किताबों के बीच से परिमलेंद़ु का चले जाना
गया मैँ लिखने में थकता नहीं हूं आज भी काफी मन लगता है एक के बाद एक शब्द निकलते जाते हैं..। यह कथन अब सिर्फ यादों में रह गयी है। प्राचीन गया शहर का दक्खिन दरवाजा के छोटी सी सड़क पर टूटे हुए ग्रिल के बाद कुछ सीढि़यां चढ़ते हैं।
गया: मैँ लिखने में थकता नहीं हूं, आज भी काफी मन लगता है, एक के बाद एक शब्द निकलते जाते हैं..। यह कथन अब सिर्फ यादों में रह गयी है। प्राचीन गया शहर का दक्खिन दरवाजा के छोटी सी सड़क पर टूटे हुए ग्रिल के बाद कुछ सीढि़यां चढ़ते हैं। दाहिनें एक कमरा है, किताबों से भरा हुआ। बाहर एक कुर्सी और एक चौकी। यह घर जाने-माने साहित्यकार, आलोचक व शोधार्थी राम निरंजन परिमलेंदु जी का है। बाहर से एक दम साधारण सा दिखने वाला यह घर अपने आंगन इतनी बड़ी शख्शियत को छांव दे रहा था। यह आसपास के लोग भी नहीं जानते। टूटे हुए ग्रिल के बगल में एक छोटा सा नेम प्लेट उनके नाम का लगा हुआ है। जो वर्षों से दिख रहा है। आज यह सड़क उदास है। इस घर का अकेला शब्दों का राजा परिमलेंदु लगभग 85 वर्ष की उम्र में सबको अलविदा कह गए।
24 अगस्त 1935 को परिमलेंदु जी का जन्म हुआ था और उनकी पहली रचना 1953 में विवेचना पत्रिका में प्रकाशित हुयी थी। तब से अब तक उनकी कई मौलिक रचनाओं का प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर होता रहा है। परिमलेंदु शोधपूर्ण उपलब्धियों के लिए चर्चित रहे हैं। साहित्य जगत में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रमुख वक्ता के रूप में वे जाने जाते थे।
उनके शोधपूर्ण ग्रंथों में-भारतेंदु काल के भूले बिसरे कवि और उनका काव्य,भारतेंदु काल का अल्पज्ञात गद्य साहित्य व देवनागरी लिपि और हिदी : संघर्षाें की ऐतिहासिक यात्रा प्रमुख हैं। जिनमें परिमलेंदु ने वैसे कवियों और साहित्यकारों के साहित्य को भी खोज निकाला जो गुमनाम थे। यह उनके कलम की विशेषता थी, जिसे साहित्य जगत मानता था।
इतना ही नहीं साहित्य के क्षेत्र में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, राजा राघिका रमण प्रसाद सिंह, जैनेंद्र, हरिवंश राय बच्चन, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, आचार्य शिवपूजन सहाय, प्रताप नारायण श्रीवास्तव, नागार्जुन जैसे महान साहित्यकारों से उनके निकट संबंध थे। उन्होंने साहित्यिक तथ्यों को मौलिक रूप से प्रस्तुत करने के लिए सिर्फ चितन ही नहीं वरन उनसे संबद्ध संदर्भ को वर्ष, माह, तिथि के साथ संपूर्ण काल गणना सहित प्रमाणिक रूप से स्पष्ट करते थे। उनके पास पुराने से पुराने अखबार की कतरन और पत्र-पत्रिकाओं के ढेर उसी कमरे में रखे रहते थे। जिस कमरे की एक कुर्सी पर बैठकर छोटी ट्यूब लाइट की रोशनी में अपनी कलम चलाते रहते थे।
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बच्चन ने 213 पत्र लिखे थे
रामनिरंजन परिमलेंदु से कवि हरिवंश राय बच्चन के काफी आत्मीय संबंध थे। दोनों की मुलाकातें दिल्ली, पटना और इलाहाबाद में हुआ करती थी और बाकी के दिनों में पत्र के माध्यम से संवाद हुआ करता था। परिमलेंदु जी के पास हरिवंश राय बच्चन के लिखे 213 पत्र हैं। जिसे उन्होंने एक पुस्तक का रूप दिया। जिसका नाम रखा- बच्चन पत्रों दर्पण में- प्रकाशित है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी परिमलेंदु और बच्चन जी के संबंध को जानते हैं और कभी-कभी उनसे बात भी करते थे।
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दैनिक जागरण ने किया था सम्मानित
दैनिक जागरण के गया संस्करण के पांचवी वर्षगांठ पर रामनिरजंन परिमलेंदु को सम्मानित किया गया था। सम्मान समारोह में उपस्थित परिमलेंदु ने यह कहा था कि- मैं दैनिक जागरण का नियमित पाठक हूं।