मोक्ष और ज्ञान की भूमि गया की इस खासियत को जानते हैं आप, मन को भी मिलता है यहां सुकून

गयापाल समाज में शास्‍त्रीय संगीत की परंपरा पुरानी है। उस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए यहां के बच्‍चे भी सुर-लय और ताल की बारीकियां समझ रहे हैं। यहां के गयापाल तीर्थ पुरोहित शास्‍त्रीय संगीत के काफी शौकीन थे।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Fri, 19 Feb 2021 08:00 AM (IST) Updated:Fri, 19 Feb 2021 09:59 AM (IST)
मोक्ष और ज्ञान की भूमि गया की इस खासियत को जानते हैं आप, मन को भी मिलता है यहां सुकून
संगीत का अभ्‍यास करते गयापाल समाज के बच्‍चे। जागरण

कमल नयन, गया। ज्ञान और मोक्ष की भूमि गया की एक और खासियत से हम आपको रूबरू कराते हैं। वह खासियत से आत्‍मा से परमात्‍मा के मिलन का माध्‍यम संगीत। यहां संगीत की सरिता प्रवाहित होती है। वैदिक मंत्रों के साथ यहां सुर और ताल की गूंज भी होती है। दरअसल हम बात कर रहे हैं गयापाल समाज की। इनके बच्‍चे शास्‍त्रीय संगीत की बारीकियां समझ रहे हैं। दरअसल गया के तीर्थपुरोहित गयापाल शास्त्रीय संगीत के भी शौकीन रहे हैं। बिस्मिल्ला खां जैसे मशहूर शहनाई वादक यहां अपनी शहनाई की गूंज बिखेरी थी।  

श्रीहरि विष्णु के नाम पर चल रहा विद्यालय

परंपरा को जीवंत रखने के ख्याल से गयापाल समाज के संगीत प्रेमियों ने वर्ष 2017 में विष्णुपद शास्त्रीय संगीत विद्यालय की स्थापना की। यहां तबला, हारमोनियम, तानपुरा सहित शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण दिया जाने लगा। प्रारंभिक दौर में बच्चों की संख्या अच्छी रही। सप्ताह के तीन दिन बुधवार, शुक्रवार और रविवार को शास्त्रीय संगीत के गुर बताए जा रहे हैं। संस्था के सर्वेसर्वा राजन सिजुआर बताते हैं कि चार सालों में विद्यालय में 125 बच्चों ने शास्त्रीय संगीत और उससे जुड़े वाद्य यंत्रों की शिक्षा प्राप्त की है। गायन और वादन में इन लोगों ने बेहतर शिक्षा हासिल की है।

बुजुर्गों के कदम पर चल रहे ये बच्चे

संगीत विद्यालय में चार वर्षों से अभ्यास कर रहे बच्चों में अपने पूर्वजों के राह पर चलने का अभ्यास जारी है। छह वर्ष का सात्विक सिजुआर सा-रे-गा-मा का तान उठाता है तो हारमोनियम पर आयुष धोकड़ी, अभय गोस्वामी, अग्नि चौधरी, मन्नू गोस्वामी, शोभ बिट्ठल का जवाब नहीं, जब नन्हें-नन्हें हाथ तबले पर थाप देते हैं। शान्या और काजल के साथ लक्ष्मी पाठक का गायन भी श्रोताओं को मन मोहता है।

170 साल पुराना है गयापाल समाज का शास्त्रीय गायन का इतिहास

तबला वादक श्याम लाल पाठक को अंग्रेज शासक ने एक मामले में अंडमान निकोबार में कालापानी की सजा दी थी। जानकार बताते हैं कि क्रिसमस डे पर उनके परिवार के बैजू लाल पाठक ने मिट्टी के घड़े पर तबले की थाप दी थी। उससे अंग्रेज इतने मुग्‍ध हो गए कि श्‍यामलाल पाठक को सजा से मुक्ति मिली। कहा जाता है कि कन्हैया लाल ढेडी जब संगीत की तान छेड़ते थे तब आदमी ही नहीं वन्‍य प्राणी भी जैसे मुग्‍ध हो जाते थे।  इस कड़ी में उस्ताद सोनी सिंह जी एवं लय के धुरंधर गोविन्द लाल नकफोफा भी याद किए जाते हैं। इनकी ख्याति सभी जगह थी। एक नहीं कई ऐसे शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ थे जिन्हें देश जानता था। 

गया घराना और उसकी ठुमरी

शास्त्रीय संगीत की दुनियां में गया घराना ने भी अपनी पहचान बनाई थी जिसकी विशेषता ठुमरी गायन से थी। शृंगार प्रधान गायक सोनी सिंह जी के बाद ठुमरी में जयराम तिवारी, कामेश्‍वर पाठक, सियाशरण पाठक, रामू प्रसाद जी और गोवर्द्धन मिश्र के भी नाम भी प्रमुखता से स्मरण किए जाते हैं। ठुमरी का प्रचलन गया घराने का था और इसे काफी आनंद के साथ सुना जाता था।

शास्त्रीय गायन में महारत हासिल किए लोग भी आए हैं गया

शास्त्रीय गायन की लंबी फेहरिस्त गयाजी के पास है। चार फाटकों के बीच चौदह बैठकें हुआ करती थी। जिनमें शाम के बाद संगीत की महफिल सजती थी। इन बैठकों में देश के जाने-माने गायक-गायिकों का जुटान हुआ है। जिनमें आफताब मौसमी, पंडित ओंकारनाथ, डीबी पुलस्कर, निर्मला अरूण, किशन जी महाराज, गुदई महाराज, बिसमिल्लाह खां, रसूलन देवी, सिद्धेश्वरी देवी, जिद्दन बाई, जानकी बाई छप्पनछुरी और ठुमरी की ढेला बाई यहां आकर अपनी सुर-ताल को प्रदर्शित की है। गया को आज भी अपने इतिहास पर गर्व है।

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