कैमूर में अब किसान पराली से बनाएंगे जैविक खाद व बंडल, भगवानपुर प्रखंड के इस गांव में लगा प्लांट, देखें तस्वीरें
किसानों को उनके ही फसल के अवशेष से खाद बनाने व उसका बंडल तैयार करने की योजना कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र ने शुरू की है। कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा के वैज्ञानिकों की देखरेख में भगवानपुर प्रखंड के भैरवपुर गांव में प्लांट लगाया गया है।
जासं, भभुआ: जल जीवन हरियाली जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत गुरुवार को कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा के मृदा विशेषज्ञ एवं इस कार्यक्रम के सह अन्वेषक डा. मनीष कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी रेवती रमण और सेवानिवृत वैज्ञानिक डा. एस के सिंह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पटना रीजन व आत्मा के सह परियोजना निदेशक नवीन कुमार ने बायोचार उत्पादन इकाई और स्ट्रॉ बेलर मशीन से पराली से बंडल तैयार करने के तरीके का अवलोकन किया। जिसमे भैरवपुर के लगभग 25 किसानों की भागीदारी रही।
किसान पराली न जला कर उसका उपयोग करें
इस दौरान किसानों को इसके विधि के बारे में समझाया गया ताकि किसान पराली न जला कर उसका उपयोग कर सकें। बता दें कि किसानों को उनके ही फसल के अवशेष से खाद बनाने व उसका बंडल तैयार करने की योजना कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र ने शुरू की है। कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र अधौरा के वैज्ञानिकों की देखरेख में भगवानपुर प्रखंड के भैरवपुर गांव में प्लांट लगाया गया है।
पराली से जैविक खाद व बंडल बनाने का भैरवपुर में लगा प्लांट
इस बारे में पदाधिकारियों ने बताया कि पराली से जैविक खाद व बंडल बनाने का कार्य कराने को ध्यान में रखकर भैरवपुर में प्लांट लगाया गया है। जिसके बारे में किसानों को जानकारी दी गई। पूर्व में ट्रायल के दौरान 15 प्रतिशत ही खाद तैयार हो सकी थी। गुरुवार की शाम में फाइनल ट्रायल होगा। जिसमें यह देखा जाएगा कि कितने प्रतिशत खाद तैयार होती है।
पराली जलाकर किसान खुद करते अपना और समाज का नुकसान
बता दें कि खेतों से फसल के कटने के बाद फसलों का जो अवशेष होता है उसे पराली कहते हैं। उस पराली को किसान अपने खेतों में ही जला लेते हैं इस कारण से पर्यावरण का बहुत ही ज्यादा नुकसान होता है। साथ ही खेत की मिट्टी में पाए जाने वाले तत्व में ऐसे पोषक तत्व भी होते हैं जो पौधों के लिए काफी लाभदायक होते हैं वह भी इससे नष्ट हो जाते हैं । सरकार बार-बार पराली जलाने से मना करती है लेकिन कई बार किसान नहीं मानते हैं और इसे खेतों में ही जला कर उसे नष्ट कर देते हैं जिससे पर्यावरण का और खेतों का काफी नुकसान हो जाता है।