Gaya News: हीरा-मोती की जोड़ी से खेती करने की परंपरा को छोटे किसानों ने ही रखा है जीवंत
ग्रामीण क्षेत्र के किसान आज भी आधुनिक उपकरण उपलब्ध होने के बावजूद हल बैल से खेती करने की परंपरा को जीवंत रखे हुए है। खेती का उपकरण विकसित होने से हल बैल से खेतों की जुताई करने पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा है।
संवाद सूत्र, टनकुप्पा (गया)। ग्रामीण क्षेत्र के किसान आज भी आधुनिक उपकरण उपलब्ध होने के बावजूद हल बैल से खेती करने की परंपरा को जीवंत रखे हुए है। खेती का उपकरण विकसित होने से हल बैल से खेतों की जुताई करने पर काफी प्रतिकूल असर पड़ा है। हल बैल से खेत जोतने में किसान को अधिक परिश्रम करना पड़ता था, वही समय भी ज्यादा लगता था। उपकरण उपलब्ध होने से किसान को समय और श्रम भी कम लग रहा है। उपकरण के माध्यम से किसान को लंबी खेती करने में काफी सहूलियत प्रदान हो रही है। छोटी खेती करने में आज भी हल बैल का किसान प्रयोग कर रहा है। हल बैल से खेती करने में किसान को कई फायदे भी है।
शारीरिक श्रम होता है, बैलों का भी स्वास्थ्य ठीक रहता है। शारीरिक श्रम से किसान को कोई बड़ी बीमारी नहीं होता है। छोटे स्तर की खेती हल बैल से करने में किसान को आज भी फायदा है। जुताई करने में किसान को काफी सहूलियत होती है। मध्यम एवं छोटे वर्ग के किसान आज भी प्रखंड के कई गांव में खेती करते है। किसान बताते है कि अब बैल रखना काफी महंगा हो गया है। एक जोड़ा बैल खरीदने में लगभग एक लाख रुपये लगता है। साथ ही भोजन की व्यवस्था अलग से करना पड़ता है। इस तरह से अब आधुनिक मशीन से खेती करना राहत प्रदान कर रहा है। परंतु मंहगाई के दौर में घर में बैल रखना काफी महंगा पड़ता है।
पहले मवेशी के लिए चारा घर में व्यवस्था हो जाता था। लेकिन अब बाजार से खरीदना पड़ता है। पहले के जमाने में किसान के घर में गाय, बैल रखना शान का प्रतीक होता था। लेकिन अभी के मंहगाई में मवेशी रखना उचित नहीं समझते है। ग्रामीण परिवेश में इक्का दुक्का जगहों पर लोग बैल से खेत की जुताई करते देखने को मिलते है। सम्पन्न किसान के दरवाजे पर अब खेती के लिए बैलों की जोड़ी नहीं आधुनिक उपकरण ज्यादा दिखाई पड़ता है।
कहते है किसान
प्रखंड के किसान दिलीप सिंह, कपिल यादव, रंजीत सिंह, विजय यादव, महेंद्र यादव, नारायण प्रसाद बताते है कि अभी थोड़ी बहुत खेती करने के लिए बैल रख रहे है। पहले जैसा अब घर में बैल नही रखते है। अब आधुनिक उपकरण से खेती करना बैल से खेती करना सस्ता और सुलभ हो गया है। एक से दो दिन में उपकरण से खेतों की जुताई सम्पन्न हो जाता है। वही बैल से खेतों की जुताई करने में महीना, पखवारा का समय लग जाता था। बड़े स्तर की खेती उपकरण द्वारा कम समय मेे होने से बैल से खेतों की जुताई करना बहुत कम हो गया है। तेलहन, दलहन, सब्जी आदि की खेती के लिए बैल को रखते है। बड़ी खेती उपकरण से ही किया जा रहा है।