इन रैन बसेरे में कैसे गुजारें ठंड की रात, भोजन-पानी की व्यवस्था नहीं, मच्छरों का उपद्रव छीन लेता है नींद
गया शहर में कहने को तो सात रैन बसेरे हैं। लेकिन इनमें से कुछ ही ऐसे हैं जहां रात गुजारना मुश्किल नहीं। अन्य जगहों पर कहीं मच्छरदानी नहीं है तो कहीं पानी और रोशनी नहीं। भोजन की व्यवस्था भी नहीं है।
जेएनएन, गया। शहर में रात गुजरने के लिए सरकार ने दीनदयाल अंत्योदय योजना व अंतर्गत राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत रैन बसेरा का निर्माण किया है। ताकि गरीब लोगों को विशेष मदद मिल सके। वे पूरी रात चैन के साथ गहरी नींद में सो सके। लेकिन गया के रैनबसेरे की हालत ऐसी है कि कोई वहां ठहरना नहीं चाहता। मच्छरदानी है न खाने की व्यवस्था। जबकि इन सबकी व्यवस्था करने का सरकार ने निर्देश दे रखा है।
गया शहर में स्थित रैनबसेरा की देखरेख जिम्मा नगर निगम का कहा है। कहने को शहर में सात रैन बसेरा हैं। रैन बसेरा में ठहरने वाले लोगों ने कई सुविधा देना है। लेकिन कुछ ही रैनबसेरा में सुविधाएं मिल रही हैं। कई तो सुविधा विहीन बने हैं। कही पंखा खराब है तो कहीं मच्छरदानी गायब है। सबसे खराब स्थिति शहर के गांधी मैदान स्थित चारों रैन बसेरे की है। गरीबों को रात में निश्शुल्क ठहराव देना है। पैसे तो उन्हें नहीं देना पड़ता है। लेकिन पेयजल से लेकर खाना के लिए लोगों को बाहर जाना पड़ रहा है। साथ ही दो रैनबसेरा में कार्यालय खुला है। रैनबसेरा में गरीबों को सोने के लिए गदा, चादर, कंबल, मच्छरदानी एवं पंखा लगा है। साथ ही मनोरंजन के लिए लगे टेलीविजन है। रैनबसेरा का रखरखाव के लिए नगर निगम ने गैर सरकारी संस्था को दे रहा है। फिर भी रखरखाव ठीक नहीं हो रहा है। लापरवाही के कारण गरीब सुविधाओं से वंचित बने है।
नहीं मिलता है भोजन- सरकार का निर्देश है कि रैनबसेरा में गरीबों को दोनों समय खाना देना है। बैरागी मोड़ के पास स्थित रैनबसेरा संख्या सात को छोड़कर कही भी खाना गरीबों नहीं मिल रहा है। सिर्फ सात नंबर में 35 रुपये में भर पेट खाना मिल रहा है। गौरतलब है कि पहले रैनबसेरा में ठहरने के लिए एक रात के 25 रुपये देने पड़ते थे। लेकिन वह शुल्क एक वर्ष से बंद है। ठहरने के लिए केवल पहचान पत्र देना पड़ता है। बिना पहचान पत्र के किसी भी व्यक्ति को ठहरने नहीं देना है।