सासाराम के इस गांव की बेटियों को संबल दे रहा लाडो सम्मान, सगे भाइयों के प्रयास से आगे आ रहीं बहनें

बेहतर कार्य करने वाली गरीब बेटियों को आर्थिक कमी आड़े न आए उन्हें मदद भी दी जाती है। दहेज मुक्त शादी करने वाले लड़के-लड़कियां बेटियों को निशुल्क शिक्षा देने वाले व संगीत के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने वाले लोगों को भी लाडो उत्सव में सम्मान प्रदान किया जाता है।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Tue, 13 Jul 2021 10:32 AM (IST) Updated:Tue, 13 Jul 2021 10:32 AM (IST)
सासाराम के इस गांव की बेटियों को संबल दे रहा लाडो सम्मान, सगे भाइयों के प्रयास से आगे आ रहीं बहनें
लड़कियों को उड़ान के लिए पंख दे रहा लाडो सम्‍मान। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

संवाद सूत्र, संझौली (रोहतास)। दुनिया की इस कठिन मंच पर एक प्रदर्शन मैं भी दिखलाऊंगी। कठपुतली नहीं किसी खेल की, स्वतंत्र मंच पर पंचम लहराऊंगी .. यह उक्तियां बेटियों के हौसलों व जज्बों को ले बदलते परिवेश में उनके सामाजिक सम्मान का सार्थक परिणाम है।

अब तो बेटियों के सपनों को संबल देने के लिए कई लोग आगे भी आए हैं। ऐसे ही है धावां के प्रभाषचंद्र उर्फ मंटू सिंह व अभिजीत सिंह उर्फ पिंटू सिंह का। दोनों सहोदर भाई हैं। रोहतास जिले के बिक्रमगंज के समीप धांवा गांव के दोनों सहोदर भाइयों ने लाडो सम्मान की शुरुआत कर क्षेत्र की बेटियों की उड़ानों को पंख दी है।

इससे ग्रामीण क्षेत्र के खेतों की पगडंडियों पर दौड़ लगाने वाली गांव की बेटियों में उड़ान भरने को ले न सिर्फ संबल मिला है, बल्कि उन्हें एक अलग पहचान भी मिली है। लाडो सम्मान ने गांव की बेटियों के सम्मान को बढ़ाने केे साथ उन्हें हौसलों व जज़्बों से लवरेज कर मुकाम तक पहुंचाने को ले प्रेरित भी किया है।

2012 में शुरू हुई थी लाडो सम्मान

2012 में शुरू लाडो सम्मान के पहले वर्ष विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाली दो दर्जन बेटियों को सम्मान दिया गया था। वह गांव की वैसी बेटियां थी, जो बेहतर कार्य तो कर रही थी। पर सामाजिक सम्मान के अभाव में उनके कार्यों की कोई पहचान नहीं थी। शिक्षा, संगीत, सिलाई-कढ़ाई, पर्यावरण, महिला सशक्तीकरण जैसे सरोकारों पर कार्य करने वाली पांच सौ से अधिक बेटियों व महिलाओं को लाडो सम्मान से अबतक नवाजा जा चुका है।

बेहतर कार्य करने वाली गरीब बेटियों को आर्थिक कमी आड़े न आए, उन्हें मदद भी दी जाती है। दहेज मुक्त शादी करने वाले लड़के-लड़कियां, उनके माता-पिता, बेटियों को निशुल्क शिक्षा देने वाले लोग व संगीत के क्षेत्र में बेटियों को प्रोत्साहित करने वाले लोगों को भी लाडो उत्सव में सम्मान प्रदान किया जाता है।

लाडो सम्मान पाने वाली बेटियों का मानना है कि उन्हें ऐसे सम्मान से खुद को साबित करने का हौसला व जज्बा मिला। कुचिला (कोचस) की दिव्यांग प्रियंका छह-सात वर्षो से गौरैया संरक्षण पर कार्य कर रही है। बताती हैं कि उसके कार्यों को किसी ने सम्मान की नजरिया से नहीं देखा पर लाडो सम्मान मिला तो उससे अलग पहचान मिली व जज्बा बढ़ा।

संगीत के क्षेत्र में प्गायिका अंजलि भारद्वाज (भोजपुर), काव्या कृष्णमूर्ति, खुशबू सिंह, दीपिका ओझा, अंजली सिंह, नंदिनी, आस्था प्रियदर्शी, अभिनय के क्षेत्र में रंभा (डिहरी), नेहा सिंह, स्वीटी सिंह व गन्ने की रस से बिजली उत्पादन करने वाली शिवानी सिंह, मैट्रिक अनुमंडल टॉपर चांदनी (जमोड़ी) कहती हैं कि ऐसे सम्मान से बेटियों को खुद को साबित करने का हौंसला मिल रहा है।

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