मिट्टी के दीये जलाएं, भारतीय संस्कृति के साथ पर्यावरण बचाएं, दीपावली पर्व को लेकर लोगों ने शुरू की तैयारी

कुछ समय पहले मिट्टी के बर्तन की मांग दीपावली जैसे त्योहारों पर नहीं के बराबर होती थी। लेकिन अब इस बर्तन की मांग बढ़ी है। मिट्टी का नहीं मिलना भी कुम्हारों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। सरकार भी कुम्हारों की तरफ ध्यान नहीं दे रही।

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 05:48 PM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 05:48 PM (IST)
मिट्टी के दीये जलाएं, भारतीय संस्कृति के साथ पर्यावरण बचाएं, दीपावली पर्व को लेकर लोगों ने शुरू की तैयारी
दीपावली पर्व को लेकर लोगों ने शुरू की तैयारी

 संवाद सूत्र, रामगढ़: आधुनिकता के चकाचौंध में गुम हो रही भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए दीपों के त्योहार पर मिट्टी के दीये जलाएं। तभी पर्यावरण के साथ हम सब संरक्षित रह सकते हैं। इसलिए सब लोगों को मिलजुल कर घरों में मिट्टी का दीया जलाने से एक वर्ष का जो विकार रहता है वह भी दूर होता है। कुछ वर्षों से परंपरा व रीति रिवाज के प्रतिकूल दीपावली पर घरों में जलने वाले मिट्टी के दीये को कृत्रिम रोशनी ने अपने आगोश में लेकर भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया है। इससे बचने के लिए स्वदेशी अपनाओ के श्लोगन के साथ रामगढ़ के लोग घरों में मिट्टी के दीये जलाने की तैयारी में लग गए हैं। गांव से लेकर देवी देवताओं के मंदिरों में भी लोग मिट्टी की दीये जलाने की तैयारी कर रहे हैं।

कृत्रिम लाइट कुम्हारों के रोजगार पर भी आफत बन कर आ गया था

लोग बताते हैं कि मिट्टी के दीये जलाने से घरों में व्याप्त अंधेरा भी छंटता है तथा पर्यावरण को भी इससे नुकसान नहीं होता। पर्यावरण को बचाना है तो एक एक व्यक्ति को स्वदेशी अपनाकर अपने घरों में मिट्टी का एक एक दीपक जलाना होगा। कृत्रिम लाइट कुम्हारों के रोजगार पर भी आफत बन कर आ गया था। इससे लोगों का रोजगार भी छिन गया था। घरों में मिट्टी के दीपक यदा कदा ही दिखाई पड़ रहे थे। लेकिन अब धीरे धीरे लोगों ने आधुनिकता को त्याग पुरानी पद्धति के तहत मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करने का कार्य शुरू कर दिया है। जिसके कारण कुम्हारों का धंधा भी अब नये तरीके से शुरू हो गया है। 

मिट्टी के बर्तन बनाने के कार्य में जुटे कुम्हार रामयश ने बताया कि कुछ समय पहले मिट्टी के बर्तन की मांग दीपावली जैसे त्योहारों पर नहीं के बराबर होती थी। लेकिन अब इस बर्तन की मांग बढ़ी है। मांग बढ़ने से मिट्टी का नहीं मिलना भी हमलोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। सरकार भी हमलोगों की तरफ ध्यान नहीं दे रही है।

क्या कहते हैं दुकानदार

सोनू कुमार गुप्ता कहते हैं कि मिट्टी के बर्तन की मांग बढ़ने से इस वक्त कृत्रिम लाइट की मांग कम हो गई है। लोगों को अपने अपने घरों में स्वदेशी सामान का प्रयोग करें। मिट्टी का दीया जला घरों को रोशन करें तभी पर्यावरण संरक्षित होगा।

राकेश तिवारी कहते हैं कि दीपों के त्योहार के समय कुछ ज्यादा ही लोग लाइट का उपयोग करते थे। इससे हमलोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। इसे दूर करने के लिए हमलोगों को मिट्टी का दीपक जलाना व मिट्टी के बर्तन का अधिक से अधिक उपयोग करने की जरूरत है।

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