पारासिटामोल तक नहीं कैमूर के इस सरकारी अस्‍पताल में, दावा- यहां मिलती हैं 65 प्रकार की दवाइयां

कुछ दवाएं तो पिछले छह महीने से अधिक समय से स्टोर से नदारद हैं। चिकित्सक वैकल्पिक दवाएं मरीजों को लिख रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पीएचसी के स्टोर से सामान्य बुखार में प्रयोग होने वाली दवा पारासिटामोल पिछले छह महीने से नदारद है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Sat, 20 Nov 2021 01:32 PM (IST) Updated:Sat, 20 Nov 2021 01:32 PM (IST)
पारासिटामोल तक नहीं कैमूर के इस सरकारी अस्‍पताल में, दावा- यहां मिलती हैं 65 प्रकार की दवाइयां
नुआंव प्राथमिकी उपचार केंद्र की तस्‍वीर। जागरण आर्काइव।

संवाद सूत्र, नुआंव (भभुआ)। नुआंव पीएचसी में कई दवाएं नहीं है। कुछ दवाएं तो पिछले छह महीने से अधिक समय से स्टोर से नदारद हैं। चिकित्सक वैकल्पिक दवाएं मरीजों को लिख रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पीएचसी के स्टोर से सामान्य बुखार में प्रयोग होने वाली दवा पारासिटामोल पिछले छह महीने से नदारद है। इसके स्थान पर चिकित्सक ब्रूफेन और अन्य वैकल्पिक दवाओं का प्रयोग कर इलाज करने के लिए विवश हैं। पीएचसी पर 60 से 65 प्रकार की दवाएं उपलब्ध रहनी चाहिए। लेकिन अस्पताल सूत्रों के अनुसार मात्र 35 प्रकार की हीं दवा उपलब्ध है।

इस संबंध में पीएचसी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डा. रामकृष्ण सिंह ने बताया कि पहले पीएचसी पर दवाओं की आपूर्ति जिला से होती थी। लेकिन, अब नई व्यवस्था के तहत पीएचसी को प्रत्येक तीन महीने के लिए सीधे पटना डिमांड भेजना होता है और उसी के अनुरूप दवाओं की आपूर्ति की जाती है। एक पीएचसी तीन महीने की दवा के लिए अधिकतम आठ लाख रुपये कीमत तक डिमांड कर सकता है। इस पीएचसी का डिमांड जुलाई महीने में हीं भेजा जा चुका है। जो जुलाई से सितंबर महीने तक के लिए थी। लेकिन नवंबर महीना बीतने को है फिर भी आपूर्ति नहीं की गई। ऊपर से अक्टूबर महीने में पुन: अगले तीन महीने की डिमांड मांग ली गई है।

इस संबंध में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने कहा कि पहले जिला से दवाओं की आपूर्ति होती थी तो ऐसी स्थिति नहीं रहती थी। अभी भी जिला से कुछ दवाओं को मंगाकर काम चलाया जा रहा है। पारासिटामोल तो जिला में भी नहीं है। यदि डिमांड की गई दवाओं की आपूर्ति हो जाए तो पीएचसी पर दवाओं की कोई कमी नही रह जाएगी। यह विडंबना पूर्ण है कि एक तरफ सरकार जहां स्वास्थ्य क्षेत्र को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। वहीं इस पीएचसी के संदर्भ में घोर लापरवाही प्रतीत हो रही है। यदि स्टॉक में दवा ही नहीं रहेगी तो चिकित्सक कैसे इलाज करेंगे यह समझ से परे हैं।

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