यज्ञ के प्रादुर्भाव के साथ हो रहा ओखली का इस्तेमाल, औरंगाबाद में जिउतिया लोकोत्‍सव में इसका बड़ा महत्‍व

दाउदनगर में होने वाले जिउतिया लोकोत्सव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ओखली की होती है। ओखली की पूजा करने के साथ ही यहां नौ दिवसीय जिउतिया लोक उत्सव का आगाज होता है। सभी चौकों पर ओखली की पूजा की जाती है और उसे स्थापित किया जाता है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 02:59 PM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 02:59 PM (IST)
यज्ञ के प्रादुर्भाव के साथ हो रहा ओखली का इस्तेमाल, औरंगाबाद में जिउतिया लोकोत्‍सव में इसका बड़ा महत्‍व
जिउतिया पर ओ‍खली की पूजा करते मां-बेटे। जागरण आर्काइव।

संवाद सहयोगी, दाउदनगर (औरंगाबाद)। दाउदनगर में होने वाले जिउतिया लोकोत्सव में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ओखली की होती है। ओखली की पूजा करने के साथ ही यहां नौ दिवसीय जिउतिया लोक उत्सव का आगाज होता है। सभी चौकों पर ओखली की पूजा की जाती है और उसे स्थापित किया जाता है। पूर्व से ही जीमूतवाहन भगवान के बने चौकों पर पक्का निर्मित ओखली स्थापित है। इस ओखली की पूजा क्यों होती है, इसके बारे में लोगों को जानकारी न के बराबर है। दैनिक जागरण ने यह बताने का प्रयास किया है। आचार्य लालमोहन शास्त्री के अनुसार, सर्वप्रथम जब यज्ञ का प्रादुर्भाव वैदिक काल में हुआ। उसी समय यज्ञ में इस्तेमाल होने वाले हविश के लिए धान कूटने के लिए ओखली का निर्माण किया गया। तबसे ओखली भारतीय समाज का अभिन्न हिस्सा है। महत्वपूर्ण है कि यह एक कृषि यंत्र है जो धान कूटने का काम आता है। इसमें खाद्यान्न को कूटा जाता है, ताकि उससे अवांछित तत्व को निकाला जा सके।

दुश्मनों का सिर कुचलने के लिए ओखली: सूरज प्रसाद

कसेरा टोली स्थित जीमूतवाहन भगवान के चौक से जुड़े सूरज प्रसाद कसेरा उर्फ इंजीनियर कहते हैं कि दुश्मनों का सिर ओखली में रखकर कुचलने के लिए हम ओखली स्थापित करते हैं और उसकी पूजा करते हैं। यह पूछने पर कि हमारा दुश्मन कौन है, उन्होंने कहा कि पहले के जमाने में जब हमारे पूर्वज कोई कला प्रस्तुति देते थे तो तांत्रिक अपने तंत्र मंत्र का प्रयोग कर नुकसान पहुंचाते थे। उनसे बचने के लिए, उन्हीं का सर कुचलने के लिए पूर्वजों ने ओखली रखना शुरू किया।

सबसे पहले पाकड़ की बनी थी  ओखली : आचार्य लालमोहन

ओखली की पूजा क्यों करते हैं? इसके जवाब में कर्मकांडी आचार्य पंडित लालमोहन शास्त्री ने बताया कि सबसे पहले वैदिक युग में हविश बनाने के लिए ओखली का इस्तेमाल प्रारंभ हुआ और सबसे पहली बार पाकड़ की ओखली बनाई गई। बताया कि जिउतिया से जुड़े जीमूतवाहन भगवान की जो कथा है, उसमें पाकड़ के खोखले में चील रहता था। उसी कथा से जुड़े होने के कारण पहली बार पाकड़ की ओखली बनाई गई। बाद में उसे भगवान शंकर के डमरू से जोड़कर देखा जाने लगा। वैवाहिक परंपरा में मटकोर के दिन वधू पक्ष से वर पक्ष को तिलक में आए धान कूटने की परंपरा है। यह ओखली में ही कूटा जाता है और इसमें मूसल के साथ पांच लाठियों का इस्तेमाल महिलाएं करती हैं। इस दौरान महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। क्योंकि जीवन खाद्यान्न के बिना नहीं है और खाद्यान्न खाने योग्य बिना ओखली के नहीं बनता था। इसलिए ओखली का इस्तेमाल जीवन के लिए जरूरी हुआ और यह पूजा की परंपरा में शामिल होता चला गया। शास्त्री का कहना है कि ओखली के इस्तेमाल किए जाने के वक्त अहनद नाद ध्वनि निकलती है और यह बहुत महत्वपूर्ण होती है।

chat bot
आपका साथी