ननौक की हरी धनिया बनी सियालदह मंडी की शान, 200 रुपये तक खुदरा में बिक्री; किसानों की आमदनी बढ़ी

मानपुर प्रखंड के ननौक गांव में सालभर हरी सब्जियां उपजती हैं। इन दिनों यहां हरी धनिया की हरियाली देखते ही बनती है। करीब 20 एकड़ में धनिया लगी है। बाजार भी बढिय़ा है इसलिए किसानों को अच्छा रेट भी मिल रहा।

By Prashant KumarEdited By: Publish:Thu, 28 Oct 2021 01:40 PM (IST) Updated:Thu, 28 Oct 2021 01:40 PM (IST)
ननौक की हरी धनिया बनी सियालदह मंडी की शान, 200 रुपये तक खुदरा में बिक्री; किसानों की आमदनी बढ़ी
गया जिले के ननौक गांव में हरा धनिया की खेती दिखाते किसान। जागरण।

विनय कुमार पांडेय, गया। जिले के मानपुर प्रखंड के ननौक गांव में सालभर हरी सब्जियां उपजती हैं। इन दिनों यहां हरी धनिया की हरियाली देखते ही बनती है। करीब 20 एकड़ में धनिया लगी है। बाजार भी बढिय़ा है, इसलिए किसानों को अच्छा रेट भी मिल रहा। हर दिन दोपहर बाद से हरी धनिया के खरीदार टोकरी व वाहन लेकर पहुंचते हैं। ननौक गांव की हरी धनिया पश्चिम बंगाल के सियालदह व कोलकाता मंडी तक पहुंच रही है। यहां ननौक गांव की हरी धनिया की खूब मांग है।

चालीस दिन में प्रति कट्ठा पांच से छह हजार का मुनाफा

खेती को लेकर किसान जागरूक हैं। कब कैसे मुनाफा कमाना है, कहां बाजार अच्छा मिलेगा? इन सबकी जानकारी रखते हैं। सितंबर शुरू होते ही खेत में क्यारी बना धनिया की बोआई हो जाती है। अक्टूबर के पहले हफ्ते से धनिया बाजार में पहुंचने लायक हो जाता है। किसानों को उनके खेत पर प्रति किलो 100 से 110 रुपये तक का रेट मिलता है। नवंबर से धनिया का रेट गिरता है। किसान अभिषेक शर्मा, अनिरुद्ध प्रसाद व विशुनदेव प्रसाद बताते हैं कि 40 दिन की खेती में बढिय़ा मुनाफा मिल जाता है। बीज बोआई से लेकर खाद डालने, बीमारी से बचाने, सिंचाई प्रबंधन हर चीज का ख्याल रखते हैं।

एक टोकरी में 35 से 40 किलो तक आता है धनिया

सियालदह मंडी के खरीदार टोकरी में भरकर हरी धनिया ले जाते हैं। पत्तियां मुरझाएं नहीं, इसके लिए बर्फ में पैककर ले जाया जाता है। किसानों को खुशी इस बात की है कि सबकुछ कैश मिल जाता है। हरी धनिया उखडऩे के बाद उसी खेत में आलू बोया जाता है।

35 साल पहले मुखिया ने धनिया बेचकर खरीदी थी राजदूत

गांव में धनिया की शुरुआती खेती के पीछे दिलचस्प वाक्या है। मुखिया लालदेव महतो ने 35 साल पहले हरी धनिया की खेती शुरू की थी। आइडिया बगल के गांव बीथो से मिला था। वे बताते हैं कि पहली बार धनिया बेचकर चार हजार की आमदनी हुई थी। उसी रुपये से राजदूत बाइक खरीदी थी। वे अब भी धनिया की खेती करते हैं। इस साल 36 कट्ठा में धनिया बोया है।

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