जल्‍द बाजार में आ जाएंगे गया के रसीले और मीठे तरबूज, इनकी खेती की प्रकिया जानकर कहेंगे-इतनी मेहनत

गया के गुरारू में बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती होती है। यहां के फल मीठे और रसीले होते हैं। इस कारण इनकी खूब डिमांड रहतीी है। इस बार किसानों को तरबूज की अच्‍छी फसल की उम्‍मीद है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Fri, 02 Apr 2021 08:11 AM (IST) Updated:Fri, 02 Apr 2021 08:11 AM (IST)
जल्‍द बाजार में आ जाएंगे गया के रसीले और मीठे तरबूज, इनकी खेती की प्रकिया जानकर कहेंगे-इतनी मेहनत
खेतों में लगे तरबूज के पौधे। जागरण

गुरुआ (गया) संवाद सूत्र। मौसम गर्मी का हो और लाल-लाल तरबूज (Watermelon) खाने को मिल जाए तो फिर कहना ही क्‍या। राहत का अहसास खुद व खुद हो जाता है। अपने स्‍वाद और तासीर के लिए प्रसिद्ध यह फल एक बार फिर लोगों के बीच पहुंच गया है। बाहर से तरबूज बाजार में आने लगे है। लेकिन जब मिठास और स्‍वाद की बात तो फिर गया की मिट्टी में उपजे तरबूज की बात ही अलग है। कुछ दिनों में ये तरबूज बाजार में आ जाएंगे।

गुरुआ प्रखंड क्षेत्र में बड़े पैमाने पर होती है तरबूज की खेती

गया के गुरुआ प्रखंड में बड़े पैमाने पर तरबूज की खेती होती है। करीब छह सौ एकड़ में किसान तरबूज की खेती करते हैं। इस वर्ष तरबूज की अच्छी फसल होने की उम्‍मीद से किसान उत्‍साहित हैं। लेकिन कई वर्ष तो उनकी उम्‍मीदों पर पानी फिर जाता है। कई दिनों की मेहनत कर खेत तैयार होने के वाद अच्छे बीज के लिए मारामारी रहती है। बीज बो लिया तो समय-समय पर कड़ी धूप में पटवन करना पड़ता है। लेकिन इनके बावजूद फल निकलने के समय आंधी-पानी उम्मीद पर पानी फेर देते हैं।  

एक ए‍कड़ में 60 क्विंटल की उपज

ढिबरा गांव के किसान चंदन कुमार कहते हैं कि हम लोग एक एकड़ में छह सौ ग्राम बीज रोपते हैं। इसके मेहनत का दौर शुरू होता है। करीब 90 दिनों में फल निकलने लगते हैं। इस वर्ष अच्छा पौधा रहने से अच्छे फल की उम्मीद है। प्रखंड मुख्यालय से छह किलोमीटर दुर बरमा, ढिबरा ,लालगढ, राजन समेत कई गांव में तरबूज की फसल की जाती है। किसान बंजर भूमि पर कड़ी मेहनत कर तरबूज की खेती करते हैं। अच्छी फसल मिली तो एक एकड़ में  60 क्विंटल उपज होने की उम्‍मीद रहती है। बिहार व केंद्र  सरकार धान गेहू की खेती करने के लिए कम लागत से अधिक मुनाफा के लिए सरकार सब्सिडी भी देती है। लेकिन तरबूज की खेती मे सरकार द्वारा किसी तरह की कोई भी सरकारी लाभ नहीं मिलता है। जबकि आंधी पानी से तरबूज का पौधा खराब हो जाता है तो किसानों को काफी क्षति होती है।  बरमा, लालगढ, राजन ढिवरा की तरबूज गया, औरंगाबाद, गुरुआ, शेरघाटी की मंडी में खूब मांग रहती है।

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