कैमूर के किसान ने किया कमाल, 45 दिन में इंडिया गेट प्रजाति का धान तैयार कर बन गए चर्चा का विषय

सिवाना में बड़ी-बड़ी बालियां लिए हुए सुगंध से भरपूर इस धान की प्रजाति को देखने के लिए बाहर के लोग भी पहुंच रहे है। सड़क से लेकर गांव तक इस धान के पौधे की महक जाते देख लोग बरबस ही इस धान को निहारने खेत में पहुंच जाते हैं।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Mon, 27 Sep 2021 04:24 PM (IST) Updated:Mon, 27 Sep 2021 04:24 PM (IST)
कैमूर के किसान ने किया कमाल, 45 दिन में इंडिया गेट प्रजाति का धान तैयार कर बन गए चर्चा का विषय
कैमूर के किसान ने 45 दिन में इंडिया गेट प्रजाति का धान उपजाया। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

संवाद सूत्र, रामगढ़ (भभुआ)। रामगढ़ प्रखंड क्षेत्र के बगाढ़ी गांव के किसान संजय सिंह को अच्छी प्रजाति के धान की खेती करने का महारथ इनको मिल चुका है। इसके लिए इन्हें उन्नत किसान के सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। बगाढ़ी गांव के सिवाना में बड़ी बड़ी बालियां लिए हुए सुगंध से भरपूर इस धान की प्रजाति को देखने के लिए बाहर के लोग भी पहुंच रहे है। सड़क से लेकर गांव तक इस धान के पौधे की महक जाते देख लोग बरबस ही इस धान को निहारने खेत में पहुंच जाते हैं। तकरीबन 42 बीघा के विस्तार में इंडिया गेट नामक प्रजाति के धान के लगे पौधे कटनी के लिए तैयार हैं। बारिश से खेत गिला होने के कारण कुछ विलंब होना बताया जा रहा है। अन्यथा अभी तक यह फसल खेत से निकल गई होती।

इंडिया गेट नामक धान की इस प्रजाति को कैमूर में ले आने का कार्य इस किसान ने प्राप्त किया है। उन्होंने बताया कि हरियाणा मेंं किसान प्रशिक्षण के दौरान विशेषज्ञों ने इस नए धान की प्रजाति के लिए प्रेरित किया था। तब खेत की मिट्टी जांच व सुक्ष्म तत्व की जानकारी के बाद ही इस प्रजाति के पौधे लगाने की बात कही गई थी। उपज व दर मन भी किसी धान से कम नहीं जाता। खास बात यह है की यह प्रजाति बिचड़ा के 45 दिन में ही खेत में पककर बाहर निकल जाता है। जिससे रबी की फसल को भी आच्छादित होने का फायदा मिलता है।

किसान संजय सिंह ने बताया कि इस प्रजाति की खेती पिछले वर्ष दो हेक्टेयर में की गई थी। लेकिन इसके पैदावार में बढ़ोतरी के बाद इसको विस्तार दिया गया है। कम खाद व निरोग रहने वाला यह धान का इस तरीके से लोग खेती करें तो धन धान्य से लोगों का घर भरना तय है। उन्होंने बताया कि इतना पहले यह प्रजाति खेत से बाहर निकल जाती है कि कटनी का भी कोई झंझट नहीं और न ही दंवरी का। इसके पौधे से किसानों को चौतरफा लाभ ह।

कम खाद व दो पानी ही धान हो जाता तैयार

इंडिया गेट नामक इस धान की प्रजाति की खेती में खर्च भी कम है। रोपनी के बाद मौसम साथ दिया तो ठीक नहीं तो दो पानी में ही धान पक जाता है। खाद की मात्रा भी अन्य प्रजाति के धान से कम लगता है। खाद पानी का झंझट ही नहीं रहता। इंडिया गेट नामक इस धान की प्रजाति को बेंचने के लिए बाजार की तलाश नहीं करनी पड़ती। व्यापारी यहां खुद ही आकर धान के पौधे से लेकर चावल की मांग करते हैं। डिमांड इस धान के चावल का अधिक है। 160 रुपये किलो इसका चावल बिकता है। व्यापारी दरवाजा से आकर इस प्रजाति के धान व निकलने वाले चावल की खरीद कर लेते हैं।

क्या कहते हैं कृषि विशेषज्ञ

जितेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि इंडिया गेट नामक इस धान की प्रजाति अभी सरकारी स्तर पर नहीं उपलब्ध है। प्राइवेट कंपनियों द्वारा यह धान का बीज मंडी में उपलब्ध कराया गया है। प्रजाति अच्छी है। उपज भी सही है। रामगढ़ में बगाढ़ी गांव मेंं इस धान की खेती की शुरुआत हुई है।

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