Kartik Purnima 2020: तुम्हे प्रणाम है संतापहारी, गुणकारी, कांतिप्रद एवं पुष्टिवर्धक पानी के स्वामी सोन

कार्तिक मास में सोन नद का धार्मिक महत्त्व है। बड़ी संख्‍या में लोग यहां स्‍नान करने पहुंचते हैं। लेकिन वर्तमान में इस नदी का जल प्रदूषित हो गया है। कार्तिक पूर्णिमा पर इसे बचाने का संकल्‍प लेने की जरूरत है।

By Vyas ChandraEdited By: Publish:Sat, 28 Nov 2020 12:13 PM (IST) Updated:Sat, 28 Nov 2020 01:34 PM (IST)
Kartik Purnima 2020: तुम्हे प्रणाम है संतापहारी, गुणकारी, कांतिप्रद एवं पुष्टिवर्धक पानी के स्वामी सोन
औरंगाबाद में सोन नद का मनोहारी दृश्‍य। जागरण

उपेंद्र कश्यप, औरंगाबाद। कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) 30 नवंबर यानि सोमवार को है। इस दिन नदी स्नान एवं दान का विशेष महत्व है। इसी दिन गुरुनानक जयंती (Guru Nanak Jayanti) भी है। पुराणों में भी कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है, क्योंकि यह मास भगवान विष्णु को प्रिय होता है। इसी दिन देव दिवाली भी मनाई जाती है। इस दिन सोन नदी में स्‍नान के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ेगा। मान्‍यता है कि सोन में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

यह सोन बहुत गुणकारी माना गया है। 784 किलोमीटर लंबा सोन बड़े इलाके के लिए जीवनधारा है। इसका पौराणिक महत्त्व है। कहा जाता है कि सोन का पानी अनेक प्रकार से गुणकारी है। रूचिकर, संतापहारी, हितकर, जठराग्निवर्धक, बलदायक, क्षीण अंगों के लिए पुष्टिप्रद, मधुर, कांतिप्रद और बलवर्धक है। पर्व-त्योहारों के अवसर पर सोन में स्नान को प्राथमिकता दी जाती है। इसे हिरण्यवाहु भी कहा गया है। अर्थात सोने के कण को अपने साथ बहाने वाला नद। तीन हजार साल से भी पहले प्रागैतिहासिक-पुरातिहासिक काल में भी इस सहायक नदियों का जल प्राप्त कर निरंतर बहता रहा था।

जिस सोन ने हमें सींचा, उसे बचाने का लेना होगा संकल्‍प

सोन के गुणों पर मानव के अवगुणों की परत चढ़ने लगी है। अमृत के समान इसका पानी इन दिनों प्रदूषित होकर विष बन गया है। सोन का बालू कभी खत्म न होने की बात कही जाती थी, आज बड़ी आबादी को इसकी चिंता है कि क्या सोन में बालू भी बच सकेगा? क्योंकि जिस तरह बालू का अंधाधुंध खनन हो रहा है, यह प्रश्न सबके जेहन में कौंध रहा है। क्या यह अच्छा नहीं होगा, जिस सोन की हमने पूजा की उसकी रक्षा का प्रण कार्तिक पूर्णिमा को लें?  इसे प्रदुषण मुक्त बनाने का भी संकल्‍प लें।

नौवीं सदी में मिला पुल्लिंग नाम

सोन का प्राचीन नाम शोण या शोणभद्र है। नौवीं सदी के संस्कृत साहित्यकार राजशेखर ने गंगा समेत अन्‍य को नदी की संज्ञा दी, लेकिन ब्रह्मपुत्र की तरह सोन को नद ही कहा है। शोणलौहित्योनदौ। शोणो हिरण्यवाहः स्यात्। इसकी शोभा का बखान करते हुए सातवीं सदी के महान साहित्यकार सोन तटवासी बाणभट्ट कहते हैं- वरुण के हार जैसा चंद्रपर्वत से झरते हुए अमृत निर्झर की तरह, बिंध्य पर्वत से बहते हुए चंद्रकांतमणि के समान, दंडकारण्‍य के कर्पूर वृक्ष से बहते हुए कर्पूरी प्रवाह की भांति, दिशाओं के लावण्य रसवाले सोते के सदृष, आकाशलक्ष्मी के शयन के लिए गढ़े हुए स्फटिक शिलापट्ट की नाई, स्वच्छ शिविर और स्वादिष्ट जल से पूर्ण भगवान पितामह ब्रह्मा की संतान हिरण्याहु महानद को लोग शोण भी कहते हैं।

कहां है सोन का उदगम स्थान 

कहीं-कहीं सोन को मेकलसूत भी कहा गया है। नर्मदा तो मेकलकन्या के रूप में प्रसिद्ध है ही। इससे सहज ही अनुमान होता है सोन का उदगम भी मेकल पर्वत ही है। इसी मेकल के पश्‍िचमी छोर पर बसा हुआ है अमरकंटक। समुद्र से साढ़े तीन हजार फीट की ऊंचाई पर जहां से नर्मदा प्रवाहित होती है। नर्मदा और सोन का उदगम स्थल एक दूसरे के निकट है। इसका संकेत महाभारत में भी मिलता है।

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