कैमूर वन्‍य जीव अभ्‍यारण्‍य: यहां प्रकृति का सौंदर्य दिखेगा तो गौरवशाली इतिहास का भी होगा दर्शन

बिहार का सबसे बड़ा अभ्‍यारण्‍य कैमूर वन्‍य जीव अभ्‍यारण्‍य है। यहां प्रकृति का सौंदर्य तो दिखता ही है साथ ही प्राचीनता ए‍ेतिहासिकता और अपनी संस्‍कृति की समृद्ध‍ि का भी अहसास होता है। पर्यटन के दृष्टिकोण से यह जगह बहुत मनोहारी है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Fri, 04 Jun 2021 11:41 AM (IST) Updated:Fri, 04 Jun 2021 11:41 AM (IST)
कैमूर वन्‍य जीव अभ्‍यारण्‍य: यहां प्रकृति का सौंदर्य दिखेगा तो गौरवशाली इतिहास का भी होगा दर्शन
ड्रोन से ली गई शेरगढ़ किला की तस्‍वीर। जागरण

सासाराम (रोहतास), जागरण संवाददाता। राज्य का सबसे बड़ा वन्यजीव आश्रयणी (Wildlife Shelter) है कैमूर वन्यजीव अभ्यारण्य। यह न केवल अपने प्राकृतिक संसाधनों, वन्यजीव व रंग-बिरंगे पक्षियों के लिए बल्कि अपने ऐतिहासिक धरोहरों (Historical Monuments) के लिए भी प्रसिद्ध है। लगभग 1500 वर्ग किमी में फैले यह अभ्यारण्य तुतला भवानी, ताराचंडी, रोहतासगढ़ किला, शेरगढ़ किला, मांझरकुंड और धुआंकुंड जलप्रपात, फुलवरिया शिलालेख समेत अपनी पहाड़ियों- कंदराओं में विभिन्न शिलालेख, भित्ती चित्रों को समेटे हुए है। खूबसूरत प्राकृतिक छटा बिखेरने वाले आश्रयणी को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार ने राज्य का धरोहर घोषित किया है। इस आश्रयणी का भ्रमण करने के लिए मानसून और सर्दियों का समय उपयुक्त होता है। सर्दियों में यहां के स्थानीय पक्षियों के साथ-साथ मध्य एशियाई क्षेत्रों से आने वाले रंग-बिरंगे प्रवासी पक्षी इस अभ्यारण्य को और भी मनमोहक बनाते हैं।

बिहार सरकार ने जारी किया कैलेंडर

इस वर्ष पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार ने रोहतास और कैमूर वन प्रमंडल के संयुक्त तत्वावधान में  दीवार और डेस्क कैलेंडर जारी किए गए हैैं। इनका थीम है- कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य की धरोहरें। इन कैलेंडरों में चौदह-चौदह पृष्ठ हैं। वर्ष के 12 मास वाले अलग-अलग पृष्ठों पर कैमूर वन्य जीव आश्रयणी की 12 धरोहरों के दर्शन होते हैं। इनकी 1000 से अधिक प्रतियां प्रकाशित हुई हैं। इन दोनों कैलेंडरों का लोकार्पण 12 जनवरी 2021को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था। 

तुतला भवानी धाम- पुराणों में शोणतटस्था शक्तिपीठ देवी के इक्यावन पीठों में से एक माना गया है। पुराणों के अनुसार शोण तट पर विराजमान देवी को शोणाक्षी की संज्ञा है, जबकि शिव हैं भद्रसेन। सती का दक्षिणी नितंंब वहां गिरा था। देवी शोण तट पर स्थित सुरम्य पहाड़ी घाटी में ऊपर से गिर रहे प्रपात के अंदर जगद्धात्री दुर्गा के रूप में विराजमान हैं। वहीं देवी आज तुतला भवानी के नाम से जानी जाती हैं। यहां पर देवी प्रतिमा के अगल-बगल कई शिलालेख हैं। अधिकतर शिलालेख बारहवीं सदी के स्थानीय खरवार राजा और कन्नौज-वाराणसी के गहड़वाल राजवंश के राजा गोविंदचंद्र के नायक प्रतापधवल देव के हैं। नवरात्रों में यहां बहुत अधिक भीड़ होती है। छाग बलि की भी परंपरा है। लोग दर्शन के अतिरिक्त पर्यटन के लिये और प्रपात में स्नान के लिये भी पहुँचते हैं। यहाँ कई फिल्मों की सूटिंग भी हो चुकी है।

शेर गढ़ का किला

सासाराम से 20 मील दक्षिण-पश्चिम व चेनारी से 12 किमी दक्षिण में लगभग 800 फीट ऊंची कैमूर पर शृंखला की एक पहाड़ी पर स्थित है शेरगढ़ का किला। लगभग छह वर्ग मील क्षेत्रफल में फैला शेरगढ़ किला को दुर्गावती नदी दक्षिण व पश्चिम से आलिगन करते हुए बहती है। इसके नीचे ही दुर्गावती जलाशय परियोजना का विशाल बांध बन चुका है। यहीं से गुप्ताधाम और सीताकुंड के लिए रास्ता भी है। पर्यटन की संभावनाएं यहां भरपूर हैं। फिर भी इस महत्वपूर्ण धरोहर के रखरखाव का जिम्मा न तो केंद्र सरकार के पुरातत्व विभाग के पास है, न ही राज्य सरकार के पास।

रोहतास गढ़- कहा जाता है कि इस प्राचीन और मजबूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र व राजा हरिश्चंद के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेरा 45 किमी तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाजे हैं, जिनमें मुख्य चार- घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट हैं। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी मौजूद हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखी जा सकती है। 

(कैमूर पहाड़ी की दीवार पर बने शैलचित्र। जागरण)

इन पर्यटन स्‍थलों को संरक्षित और विकसित करने की जरूरत 

ऐतिहासिक मामलों के जानकार व केपी जायसवाल शोध संस्थान पटना से जुड़े शोध अन्वेशक डॉ श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि यहां अति प्राचीन ऐतिहसिक महत्व के पर्यटन स्थल विद्यमान हैं। जिले के पर्यटन स्थलों को तत्काल संरक्षित कर वहां सड़क, सुरक्षा, बिजली, पेयजल व पर्यटकों के लिए आवास सुविधा उपलब्ध कराए जाएं तो इस पिछड़े पहाड़ी क्षेत्र में विकास की गंगा बहाई जा सकती है।

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