बाढ़ के पानी में डूबी कई एकड़ में लगी धान की फसल

कैमूर। दुर्गावती जलाशय से अचानक काफी मात्रा में छोड़े गए पानी से तबाही का क्रम जारी है। दुर्गावती नदी का जलस्तर भले ही कम हो रहा है लेकिन किनारे को लांघकर फैला पानी आगे बढ़ता जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 05:53 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 05:53 PM (IST)
बाढ़ के पानी में डूबी कई एकड़ में लगी धान की फसल
बाढ़ के पानी में डूबी कई एकड़ में लगी धान की फसल

कैमूर। दुर्गावती जलाशय से अचानक काफी मात्रा में छोड़े गए पानी से तबाही का क्रम जारी है। दुर्गावती नदी का जलस्तर भले ही कम हो रहा है लेकिन किनारे को लांघकर फैला पानी आगे बढ़ता जा रहा है। जीटी रोड को पार करने के बाद अब नदी का पानी मंगलवार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय-गया रेलखंड को पार कर गया है। इससे मोहनियां प्रखंड के दुघरा, लुरपुरवां, जिगिना, भनखनपुर, भरखर, इदिलपुर गांव के किसानों के सैकड़ों एकड़ में लगी धान की फसल डूब गई है। सोमवार को जीटी रोड से दक्षिण के अमरपुरा, अवारी, बेलौड़ी, पकड़िहार, अमेठ, देवकली, केकढा, छोटकी देवकली, अनंतपुर, सदासपुर, उसरी, पिपरियां, मुबारकपुर, महरों, जयपुर इत्यादि गांव बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए थे। इसके बाद बाढ़ का पानी जीटी रोड को पार करने लगा। जिससे दानियालपुर कुरई, मोहनियां, कुर्रा, अकोढ़ी गांव के बधार में फैल गया। रेलवे लाइन से जीटी रोड तक सिर्फ पानी ही दिखाई दे रहा है। जल निकासी की व्यवस्था नहीं होने के कारण उक्त गांव टापू की तरह दिखाई दे रहे हैं। किसान काफी मेहनत से धान की रोपनी कराए थे। फसल अच्छी थी। लेकिन पानी में डूब जाने से किसानों को काफी क्षति हुई है। कितने दिनों तक जलजमाव रहता है यह कहना मुश्किल है। इस गंभीर समस्या की तरफ न तो जनप्रतिनिधियों के ध्यान है न हीं पदाधिकारियों का। किसान अपनी बर्बादी का तमाशबीन बने हुए हैं। करीब सात वर्षों से उक्त गांवों के लोग जल निकासी की व्यवस्था को ले जिला से लेकर अनुमंडल व अंचल तक गुहार लगा कर थक चुके हैं। पदाधिकारियों ने जन प्रतिनिधियों के साथ स्थल का मुआयना कर समस्या के समाधान का भरोसा दिलाया था लेकिन धरातल पर अभी उतारना बाकी है। किसान यही सोच रहे हैं की जून माह में मानसून की बारिश से धान का बिचड़ा बर्बाद हुआ। जुलाई माह में पानी की किल्लत से रोपनी प्रभावित हुई। तब दुर्गावती जलाशय से पानी क्यों नहीं मिला। जबकि पानी पर्याप्त था। अचानक अधिक मात्रा में पानी छोड़ने के बजाय थोड़ा थोड़ा पानी छोड़ा गया होता तो किसानों को इतनी तबाही नहीं झेलनी पड़ती।

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