स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री जी, जरा इधर भी ध्‍यान दीजिए, आपके क्षेत्र में इतनी खराब व्‍यवस्‍था ठीक नहीं, पहले इसे तो सुधारिए

कैमूर के रामगढ़ में राममनोहर लोहिया रेफरल अस्‍पताल है। यहां के सांसद अश्विनी कुमार चौबे देश के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री हैं। लेकिन इस अस्‍पताल की व्‍यवस्‍था ऐसी है कि मरीजों को निजी अस्‍पतालों का सहारा लेना पड़ता है। महिला चिकित्‍सक तक नहीं हैं।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 27 Feb 2021 10:31 AM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 11:20 AM (IST)
स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री जी, जरा इधर भी ध्‍यान दीजिए, आपके क्षेत्र में इतनी खराब व्‍यवस्‍था ठीक नहीं, पहले इसे तो सुधारिए
राममनोहर लोहिया रेफरल अस्‍पताल का भवन। जागरण

संवाद सूत्र, रामगढ़ (कैमूर)। स्थानीय सांसद सह केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री (Central Minister of Health and Family Welfare) अश्‍िवनी कुमार चौबे के क्षेत्र की आधी आबादी की सेहत भगवान भरोसे है। रामगढ़ में राममनोहर लोहिया रेफरल अस्पताल है। लेकिन कभी भी यह अस्पताल अपने नाम को सार्थक नहीं कर सका। इस क्षेत्र के ही इस विभाग से संबंधित केंद्रीय मंत्री हैं बावजूद यहां सुविधाएं नदारद है तो सवाल लाजमी है। एनबीएसयू से लेकर अल्ट्रासाउंड वर्षों से बंद है। एक्सरे नाम मात्र का रह गया है। पिक्चर एक्सरे का रिपोर्ट तय नहीं कर पाता। डिजिटल एक्सरे लाने की कवायद को अभी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। एएनएम के भरोसे आधी आबादी की सेहत सुधारी जा रही है। प्रसव पूर्व व प्रसव बाद सब जांच एएनएम करती हैं। इसके चलते सिजेरियन प्रसव निजी अस्‍पतालों में कराने की मजबूरी है। समान्य प्रसव के दौरान भी नवजात शिशुओं की हालत बिगड़ने पर एएनएम हाथ खड़ा कर लेती हैं। कई बार तो शिशु की जान भी चली जाती है। बावजूद इस राममनोहर लोहिया रेफरल अस्पताल को न तो महिला चिकित्सक मिले और न ही विशेषज्ञ डॉक्टर। 

ऊंची दुकान फीकी पकवान वाली स्थिति

रेफरल अस्पताल का सुंदर भवन, शानदार फुलवारी व चकाचक व्यवस्था देख एकबारगी आभास होता है कि यहां मरीजों के इलाज का समुचित प्रबंध है। हालांकि ऐसा सोचना खुद को धोखे में रखना है। यहां सौंदर्य के आवरण में सिस्टम की बदहाली छिपी हुई है।  महिला डॉक्टर नहीं है। शिशु रोग विशेषज्ञ भी नहीं है लिहाजा मदर- चाइल्ड हेल्थ विंग के तहत चाइल्ड बॉर्न यूनिट नवजात शिशुओं के इलाज के काम नहीं आ रहा। अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की दरकार है। तीन डॉक्टर पोस्टेड तो हुए लेकिन वे यहां आना मुनासिब नहीं समझे। यह लाजिमी है सुविधाओं की बौछार की आकांक्षा लोगों के मन में पली लेकिन सुविधाओं का टोटा ही अस्पताल की पहचान है।

कहां गई एंबुलेंस और वाटर एटीएम

खास बात यह कि केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने चुनाव से दो माह पहले रेफरल अस्पताल को एक एंबुलेंस व वाटर एटीएम देने की घोषणा की। यही नहीं उस एमबुलेंस की बकायदा अस्पताल में उद्घाटन के दौरान पूजा अर्चना भी हुई। उस दौरान तत्कालीन भाजपा विधायक अशोक सिंह व सिविल सर्जन मिथलेश झा भी मौजूद रहे। लेकिन उद्घाटित एमबुलेंस व वाटर एटीएम कहां है यह रहस्‍य ही बना हुआ है। महिलाओं को गंभीर रोगों के इलाज के लिए बाहर जाने के सिवा कोई विकल्प नहीं। प्रसव पीड़ा से कराहती महिलाओं को भी एएनएम का भरोसा है। एएनएम ही प्रसव कराने की जिम्मेदारी संभालती है। मैनेजमेंट की बदौलत प्रसव कराने में यह अस्पताल जिले को पीछे छोड़ चुका है। लेकिन प्रतिमाह इस अस्पताल से दर्जनों प्रसव पीड़ित महिलाओं को रेफर भी किया जाता है। रिस्क कवर करने की व्यवस्था नहीं है। इससे समझा जा सकता है कि महिला डॉक्टर की यहां तैनाती कितनी जरूरी है।वैसे तो महिला डॉक्टरों की कमी से पूरा जिला जूझ रहा है।

चिकित्‍सक, संसाधन की है घोर कमी  

राम मनोहर लोहिया रेफरल अस्पताल 25 वर्ष का हो गया। इस दौर में इसने कई उतार चढ़ाव देखे। मगर अस्पताल की हालत में खासा बदलाव देखने को नहीं मिला। विशेषज्ञ डॉक्टरों के बिना अस्पताल बदहाल है। 40 बेड के इस रेफरल अस्पताल की कमान आयुष डॉक्टरों के भरोसे है। एक्सीडेंटल व गंभीर बीमारियों के मामले में मरीजों को रेफर करने के सिवा कोई खास प्रबंध नहीं। चिकित्सा प्रभारी डा. सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि चिकित्सकों की कमी है पर यह कमी तो हमेशा रही है। जो भी चिकित्सक हैं, उनके सहयोग से बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए हम काम करते हैं। उन्होंने बताया कि सभी जरुरी दवाएं उपलब्ध है। सात चिकित्सक हैं जिनमें चार आयुष हैं। विभिन्न सेंटरों व अस्पताल में 17 एएनएम व चार ए ग्रेड एएनएम हैं।

दर्जा रेफरल का, सुविधा पीएचसी स्तर की भी नहीं

प्रखंड मुख्यालय के अस्पताल का दर्जा तो रेफरल अस्पताल का है, पर सुविधा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के स्तर की भी नहीं। लाखों रुपये खर्च कर एनबीएसयू की सुविधा बहाल की गई। अगर यह इकाई सेवा में रहती तो नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल ठीक से होती। मगर एक वर्ष से यह इकाई शोभा की वस्तु बनी है। अल्ट्रासाउंड दो वर्ष से बंद है। महिला डॉक्टर व नेत्र चिकित्सक पोस्टेड हैं लेकिन आई ही नहीं। डॉक्टरों के 11 स्वीकृत पद के विरुद्ध सात ही चिकित्सक है। विशेषज्ञ चिकित्सक एक भी नहीं। 32 एएनएम की जगह 21 कार्यरत हैं। लेबर रुम वातानुकूलित है। आवश्यक दवाएं उपलब्ध है।

वर्षों तक कागज में भटका अस्पताल, अब भटक रहे मरीज

रेफरल अस्पताल की दास्तां भी अजीबोगरीब है। रामगढ़ में रेफरल अस्पताल के भवन का उद्घाटन वर्ष 1994 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सुधा श्रीवास्तव, व जल संसाधन मंत्री जगदानंद सिंह की मौजूदगी में हुआ। अस्पताल को रेफरल का दर्जा मिला वर्ष 2011 में। लेकिन अस्पताल 17 वर्षों तक फाइलों में गुम रहा। दरअसल कागज में यह कोचस में था, लेकिन भवन रामगढ़ में। तब कैसे रेफरल का दर्जा मिले। जब यहां लक्ष्य के सर्वे के लिए केंद्रीय टीम आई तो लगा कि सुविधाओं की बौछार होंगी। वर्ष 2019 में यहां स्वास्थ्य विभाग की केन्द्रीय टीम का दौरा हुआ तो चिकित्सा प्रभारी के दायित्व निर्वहन की सराहना करते हुए डॉक्टर समेत कई सुविधाएं बहाल करने का भरोसा दिया। हुआ कुछ नहीं। एक डेंटिस्ट डॉक्टर को उपकरण नहीं मिलने से वे भी फीजिशियन का कार्य कर रहे हैं। हां ब्लड संबंधित सभी जांच की सुविधा है।

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