थान है। स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद जगतपति के पूर्वजों ने तांत्रिक विधि विधान के साथ काली की प्राण प्रतिष्ठा यहां करवाया था। यहां माता काली स्थान के अलावा और भी देवालय है।

देवी स्थान ओबरा- यह ओबरा की प्रधान ग्राम देवी हैं। यह स्थान विशाल मन्दिर का रूप लेते जा रहा है। विवाह का आयोजन होते हैं। यह क्षेत्र का विख्यात मन्दिर है ।

दुर्गा स्थान हसपुरा- यहां मूर्तिकार महिषासुर मर्दिनी दुर्गा की प्रतिमा शारदीय नवरात्र में स्थापित करते हैं। आज इस स्थान पर सुंदर मंदिर का निर्माण हो चुका है। वैष्णवी भगवती दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है। यह मुख्यालय का प्रसिद्ध मंदिर है।

पच कठवा देवी मंदिर-अशोक उच्च विद्यालय के दक्षिण में स्थित है पचकठवा देवी मंदिर। जो लोग दाऊद नगर में बाहर से आकर बसे और अपना आवास बनाए, उन लोगों द्वारा ही सात बहिन के साथ भैरव की स्थापना अपनी रक्षा के लिए की। शास्त्री के अनुसार पांच कट्ठा जमीन में मंदिर होने के कारण यह पचकठवा देवी स्थान नाम से विख्यात हुआ।

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