शरद पूर्णिमा पर हुआ गयाजी धाम में भगवान विष्णु के श्रीचरणों का शृंगार, चांद पर पढ़ी गई कविता
आश्विल शुक्ल पक्ष में शरद पूर्णिमा के अवसर पर विशेष शृंगार किया गया। काफी आकर्षक ढंग से अष्ट कोण के साथ साथ श्री चरण के शृंगार किया गया। इसमें युवाओं को सात घंटे का समय लगा। यह शृंगार चावल से किया गया।
गया, जागरण संवाददाता। भगवान विष्णु के चरण चिह्न का प्रतिदिन संध्या कालीन बेला में शृंगार किया जाता है। बुधवार की शाम आश्विल शुक्ल पक्ष में शरद पूर्णिमा के अवसर पर विशेष शृंगार किया गया। काफी आकर्षक ढंग से अष्ट कोण के साथ साथ श्री चरण के शृंगार किया गया। इसमें युवाओं को सात घंटे का समय लगा। यह शृंगार चावल से किया गया। जो श्रीविष्णुपद प्रबंध कारिणी समिति की देखरेख में गयापाल समाज के युवाओं ने किया।
हर रोज शाम को होता विष्णु चरणों का शृंगार
वैसे तो विष्णु चरण के शृंगार की परंपरा चली आ रही है। जो प्रतिदिन संध्या बेला में होती है। यह शृंगार विष्णु के प्रिय चंदन और तुलसी से होता है। इसकी छाप सफेद मलमल पर लोग श्रद्धा से ले जाते और अपने-अपने घरों में पूजा के दौरान नमन करते हैं...नमो भगवते वासुदेवाय नमः।
पूर्णिमा तिथि को होती है फल्गु की महाआरती
श्री विष्णुपद मंदिर पवित्र फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर बसा है। नदी में जल का बहाव पश्चिम दिशा होकर है। मानो फल्गु श्रीचरण को पखारती उत्तर की ओर बलखाती चली जाती है। लेकिन फल्गु के भक्ति भाव की यह क्रीड़ा पिछले डेढ़-दो दशक से बंद है। फल्गु नदी में पानी अधिक रहने के कारण काफी अच्छा लग रहा था । क्योंकि नदी दोनों छोर पर बह रही थी । पूर्णिमा तिथि को फल्गु महाआरती होती है। कल रात देवघाट पर आरती हुई। इसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए।
शरद पूर्णिमा पर कवियों ने चाँद पर कविता पढ़ी
शरद पूर्णिमा के अवसर पर गया जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन भवन में चांद पर आधारित कविगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सभापति सुरेन्द्र सिंह सुरेंद्र व संचालन डॉ राकेश कुमार सिन्हा रवि ने किया। इस अवसर पर सबसे पहले आदिकवि बाल्मीकि को याद किया गया। वरिष्ठ कवि रामावतार सिंह ने आदिकवि बाल्मीकि के व्यक्तित्व-कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
उपस्थित कवियों ने चाँद पर अपनी प्रतिनिधि कविता पढ़ी। चन्द्रदेव प्रसाद केशरी ने गीत में गाया- चन्दा मां, ओ चन्दा मां। है जग में तू जन-जन का कितना प्यारा। तेरी छन्दनी की शीतलता, मन मोहे हमारा।। मुद्रिका सिंह ने गजल में शेर पढ़े- चाँदनी के संग चाँद, मस्त-मस्त हो रहा। चाँदनी की गोद में आज वह सो गया।। अभ्यानंद मिश्र ने अपनी कविता में गाया- चांदनी श्रृंगार कर उतरी धरा पर जब कभी। शांत सागर में हिलोर स्वयं ही उठता है।। सुरेन्द्र पाण्डेय सौरभ ने गीत में गाया- कानन के हरी भरी धरती चाँदनी पीए। खेत घर पगडंडी चाँदनी पीए।। नन्द किशोर सिंह ने कहा- आश्विन चन्द्र की रात, मधुर-मधुर गलबात। निर्मल सुहावन वात, सुकोमल सुमधुर गात।। उदय सिंह ने अपनी कविता में कहा- ऐ चाँद तुझे मैं क्या कहूँ! जब बच्चा था, मां कहती थी, तू मामा है।डॉ राकेश कुमार सिन्हा रवि ने हिन्दी फिल्मों में चाँद से जुड़े गीतों की प्रस्तुति दी। महामंत्री सुमन्त ने कहा- शरद पुनिया के चाँद अमृत बरसाव हे। बच्छर में एक बेर आज के दिन आव हे।। इस अवसर पर शिव वचन सिंह, विषधर शंकर, पंकज कुमार अमन आदि ने भी अपनी चाँद पर आधारित कविता का पाठ किया। अंत में सभी कवियों के प्रति सभापति जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।