नक्सलियों ने धान की फसल नहीं काटने की दी है चेतावनी
गया। डुमरिया थाना क्षेत्र मोनबार गांव में शनिवार की रात एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या के बाद नक्सलियों ने खेत में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। नक्सलियों ने सरजू सिंह भोक्ता के दो बेटे व दो बहुओं की हत्या कर दिया था।
गया। डुमरिया थाना क्षेत्र मोनबार गांव में शनिवार की रात एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या के बाद नक्सलियों ने खेत में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। नक्सलियों ने सरजू सिंह भोक्ता के दो बेटे व दो बहुओं की हत्या कर दिया था। नक्सलियों ने चेतावनी दी है कि चार बीघा खेत में लगी धान की फसल अगर काटी गई तो दोबारा इसी तरह की कार्रवाई होगी।
नक्सलियों के इस फरमान से मोनबार के ग्रामीण सहमे हुए हैं। नक्सलियों ने चारों की पिटाई के बाद फांसी के फंदे से लटका दिया था। नक्सलियों की कार्रवाई से हर कोई सहमा हुआ है। कोई भी ग्रामीण घटना के बाद कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। पुलिस प्रशासन ने घटनास्थल पर जाकर पीड़ित व ग्रामीणों को विश्वास में लेकर बातचीत करने की कोशिश कर रही है, लेकिन कोई ग्रामीण नक्सली कार्रवाई के खिलाफ खुलकर नहीं बोल रहा है। ग्रामीणों की मानें तो यहां कोई जन अदालत नहीं लगी थी। नक्सली आए और एक परिवार को बाहर निकालकर पूछताछ कर पिटाई के बाद मौत की नींद सुला दिया।
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दादा-दादी के कंधों पर पांच बच्चों की परवरिश की जिम्मेवारी
भाकपा माओवादी की कार्रवाई के बाद पांच बच्चे अनाथ हो गए। महेंद्र सिंह भोक्ता और सतेंद्र सिंह भोक्ता सहित दोनों की पत्नियों की हत्या के अब सरजू सिंह भोक्ता व उनकी पत्नी ही सहारा हैं। घर में कोई कमाने वाला नहीं है। सरजू भोक्ता की पौत्री शोभा इंटर में पढ़ रही है। वह रोते-रोते बेहोश हो जा रही है। होश आने पर बार-बार यही कह रही है कि बाबूजी, और माय हमनी के छोड़ कर कहा चली गई, हमर पढ़ाई कैसे होते हो बाबूजी, कौन हमनी के खनवा देते हो। आठ साल का प्रिस को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि हमारे माता, पिता, चाचा, चाची को क्यों मारा गया। शोभा बताती है कि अब जीना मुश्किल हो गया है। अब कहां जाएं और अब क्या करें। घटना के बाद भी जनप्रतिनिधि देखने नहीं आए हैं। घटना के कई घंटे बाद पुलिस पहुंची। --
अब पलायन को लेकर कर रहे विचार
शोभा बताती हैं कि माता-पिता और चाचा-चाची की हत्या के बाद अब तो नक्सलियों ने खेत में नहीं जाने का फरमान जारी कर दिया है। ऐसे में जीवन-यापन करना मुश्किल हो रहा है। अब तो यहां से पलायन करना ही होगा, लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि कहां जाएं।