मुगलकालीन छत्तर दरवाजा को लेकर नगर परिषद ने डीएम से मांगा मार्गदर्शन, ध्वस्त होने का खतरा
दाउदनगर में स्थित मुगलकालीन छत्तर दरवाजा की बदहाली के संबंध में दैनिक जागरण की खबर पर संज्ञान लेते हुए नगर परिषद ने डीएम को पत्र भेजकर मार्गदर्शन की मांग की है। यह दरवाजा पुरातत्व विभाग के अधीन है।
गया। दाउदनगर शहर बसाने वाले औरंगजेब के सिपहसालार दाऊद खां के बनवाए गए छत्तर दरवाजा को लेकर औरंगाबाद नगर परिषद ने जिला पदाधिकारी से मार्गदर्शन मांगा है। दाउदनगर बारुण रोड के किनारे शहर के प्रवेश द्वार पर स्थित छत्तर दरवाजा का एक स्तंभ भारी मालवाहक वाहन के धक्के से ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच गया है। स्थिति यह है कि अब किसी हल्के धक्के से से भी यह धराशायी हो सकता है।
दरवाजे के आधार में दरारें आ गई हैं। यह कभी भी गिर सकता है जिससे जानमाल की क्षति हो सकती है। दैनिक जागरण ने इस मामले को लेकर 'कभी भी ध्वस्त हो सकता है 17 वीं सदी का बना दरवाजा' शीर्षक से खबर शुक्रवार को प्रकाशित किया था। उसमें बताया गया कि इस दरवाजा का महत्व क्या है। 17 वीं सदी में इसका कब, किसके द्वारा और क्यों निर्माण कराया गया था। शहर की सुरक्षा के लिए निर्मित दरवाजा आज खुद सुरक्षा की दरकार रखता है। इसे सुरक्षित किए जाने की पहल पहले भी दैनिक जागरण ने की थी। तब नगर पंचायत के मुख्य पार्षद नारायण प्रसाद तांती ने इसका रंग रोगन करवाया था। लेकिन आज यह ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच गया है, तो नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी जमाल अख्तर ने बताया कि उन्होंने जिला पदाधिकारी को ईमेल भेजकर उचित मार्गदर्शन देने की मांग की है। उन्होंने पत्र में बताया है कि यह पुरातत्व विभाग के अधीन है। ट्रक द्वारा ठोकर मार दिए जाने से इसके गिरने की संभावना अधिक है। उन्होंने बताया कि पूर्व उप मुख्य पार्षद और वर्तमान वार्ड पार्षद कौशलेंद्र ¨सह ने उन्हें इसमें दरार आने की सूचना दी थी। लेकिन छत्तर दरवाजा के मामले में नगर परिषद के हाथ इसलिए बंधे हुए हैं कि यह पुरातत्व विभाग के अधीन है।
मालूम हो कि दाउदनगर स्थित दाउद खां का किला बिहार सरकार द्वारा संरक्षित घोषित पुरातात्विक स्थलों की सूची में शामिल है। यह छत्तर दरवाजा उस किला का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए नगर परिषद का मानना है कि पुरातत्व विभाग के बिना आदेश के कुछ भी करना संभव नहीं है। छत्तर दरवाजा का ध्वस्त होना अब तय हो गया है। चाहे वह खुद ध्वस्त होकर गिर जाए या प्रशासनिक सहमति और आदेश के आलोक में नगर परिषद या पुरातत्व विभाग इसे ध्वस्त करे। ताकि जानमाल की क्षति न हो सके। लेकिन इसके ध्वस्त होने के बाद इसका हूबहू निर्माण काफी मुश्किल है। मुगलकालीन पतली लाल ईंटों से चुना और सुर्खी से इस स्तंभ को बनाया गया था। अब वैसी ईंट, गारा और कारीगर मिलना मुश्किल है।