तनाव से बचिए, यह स्वास्थ्य के लिए है काफी घातक, रूसी फिल्मकार पेंटिंग से दे रहे सकारात्मकता का संदेश
बोधगया के एक कैफै में रूसी फिल्मकार देन ने अपनी कला की प्रदर्शनी लगाई है। पेशे से फिल्मकार देन अपनी कला के माध्यम से तनाव से दूर रहने का संदेश दे रहे हैं। वे बताते हैं कि भारतीय संस्कृति में रम जाएं तो तनाव से दूर रहेंगे।
जेएनएन,गया। तनाव इंसान का दुश्मन है। समय रहते इससे निजात नहीं मिली तो यह मौत के मुंह में धकेल सकता है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि तनाव से कैसे बचा जाए। तो आइए हम आपको ले चलते हैं रूस के मॉस्को निवासी देन जेमकिंसन के पास। पेशे से संगीतकार, फिल्मकार और कलाकार जेन इन दिनों अपनी कला के माध्यम से लोगों को मानसिक तनाव से दूर रहने का संदेश दे रहे हैं। उन्होंने बोधगया के सुजाता बाइपास स्थित एक कैफे में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाई है।
क्या है प्रदर्शनी में- श्याम कैफे में प्रदर्शनी लगाए देन कहते हैं कि संगीत और कला जीवन का अहम हिस्सा है। यह मेरे लिए बहुत काम आता है। कलाकृतियों को उन्होंने ऐसा बनाया है जिसे देखकर लोग पॉजिटिव इनर्जी से भर जाते हैं। देन कहते हैं कि तनाव से बचना आज के समय में बड़ी चुनौती है। लोग ध्यान करें। योग करें। सकारात्मक चीजें देखें। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। उन्होंने बताया कि उन्होंने जो पेंटिंग बनाई है, यह रूस में काफी प्रसिद्ध है। इसका नाम Abstract Landscape Painting है।
वे बताते हैं कि उनकी एक फिल्म सफर्न हार्ट को गत वर्ष दरभंगा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड से नवाजा गया था। दक्षिण भारत के बौद्ध मोनास्ट्री में रहने वाले युवा बौद्ध भिक्षु के आध्यात्मिक जीवन पर वह फिल्म आधारित थी। उन्होंने कहा कि तीन बार भारत आए हैं और लगभग एक साल भारत के विभिन्न हिस्सों में रहने का मौका मिला है। लॉकडाउन शुरू होने से पहले बोधगया आए थे और उसके बाद नहीं जा सके। लगभग 9 माह से बोधगया में रह रहे हैं और अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं । अब इनकी इच्छा कला प्रेमियों के लिए बोधगया में प्रिंट ऑफ माइंड नामक केंद्र की स्थापना करने की है । क्योकि ये एक बौद्ध होने के नाते तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा से काफी प्रभावित हैं। वे कहते हैं कि बोधगया आध्यात्मिक स्थल है। इस जगह की तुलना नहीं की जा सकती, यहां से उन्हें असीम ऊर्जा मिलती है। लंबे प्रवास के दौरान बोधगया में बहुत कुछ हासिल किया है।
अपने निजी जीवन के बारे में कहते हैं कि मेरा कला ही वर्तमान में मेरा परिवार और सब कुछ है, भविष्य में परिवार होगा इसका निर्णय अभी नहीं लिए हैं । वह कहते हैं कि 16 वर्ष की उम्र से ही भारतीय संस्कृति के बारे में पढ़ना शुरू कर दिया था । क्योंकि मास्को में लोग वेदों की पढ़ाई भी करते हैं। वही कैफे संचालक बबलू कुमार बताते हैं कि देन का समय कैफे में ज्यादा बीतता है। ताकि यहां लगाए गए चित्र प्रदर्शनी की विशेषता से लोगो को अवगत करा सके। इन्हें भारतीय खाना भी बेहद पसंद है। लिट्टी चोखा और खिचड़ी खास करके।