History: द्वापरकालीन इतिहास दबे है शोणितपुर में, मगध नरेश वाणासुर की कथा को पुरातत्व विभाग खोदकर पर पर्यटन का रुप दे
कई ऐसे पौराणिक स्थल है जो इतिहास की अनेक स्मृतियाँ अपने संजोये है। इन्ही पौराणिक स्थलों में एक है सोनपुर। द्वापरकालीन इतिहास का गवाह है बेलागंज के समीप यमुने नदी के किनारे बड़े भू-भाग में मिट्टी का टीला। भगवान शिव के अग्रगण्य भक्तों में वाणासुर का महल हुआ करता था।
[राकेश कुमार] गया। जिले में कई ऐसे पौराणिक स्थल है, जो इतिहास की अनेक स्मृतियाँ अपने संजोये है। इन्ही पौराणिक स्थलों में एक है सोनपुर। जो द्वापरकालीन इतिहास का गवाह है बेलागंज के समीप यमुने नदी के किनारे बड़े भू-भाग में मिट्टी का टीला। जो कभी असुर सम्राट एवं भगवान शिव के अग्रगण्य भक्तों में एक मगध नरेश वाणासुर का महल हुआ करता था। जो खण्डहर में तब्दील हो आज मात्र एक टीला के रूप में इतिहास के अनेक स्मृतियों को संजोये अपनी बदनसीबी का रोना रो रहा है। उक्त स्थल से जुड़े अनेक कथाएं श्रीमद्भागवत आदि पुराणों में वर्णित है।
तब भी मिली थीं दुर्लभ वस्तुएं
सत्तर के दशक में उक्त स्थल पर कुछ खुदाई का कार्य हुआ था और उसमें मिलीं दुर्लभ वस्तुएं आज भी पटना सहित अन्य संग्रहालयों में संरक्षित कर रखा गया है। प्राचीन युग मे कभी शोणितपुर के नाम से विख्यात रहे यह स्थल आज सोनपुर के नाम से जाना जाता है। जो असुर राजा वाणासुर की राजधानी थी। जहां से अपने राजकाज के अलावे धार्मिक कार्यो का संचालन करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम था उषा। वाणासुर द्वारा बराबर पहाड़ पर स्थित प्रसिद्ध सिद्धनाथ की स्थापना की थी। वही उनकी बेटी उषा द्वारा बेलागंज में स्थित मां काली को स्थापित की थी।
भगवान श्रीकृष्ण और वाणासुर के गवाह है सोनपुर
श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि वाणासुर अपनी बेटी उषा की शादी हेतु भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनुरुद्ध को चुरा कर शोणितपुर लाया था। जिससे कुपित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने शोणितपुर पर हमला किये थे। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण और वाणासुर के बीच घमासान युद्ध हुआ था। इसके उपरांत अनुरुद्ध और उषा के बीच शादी हुई थी।
सत्तर के दशक में हुई थी खुदाई
वर्तमान में अवस्थित उक्त टील्हा की खुदाई जायसवाल इंस्च्युत द्वारा करायी गयी थी। जिसमें अनेक ऐतिहासिक महत्व के वस्तुएं मिली थी। जो आज भी पटना एवं गया के संग्रहालय में सुरक्षित है। वर्तमान में आज भी टील्हा के किनारे यमुने नदी की कलकल धारा प्रवाहित है। वही टील्हा के कुछ दूरी पर सोइयाघट अवस्थित है। जहां सूखे की स्थिति में भी इसकी सोई सालो भर प्रवाहित होते रहती है। जिसके जल आज भी असाध्य रोगों में रामबाण के रूप में कार्य करती है। लेकिन वर्तमान सोनपुर में शोणितपुर का प्राचीन इतिहास समाहित है। जिसे उत्खनन कर एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। जिससे जहां लोगों को रोजगार मिलेगा वही एक ऐतिहासिक स्थल संरक्षित होगा।