नदी में डूबे मजदूर को ढूढऩे में नवादा प्रशासन की दिलचस्पी नहीं, अधिकारियों तक नहीं पहुंच रही स्‍वजनों की पुकार

हिरामन बिगहा निवासी 55 वर्षीय योगेन्द्र मांझी को पंचाने नदी में डूबे हुए बुधवार को चार दिन बीत गए लेकिन पुलिस-प्रशासन ढूंढऩे का प्रयास नहीं कर सकी है। इससे पीडि़त पक्ष में पुलिस प्रशासन के प्रति काफी नाराजगी दिख रही है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Thu, 07 Oct 2021 10:07 AM (IST) Updated:Thu, 07 Oct 2021 10:07 AM (IST)
नदी में डूबे मजदूर को ढूढऩे में नवादा प्रशासन की दिलचस्पी नहीं, अधिकारियों तक नहीं पहुंच रही स्‍वजनों की पुकार
पंचाने नदी में डूबे अधेर का नहीं मिला सुराग। सांकेतिक तस्‍वीर।

संवाद सूत्र, नारदीगंज (नवादा)। थाना क्षेत्र के हिरामन बिगहा निवासी 55 वर्षीय योगेन्द्र मांझी को पंचाने नदी में डूबे हुए बुधवार को चार दिन बीत गए, लेकिन पुलिस-प्रशासन ढूंढऩे का प्रयास नहीं कर सकी है। इससे पीडि़त पक्ष में पुलिस प्रशासन के प्रति काफी नाराजगी दिख रही है। चार दिनों से घर में चूल्हा चौका भी नहीं जला है। भूखे प्यासे स्वजन अपनी टूटी हुई झोपड़ी के बाहर घर के मालिक के सकुशल लौटने की उम्मीद में राह ताकते दिख जाते हैं। बुधवार को दोपहर बाद पीडि़त के दरबाजे पर पहुंचे तो वहां का माहौल हृदय द्रवित करने वाला था। ग्रामीण सरकारी व्यवस्था को सीधे कटघरे में खड़ा करते हुए कह उठे हाय रे व्यवस्था, ऐसे में भी लोग रहते है। टुटी हुई मड़ैया (झोपड़ी) पीडि़त परिवार का बसेरा है।

हालात कुछ इस तरह कि कुछ ईंट को घेरकर छोटी से झोपड़ी और उसके उपर प्लास्टिक डाला है। घर का कमाउ सदस्य चार दिनों से नदी में लापता हैं, स्वजन आने की वाट जोह रहें हैं। चुल्हे शांत पड़ा हुआ था। छोटे-छोटे बच्चे भूख से बिलख रहे थे। शासन-प्रशासन परिवार की सुध लेने नहीं पहुंचा था। पति के डूबने के बाद पत्नी सितबिया देवी के आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा है। रोते रोते गला रूंध चुका है। भूखे प्यासे रहने के कारण सही तरीके से आवाज नहीं निकल पा रही है।

पांच बेटी व तीन बेटे इसके हैं। दो पुत्र व दो पुत्री की शादी हो चुकी है। छोटा पुत्र भोला कुमार और दो बेटियां रामा कुमारी व शांति कुमारी अविवाहित हैं। बताया गया कि बीपीएल सूची में नाम नहीं है,राशन किरासन का लाभ नहीं मिलता है, पीएम आवास भी नहीं मिल पाया। पुत्र मुकेश मांझी व राजाराम मांझी कहते हैं कि पुलिस प्रशासन थोड़ी पहल करती तो अबतक पिताजी की खोज हो जाती। घटना के दिन पुलिस केवल दिखावे के लिए आई थी। खोजने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। गोताखोर व एनडीआरएफ टीम को बुलाने का पहल नहीं हुआ। उफनती नदी में घुसकर तलाश करना ग्रामीणों के बूते का नहीं था।

यही घटना राजनेता व अधिकारी के परिवार के साथ होता तो घटना के दिन ही तलाश पूरी हो जाती। हमलोग गरीब परिवार के हैं, इसलिए प्रशासन ने अनदेखी कर दी। प्रतिदिन नदी के आसपास जा रहे है, लेकिन निराशा हाथ लग रही है। योगेन्द्र मांझी 3 अक्टूबर यानि रविवार की सुबह मजदूरी करने के लिए पंचाने नदी को पार करने के प्रयास में डूब गए थे। उसके बाद से अता पता नहीं चल पाया है।

ग्रामीण बताते हैं कि खेती बारी के लिए नदी के उसपार जाना मजबूरी है। ऐसे में प्रतिवर्ष लोग हादसे का शिकार होते है। नदी पर पुल बनाने की मांग होती रही है। लेकिन, मांग पूरा नहीं हो रहा है। इस मसले पर बात के लिए नारदीगंज के बीडीओ, सीओ व थानाध्यक्ष के सरकारी मोबाइल पर कई बार संपर्क किया गया लेकिन किसी भी अधिकारी ने काल नहीं उठाया।

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